अपने मुल्क की तरक्की पर
हमें बड़ा नाज है , हर्ष है –
क्योंकि हमारा देश अब
आजाद भारतवर्ष है ।
पर गांधी के इस देश में ,
असली नकली गांधी भक्तों में ,
राजघाट की सौगंध खाने वालों में चल रहा जोरदार संघर्ष है ।
आजाद भारत वर्ष में नैतिक मूल्यों का यह कैसा हो रहा अपकर्ष है,
देखिए ना आज यहाँ
मरीज की नजर में डॉक्टर
और उसकी दवा नहीं
डॉक्टर के साथ वाली
खूबसूरत नर्स है
और डॉक्टर की नजर में भी मरीज और उसका मर्ज नहीं मरीज की जेब में पड़ा
नोटों से भरा उसका पर्स है ।
बहुत वाजिब है ,अपने मरीज की भारी जेब को हल्की कर
उसको चिंता मुक्त करना ,
एक डॉक्टर का यह तो फर्ज है।
देख रहे हैं हम चुपचाप ,
हमारे देश में नैतिकता का
कितना हो रहा उत्कर्ष है ।
पर मेरे मन की पीड़ा तो
यह है कि महात्मा गांधी के
सपनों का यह देश,
अब कैसा भारत आजाद है ?
*बी एल सामरा नीलम*
पूर्व शाखा प्रबंधक
भारतीय जीवन बीमा निगम मंडल कार्यालय अजमेर