राम-राम सम्मुख करें , रखते भीतर बैर ।
सावधान उनसे रहें , रखे न घर में पैर ।।
(2)
रखे निकटता मित्र बन , फिर करते हैं घात ।
ऐसे कपटी मित्र से , करो न मन की बात ।।
(3)
बदले अपने रूप को , बदले मुख के भाव ।
समझो ऐसा मित्र ही , डगमग करता नाव ।।
(4)
ढूंढे भी मिलता नहीं , अब तो असली इत्र ।
उससे भी मुश्किल अरे , मिलना सच्चा मित्र ।।
(5)
सोच समझकर ही करो , हद से ज्यादा हेत ।
थोड़ी सी भी चूक से , पड़े हेत में रेत ।।
*नटवर पारीक*, डीडवाना