हर कर्मचारी के जीवन में कुछ ऐसी भी ज़रूरतें होती है जो पूरी करनी ही होती हैं। बच्चों की पढ़ाई , राशन , बुजुर्गों की देखभाल ,घर की नौकरानियों की पगार , बिजली पानी के बिल , ये सब एक व्यक्ति की मासिक आय पर निर्भर होता है । मेने अपनी पूर्व की पोस्ट पे भी यह लिखा था क़ि ये कर्मचारी जो रात दिन अपनी नौकरी निस्वार्थ रूप से कर रहे हैं , ये भी इस जंग के मौन योद्धा है , चाहे वे कलेक्टर रैंक के अधिकारी हों , जलदाय , बिजली , नगर निगम या विभिन्न प्राधिकरण के अधिकारीगण , अभियंता वर्ग हों , फ़ील्ड से जुड़े कर्मचारी हों , शिक्षक वर्ग हो ,श्रेणी तृतीय या चतुर्थ के कर्मचारी हों ।ये लोग भी अपनी जान को जोखिम में डालकर सब के लिए काम कर रहे हैं । तो फिर इनके साथ ये भेदभाव क्यूँ ।
विडम्बना तो यह है की सरकारी कर्मचारी अपना मुँह भी नहीं खोल सकता । वो मन ही मन रो लेगा , कलप लेगा लेकिन बोलेगा नहीं क्यूँकि वो सरकारी नौकर है बेचारा। गरीब की तरह भीख भी नहीं माँ सकता ना ही किसी से मदद की माँग कर सकता है । उसे तो स्कूल की फ़ीस भी भरनी है , अपना व परिवार का पेट भी भरना हैऔर मानवता के नाते घर के नौकरों की तनख़्वाह भी देनी है और बैंक की किस्त भी चुकानी है , सारे बिल भी चुकाने हैं और टैक्स भी भरना है ।
मैं समझती हूँ की इस विकट घड़ी में कठोर निर्णय सरकार को लेने पड़ रहे हैं किंतु ये ना भुला जाए की समाज का एक वर्ग ऐसा है जो घुट- घुट के जीने को मजबूर है ।
मेरा सरकारी तंत्र से यह विनम्र निवेदन है की इन मूक योद्धाओं के बारे में भी सोचे और कोई विकल्प तलाशे जिससे इस मध्यम वर्गीय नौकरीपेशा को राहत मिल सके ।
नीता टंडन
अजमेर