निर्भया !
तुम हँसती- हँसती
जलती हो
उफ़ तक
नहीं करती हो
इतनी सहनशीलता
कहाँ से पाई ?
बालिग़ – नाबालिग़
बेख़ौफ़ होकर
तुम्हें सताते हैं
तुम्हारी मृत देह को
कूड़े – करकट में
फेंक आते है ।
निर्भया बोली
क्या बताऊँ
जीवनभर
इसी तरह जली हूँ
नाम की निर्भया हूँ
मैं तो बस कठपुतली हूँ ।
– नटवर पारीक