*विषय लाया हूँ*

नटवर विद्यार्थी
एक गिरगिट
मेरी छत पर आया
किसी ने भला
तो किसी ने बुरा बताया ।
शुभ- अशुभ के
चक्कर में भी पड़ गए
मैं तो चुप रहा
लोग आपस में भीड़ गए ।
मैंने गिरगिट को समझाया
भले प्राणी भाग जा
नहीं तो मारा जाएगा
और मरने का पाप
मुझ पर ही आएगा ।
गिरगिट बोला , दोस्त !
तुममे आज भी पुरानी जड़ता है
पाप – पुण्य से इंसान
अब कहाँ डरता है ?
डरते तो व्यर्थ का
तांडव नहीं रचाते
निरपराध लोगों का
लहू नहीं बहाते ।
रंग स्वयं बदलते हैं
दोषी मुझे ठहराते हैं
सही को ग़लत
और ग़लत को सही बताते हैं ।
तुम्हें , तुम्हारे ही अपनों के
रंग दिखाने आया हूँ
कविता बनाओ, दोस्त !
मैं तो विषय लाया हूँ ।

– नटवर पारीक

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