करोना का क़हर : मध्यम वर्ग पर कितना असर

नीता टंडन
मेरी यह बात आपको अजीब लग रही होगी किंतु यह प्रश्न बेमायने नहीं है । आज सबसे ज़्यादा जो इस नाशपीटे करोना का दंश झेल रहा है , वो है मध्यम वर्गीय आम व लाचार आदमी । छोटे छोटे दुकानदार अपने कारोबार के ख़त्म होने से सदमे में हैं । वहीं नौकरी पेशा सरकारी कर्मचारी की हालत भी कुछ कम ख़राब नहीं है । गरीब वर्ग को ना केवल सरकारी तौर पर राशन पानी की मुफ़्त सुविधा मिल रही है अपितु अनेक भामाशाहों ने अपने ख़ज़ाने खोल दिए हैं । निःसंदेह यह कदम प्रशंसनीय है । लेकिन हज़ारों , लाखों उन सरकारी कर्मचारियों का क्या होगा जिनका वेतन 30/50/60 प्रतिशत पिछले माह भी स्थगित कर दिया गया और इस माह भी ऐसा ही कुछ सुनने में आ रहा है जबकि सबकी तनख़्वाह से कुछ ना कुछ राशि पहले ही करोना फंड के लिए काट ली गई थी जो सबने सहर्ष ही दान दी। इस के अतिरिक्त इन कर्मचारियों के परिवार जनों ने किसी ना किसी स्वयमसेवी संस्थाओं में स्वेच्छा से दान दिया है।
हर कर्मचारी के जीवन में कुछ ऐसी भी ज़रूरतें होती है जो पूरी करनी ही होती हैं। बच्चों की पढ़ाई , राशन , बुजुर्गों की देखभाल ,घर की नौकरानियों की पगार , बिजली पानी के बिल , ये सब एक व्यक्ति की मासिक आय पर निर्भर होता है । मेने अपनी पूर्व की पोस्ट पे भी यह लिखा था क़ि ये कर्मचारी जो रात दिन अपनी नौकरी निस्वार्थ रूप से कर रहे हैं , ये भी इस जंग के मौन योद्धा है , चाहे वे कलेक्टर रैंक के अधिकारी हों , जलदाय , बिजली , नगर निगम या विभिन्न प्राधिकरण के अधिकारीगण , अभियंता वर्ग हों , फ़ील्ड से जुड़े कर्मचारी हों , शिक्षक वर्ग हो ,श्रेणी तृतीय या चतुर्थ के कर्मचारी हों ।ये लोग भी अपनी जान को जोखिम में डालकर सब के लिए काम कर रहे हैं । तो फिर इनके साथ ये भेदभाव क्यूँ ।
विडम्बना तो यह है की सरकारी कर्मचारी अपना मुँह भी नहीं खोल सकता । वो मन ही मन रो लेगा , कलप लेगा लेकिन बोलेगा नहीं क्यूँकि वो सरकारी नौकर है बेचारा। गरीब की तरह भीख भी नहीं माँ सकता ना ही किसी से मदद की माँग कर सकता है । उसे तो स्कूल की फ़ीस भी भरनी है , अपना व परिवार का पेट भी भरना हैऔर मानवता के नाते घर के नौकरों की तनख़्वाह भी देनी है और बैंक की किस्त भी चुकानी है , सारे बिल भी चुकाने हैं और टैक्स भी भरना है ।
मैं समझती हूँ की इस विकट घड़ी में कठोर निर्णय सरकार को लेने पड़ रहे हैं किंतु ये ना भुला जाए की समाज का एक वर्ग ऐसा है जो घुट- घुट के जीने को मजबूर है ।
मेरा सरकारी तंत्र से यह विनम्र निवेदन है की इन मूक योद्धाओं के बारे में भी सोचे और कोई विकल्प तलाशे जिससे इस मध्यम वर्गीय नौकरीपेशा को राहत मिल सके ।

नीता टंडन
अजमेर

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