लॉक डाउन खुलने के बाद का जीवन

कितनी क्षमताएं और क्या विषमताएं होंगी
हालांकि जब भी लॉक डाउन खुले, तब भी दो से तीन महीने कम से कम निजी तौर पर हर इंसान को लॉक डाउन के नियमों का पालन करना चाहिये। जैसे सोशल डिस्टेंसिंग (भीड़ न लगाना) पब्लिक ट्रांसपोर्ट (रोडवेज बस, ट्रेन, प्लेन) आदि से सफर ना करें। क्योंकि, सबसे ज्यादा खतरा इस बात का होगा कि ठीक हुए लोग यदि पुनः संक्रमित हुए तो रिपीट संक्रमण विस्फोटक रूप से संक्रमण स्प्रेड करेगा। और साजिशन कोई बीमारी फैलाना चाहेगा तो उसे भी खुले घूमने की आज़ादी के कारण सार्वजनिक स्थलोँ, ट्रेन बस आदि में बीमारी/संक्रमण फैलाना आसान होगा।
इससे इतर अलग विचारधारा से सोचें और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, तो भी लॉक डाउन खुलने का ये मतलब कत्तई नही होगा कि कोरोना संक्रमण धरती से समाप्त हो गया। इसे समझने के लिये चीन को उदाहरण के रूप में लेते हैं।
*चीन में ठीक हुए मरीज फिर से कोरोना पॉजिटव*
और ये मरीज और ज्यादा खतरनाक हैं। पहली बार कोरोना होने पर सिम्पटम्स फिर भी दिखाई दे जाते हैं, मगर, ठीक हुए मरीज के दोबारा पोजिटिव होने पर सिम्पटम्स भी नही दिखते। और ऐसे मरीज खुले आम लोगों से मिल जुल कर सामाजिक जीवन जीने लगते हैं; इस बात से अनजान के उनमें दोबारा वायरस इम्फेक्शन अंदर ही अंदर पनप रहा है। (स्पष्ट कर दूं कि ऐसा हर मरीज के केस में नही है)
इस तरह के करीब डेढ़ हजार मामले सामने आए चीन में। अब ये पता लगाने की मशक्कत शुरू हो गई है कि इनमें से कौन से मरीज नए हैं और कौन से मरीज को दोबारा रोग हुआ।
और खुद को ठीक समझ कर मरीज दोबारा संक्रमित होने की समयावधि में, डायग्नोस होने से पहले कितने लोगों से कहाँ कहाँ मिला होगा, बस यही छुपा हुआ तथ्य एक भयावह भविष्य का कारण बन सकता है।**
यानी रिपीट आने पर यह वायरस और खतरनाक होगा। जैसा चीन में हो रहा है। 76 दिन के लॉक डाउन के दैरान चीन में पॉजिटव मरीज कम होते होते खत्म हो गए थे। जैसे ही 77वें दिन लॉक डाउन हटा दिया, कुछ कुछ पॉजिटिव केस फिर सामने आए।
चीन के हुबेई से 25 मार्च को लॉक डाउन हटाया गया था, और 11 अप्रैल तक इन पंद्रह दिनों में 1500 पॉजिटव फिर सामने आ गए।
**अब ये कौन से पॉजिटिव मरीज हैं?
दरअसल लॉक डाउन खुलने के बाद इंटरनेशनल उड़ानें शुरू हो गईं, लोकल लेवल पर ट्रेनों-बसों के सफर शुरू हुए। लॉक डाउन को क़ैद समझने वाले लोग आज़ादी की हवा में सांस लेने के उतावलनेपन में स्वास्थ्य की फिक्र भूल बैठे और वैज्ञानिक तथ्यों को दरकिनार किया जाने लगा। नतीजा ये हुआ कि रीइंफेक्टेड मरीज नए लोगों को भी इम्फेक्शन बांटते चले।
**यदि कोई देश अपनी आर्थिक स्थिति को कंट्रोल करने के लिये लॉक डाउन खोलने का निर्णय लेता भी है, तो जनता का फर्ज बनता है कि आजादी का बेजा फायदा न उठाएं। घूमने की आज़ादी जरूर सरकार ने दे दी हो, तो भी अपने मन में कुछ बंदिशें पाल लें कि कम से कम दो तीन महीने तक कुछ गतिविधियों को अंकुश लगा कर रखेंगे। ऐसी गतिविधियां– जो देश, समाज, मानवता के लिए घातक हो सकती हैं।
**और भारत जैसे देश में लॉक डाउन खुलने के बाद का सूरते-हाल ज्यादा खतरनाक हो सकता है। कई वजह हैं इसकी। एक तो धार्मिक कट्टरता। जब प्रशासन व सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद अनेक जगह धार्मिक/मज़हबी आयोजन छुप छुप कर ग्रुप में हो रहे हों, तो समझा जा सकता है कि लॉक डाउन खुलते ही सार्वजनिक आयोजन नाक का सवाल बन चुके होंगे और भीड़ें जुटना-जुटाना शुरू कर दी जाएंगी।
**दूसरा, भारत देश की जनता का अतिउत्साह भी घातक हो सकता है। इधर ट्रेन-बसें शुरू हुईं और उधर घूमने के प्लान बने। आज भी, जब लॉक डाउन है, काफी लोग बेवजह घरों से निकल रहे हैं, पुलिस सख्ती से उनसे निपट रही है। आए दिन सोशल मीडिया पर आने वाले ऐसे वीडियो हमारी लापरवाह मानसिकता के सबूत हैं। फिर ये तो मान ही लिया जाना चाहिए कि लॉक डाउन हटना भारत वालों के लिए नियम तोड़ने का लाइसेंस जैसा समझ लिया जाएगा। नतीजा..!! संक्रमण की महाखलनायक जैसी पुनः एंट्री।

