✍️सत्यमेव जयते

✍️निर्भया गैंग रेप के दोषियों को मिली फांसी…..
आज का दिन भारत देश के इतिहास में सदैव अविस्मरणीय रहेगा।देश की बेटी निर्भया के दोषियों को आखिरकार फांसी की सजा से दंडित करते हुए मृत्युदंड की सजा दी गई।2012 में हुई इस नृशंस हत्याकांड में ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को दोषी मानते हुए फांसी की सजा मुक़र्रर की थी जिसकी पुष्टि हाईकोर्ट द्वारा की गई।उसके बाद आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की जो खारिज हुई।जिसकी अपील सुप्रीम कोर्ट में की गई।जहां से आरोपियों को राहत नहीं मिली।तत्पश्चात लंबे समय तक राष्ट्रपति जी के पास दया याचिका लंबित रही।जिसके निस्तारण के बाद लगातार कोई ना कोई प्रार्थना पत्र लगाकर फांसी की सजा को टाला जाता रहा।इस दौरान मीडिया ने पूरा दबाव बना कर रखा।अभी कुछ दिनों पूर्व ही दैनिक नवज्योति की और से शहर की बुद्धिजीवी,समाज सुधारक महिलाओं की एक ओपन डिबेट (संवाद कार्यक्रम) रखी गई थी।जिसमें विभिन्न महिलाओं ने इसे न्याय का हनन,अन्याय की संज्ञा देते हुए दोषियों को कठोर दंड देने संबंधी मांग रखी थी।इसके विपरीत अजमेर दयानंद कॉलेज की व्याख्याता डॉ.ऋतु शिल्पी सक्सेना ने देश की न्याय व्यवस्था पर संतोष जाहिर करते हुए उस पर विश्वास करने की बात कही थी और कहा था कि दोषियों को अतिशीघ्र फांसी की सजा मिलेगी।मुझे ये कथन पढ़कर काफी आश्चर्य हुआ कि इस माहौल में कोई भी व्यक्ति हमारी न्याय प्रणाली में विश्वास रखने की बात कहता है इसका मतलब वो इंसान कितनी पॉजिटिव विचारधारा का व्यक्ति है।और दोस्तों मेरा भी यही मानना है कि जहां हमारे देश का कानून इस सूक्ति पर आधारित है कि “100 अपराधी भले ही छूट जाए एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए” ऐसे में जब तक आप दोनों पक्षों को सुनोगे नहीं आप इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंच सकते हो कि कौन सही है और कौन गलत।और फिर किसकी कितनी गलती है ये भी देखना जरूरी होता है।क्योंकि हमारे देश की दंड व्यवस्था सुधारात्मक व्यवस्था है।मुस्लिम देशों की तरह हमारी दंड व्यवस्था प्रतिशोधात्मक नहीं है।हम लोग,हमारी जलवायु,हमारा खानपान ठंडा है।ये सारे कारक मिलकर ही किसी देश की दंड व्यवस्था को तय करते हैं।ऐसे में देश की सुप्रीम कोर्ट को सब बिंदुओं पर अपना निर्णय देना होता है।इसलिए थोड़ा विलंब तो हुआ लेकिन आखिरकार न्याय और सत्य की जीत हुई।मैं आज बहुत खुश हूं।जिस व्यवस्था के अंदर मैं काम करता हूं इस व्यवस्था ने आज देश की महिलाओं के स्वाभिमान को ध्यान में रखते हुए आखिरकार दोषियों की फांसी की सजा देकर सबके मुंह बंद कर दिए हैं।मेरी राय में कोई देरी नहीं हुई है।हमारे देश की जैसी कानून व्यवस्था है उसके अनुसार बिल्कुल सही समय पर सही निर्णय हुआ है।हमारे देश की कानून व्यवस्था ये भी है कि अभियुक्त की निर्दोषिता की उपधारणा की जाएगी जब तक दोषसिद्धि ना हो।और दोस्तों देखो ये सही भी है।हमारे पास कोई जादू मंतर नहीं है।पुलिस की इन्वेस्टिगेशन पर कितना विश्वास किया जा सकता है ये आप सब जानते हैं।पुलिस के द्वारा जुटाए गए साक्षय किस हद तक स्वीकार करने योग्य है इन सब बिंदुओं पर ध्यान रखते हुए दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर देना।इन सबमें समय तो लगेगा ही और फिर हमारे पास और मीडिया के पास तो सिर्फ ये एक ही केस है।हमारी न्यायपालिका के पास तो लांखों करोड़ो ऐसे दुखी लोग हैं जो सिस्टम से तंग आकर न्याय के मंदिर के प्रति आशा की किरण दिल में जगाए बैठे हैं।उनको भी न्याय मिलना जरूरी है।उनकी तकलीफ हमें नहीं पता,हमारी मीडिया के लिए उनकी तकलीफ मायने नहीं रखती लेकिन हमारे देश की न्याय व्यवस्था में उनको न्याय देना भी प्राथमिकता में शामिल है।और फिर दोस्तों कभी आपको मौका मिले तो किसी अधीनस्थ न्यायालय का भ्रमण कर आना।देखना वहां सुविधाओं के नाम पर क्या है?जिम्मेदारी और पोस्ट तो बहुत ऊंची दे रखी है लेकिन साधन क्या है, सुविधाएं क्या है?स्टाफ कितना है।इन सब अव्यवस्थाओं के बाद भी आज हमारे देश के नागरिक हमारी न्याय व्यवस्था पर विश्वास रखकर कोर्ट में आते हैं।ऐसे विश्वास करने वाले लोगों का मैं दिल से सम्मान करता हूं।एक बार फिर देश की महिला शक्ति को बधाई।देश की न्यायपालिका का धन्यवाद।हमारी न्याय व्यवस्था में विश्वास और संतोष रखने वाली बुद्धिजीवी,सकारात्मक सोच रखने वाली मातृ शक्ति डॉ.ऋतु शिल्पी सक्सेना जी का आभार।धन्यवाद…..

✍️डॉ. मनोज कुमार आहूजा एडवोकेट एवं पत्रकार….

error: Content is protected !!