एक सहज सवाल..। क्या हम सचमुच 21वी सदी में जी रहे है..? एक जैविक महामारी के सापेक्ष ताली-थाली के आव्हान को आविवेकी निर्णय हम सबमे ऊर्जा का संचार कर देता है। यह समय हर राष्ट्राध्यक्ष के कड़ी परीक्षा का समय है। अपने देश के लिए श्रेष्ठतम करने का समय है। आत्म-मुग्धता से निकल सच से रूबरू होने का समय है। इटली के प्रधान के आँसुयों को पढ़ने का समय है। स्वम से.. । सरकार से..। सवाल करने का समय है। साथ खड़े होने के ढोंग का समय नहीं है..। निज महत्वकांक्षाओं के पोषण का समय नहीं है..। अनावश्यक जयघोषों का समय नहीं है। पक्ष विपक्ष में बंटने का समय नहीं है..।
यह समय सरकार को उसके दायित्व याद दिलाने का समय है…
1. जो डॉक्टर, पुलिस, सैन्य या जरूरी सेवाओं से जुड़े सेवा कर्मी अपनी ड्यूटी पर तैनात रहकर केरोना मरीजो की शिनाख्त या इलाज कर रहे हैं, उन्हें इस वक्त आभार या तालियों से ज्यादा समुचित सुरक्षा कवच की जरूरत है। उनके सम्पूर्ण शरीर को सुरक्षित बायोलॉजिकल किट चाहिए। प्रयोग में आने वाले सारे संसाधन चाहिए। स्नेह और सम्मान चाहिए।
2. अस्पताल की आपात स्थितितों के लिए अतिरिक्त वेंटिलेटर ,टेस्टिंग किट, बिस्तर, स्थान, जरूरी दवाएं पहले से मुहैया होनी चाहिए। जो कंपनियां इनका निर्माण करती हैं उन्हें बड़े टारगेट देकर आपात स्थितितों के लिए तैयार होने के निर्देश दिए जाने चाहिए।
3.आपात कालीन व्यवस्थाओं के लिए सरकारी एप्प होने चाहिए जिससे लोकेशन के हिसाब से सम्बंधित मदद मिल सके।
4. लॉक- डाउन में स्टेशन या अन्य स्थानों पर फंसे देशवासियों या जरूरी यात्राओं के लिए वैकल्पिक व्यवस्था होनी चाहिए।
5. दिहाड़ी या असंगठित रोजगार वाले घरों को भूख से ना मरने देने का वायदा देना चाहिए। सम्भव हो तो न्यूनतम आवश्यक रसद सरकार द्वारा घर पहुचाई जानी चाहिए।
6.किसी भी अफवाह या अन्धविश्वाश पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए।
7…. और हां..! यह मत कहिए कि पैसा से कर्मचारी कहाँ से आएगा…?
आप जानते हैं कि पैसा कहाँ से आता है..। मध्यम वर्ग या गरीब को छोड़कर उन प्रथम बड़े औधौगिक घरानें मौजूद हैं जो चुनावी प्रबंधन से लेकर अन्य सभी कामों में आपके साथ रहते हैं। जहां तक कर्मचारियों का प्रश्न है तो वे भी निजी क्षेत्र के लोगो से अनुबंधित किये जा सकते हैं।
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*रास बिहारी गौड़*