भारतीय संविधान की प्रस्तावना

dr. j k garg
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी ,पंथनिरपेक्ष , लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में,
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

उद्देशिका के उद्देश्य
(१) उद्देशिका यह बताती है कि संविधान जनता के लिए हैं तथा जनता ही अंतिम सम्प्रभु है।

(२) उद्देशिका लोगो के लक्ष्यों-आकान्क्षाओ को प्रकट करती है।

(३) इसका प्रयोग किसी अनुच्छेद में विद्यमान अस्पष्टता को दूर करने में हो सकता है।

(४) यह जाना जा सकता है कि संविधान किस तारीख को बना तथा पारित हुआ था।

उद्देशिका संविधान के एक भाग के रूप में
परम्परागत मत — उद्देशिका को संविधान का भाग नहीं मानता है क्योंकि यदि इसे विलोपित भी कर दे तो भी संविधान अपनी विशेष स्थिति बनाये रख सकता है
इसे पुस्तक के पूर्व परिचय की तरह समझा जा सकता है यह मत सर्वोच्च न्यायालय ने बेरुबारी यूनियन वाद 1960 में प्रकट किया था

नवीन मत– इसे संविधान का एक भाग बताता है केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य 1973 में दिये निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संविधान का भाग बताया है। संविधान का एक भाग होने के कारण ही संसद ने इसे 42वें संविधान संशोधन से इसे सशोधित किया था तथा समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंण्डता शब्द जोड़ दिये थे। वर्तमान में नवीन मत ही मान्य है।

उद्देशिका के आदर्श
उद्देशिका के आदर्श अग्रलिखित है- कम या अधिक मात्रा में प्राप्त कर लिये गये हैं
अपेक्षाएं (स्वतंत्रता, न्याय, समानता है), लक्ष्य है जबकि आदर्श (जनतांत्रिक, समाजवादी) उपाय हैं।

उद्देशिका के शब्दों का विश्लेषण
सम्प्रभु — राज्य की सर्वोपरि राजनैतिक शक्ति है कि घोषणा करती है, राज्य की राजनैतिक सीमाओं के भीतर इसकी सत्ता सर्वोपरि है, तथा यह किसी बाहरी शक्ति की प्रभुता स्वीकार नहीं करती है।

समाजवादी– भारतीय समाजवाद अनिवार्य रूप से लोक तांत्रिक होना चाहिए। समाजवादी लक्ष्यों की प्राप्ति लोक तांत्रिक माध्यमों से होनी चाहिए। यह शब्द भारत को एक जनकल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित कर देता है।

पंथनिरपेक्षता– इसका अर्थ लौकिकता को आध्यात्मिक्ता पर वरीयता देना है, धर्म पर आधारित भेदों का सम्मान करना, अन्य धर्मों के प्रति राज्य द्वारा तटस्थता बरतना ही धर्म निरपेक्षता है, ऐसे राज्य किसी एक धर्म को प्रोत्साहन ना देकर विविध धर्मो के मध्य सहिष्णुता तथा सहयोग बढाने का कार्य करें यह एक कर्तव्य है जिसके पालन से विभिन्न धर्मो के बीच सहस्तित्व स्वीकार किया जाता है। इसका लाभ यह है कि राज्य किसी धर्म के अधीन नहीं होता है जैसे इस्लामिक गणतंत्र ईरान में इस्लाम गणतंत्र से भी अधिक महत्वपूर्ण है।
इस प्रकार के राज्य विधि के समक्ष समता बरतते है तथा नागरिकों के मध्य धार्मिक आधार पर विभेद नहीं बरतते, उनको समान अवसर भी उपलब्ध करवाया जाता है
इस प्रकार के राज्य धर्मविरोधी, अथवा अधार्मिक न होकर धर्मनिरपेक्ष होते हैं। वे अपने नागरिकों को इच्छा अनुसार धर्म पालन का अधिकार देते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 इस से समबन्धित है
पंथनिरपेक्षता कोई उधार लिया गया शब्द नहीं है। भारतीय साहित्य में सर्वधर्म समभाव के आदर्श के रूप में यह मौजूद था। यहाँ धर्म पर आधारित विभेद का विरोध किय गया है न कि राज्य का धर्म से संबंध का

जनतंत्र — अनुच्छेद 19 तथा अनु 326 जनतंत्र से संबंधित है भारत मॅ बहुदलीय लोकतंत्र है

गणतंत्र — राजप्रमुख निर्वाचित होगा न कि वंशानुगत

अपेक्षाएँ
(1) न्याय– सामाजिक आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय के वे प्रकार है जो संविधान मे भारतीय नागरिकों को देने की वकालत की गयी है,1 व्यक्ति 1 वोट राजनैतिक न्याय की प्राप्ति हेतु आवश्यक है[19,326], सामाजिक न्याय की प्राप्ति हेतु अस्पृश्यता का उन्मूलन, उपाधि का उन्मूलन किया गया है,[अनु 15,16,17,18], आर्थिक न्याय हेतु राज्य हेतु नीति निर्देशक तत्वॉ प्रावधान रखा गया है

(2) स्वतंत्रता– इसका अर्थ नागरिक पर बाध्यकारी तथा बाहरी प्रतिबंधों का अभाव है, एक नागरिका द्वारा दूसरे के अधिकारों का उल्लघंन करना निषेधित है, नागरिक स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 में तथा धार्मिक स्वतंत्रता अनु 25-28 मे वर्णित है।

(3)समानता– स्तर तथा अवसरों की समानता स्थापित करना अनु 14 से 18 मे वर्णित है।

(4) बंधुत्व — भारतीय नागरिकों के मध्य बंधुत्व की भावना स्थापित करना, क्योकि इस के बिना देश में एकता स्थापित नहीं की जा सकती है

सन्दर्भ
↑ संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा-2 द्वारा (3-1-1977 से) संपूर्ण प्रभु्त्व लोकतंत्रात्मक गणराज्य के स्थान पर प्रतिस्थापित

↑ संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा-2 द्वारा (3-1-1977 से) “राष्ट्र की एकता” के स्थान पर प्रतिस्थापित.

Reference——Wikeepidia, Google search

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