तीसरा; समाजसेवा और राजनीति के नाम पर चलने वाली दुकानदारियाँ भी चरम पर होंगी। आज लॉक डाउन के दैरान भी अखबार में फोटो छपवाने के *कुछ* लालची समाजसेवी गरीबों को खाद्य सामग्री बांटते हुए कि फोटो खिंचवाने की दौड़ में शामिल हैं । इससे सोशल डिस्टेंसिंग के नियम टूटे तो सरकार व प्रशासन को फरमान जारी करना पड़ा कि *नेकी कर कुएं में डाल* की तर्ज पर परोपकार करना है तो ही खाना बांटो, वरना जिसे सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए “दिखावटी दया” दिखानी है, वो घर बैठे।
*उधर राजनीति भी परोपकार का श्रेय लेने को बावली हुई पड़ी है। एक राज्य में एक बड़ी पार्टी के नेता ने अपने जन्मदिन पर गरीबों को बिरयानी बंटवा कर वाह वाही लूटने के चक्कर में सरकारी फरमान की धज्जियां उड़ा दीं। अजमेर के नगर निगम में चुने हुए जनप्रतिनिधि कलेक्ट्रेट परिसर के बाहर समाजसेवा का मुज़ाहिरा कर ही चुके हैं। हर नेता को लगता है कि उसे भीड़ लगाने का परमिट मिलना चाहिए, क्योंकि वो तो समाज सेवा के लिये इकट्ठे हो रहे हैं। अजीब लॉजिक है। ऐसे नज़ारे देशभर में हैं।
और ऐसे में लॉक डाउन खुलते ही ये *समाजसेवा* कितनी कुलांचे मारेगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। क्योंकि अभी कई *समाजसेवियों* के फोटो और खबरें अखबारों में छपने तथा tv न्यूज़ पर प्रसारित होने से छूट गई हैं। लॉक डाउन खुलते ही *समाज सेवा* का दूसरा चरण यकीनन *कोरोना के दूसरे चरण* को दावत देगा।

**हालांकि लंबा लॉक डाउन अन्य कई सामाजिक विषमताएं पैदा करेगा**
कालाबाजारी और जमाखोरी आज भी चरम पर है। मौकापरस्त लोगों ने महामारी को मुनाफे के मौके के रूप में भुनाना शुरू कर ही दिया है। लॉक डाउन खुलने के बाद तो माल की शॉर्टेज या आवक में कमी के बहाने कालाबाजारी पनपेगी। नतीजतन महंगाई बढ़ जायेगी। गरीब आदमी उस महंगाई में अपना व परिवार का पेट नहीं भर पायेगा, तो अपराध की राह पकड़ेगा। वैसे भी विस्फोटक जनसंखया वृद्धि से देश आपराधिक हब बना हुआ है, और इस महामारी ने कोढ़ में खाज का काम करके अपराध की बीमारी को नासूर बनाने का सामान कर दिया है। यानी जब तक कोरोना पूर्ण कंट्रोल में आएगा तब तक देश में चोरी, लूट, कालाबाजारी, जमाखोरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे कई राक्षसों के बच्चे बड़े हो चुके होंगे।
और समाज की विडंबना ये है कि हम कोरोना से तो लड़ सकते हैं, मगर ये ऊपर उल्लेखित बीमारियों से लड़ना आसान नही है।
–अमित टण्डन, अजमेर।

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