झूठा सच एक लघु कथा

बी एल सामरा “नीलम “
“मम्मी , मम्मी !
“मैं इस बुढिया के साथ स्कूल नही जाउँगा और ना ही इसके साथ वापस आउँगा”
मेरे दस वर्ष के बेटे ने गुस्से से अपना स्कूल बैग फेंकते हुए हुए कहा, तो मैं बुरी तरह से चौंक गई !
ये क्या कह रहा है? अपनी दादी को बुढिया क्यों कह रहा है? कहाँ से सीख रहा है ,इतनी बदतमीजी ?
मैं सोच ही रही थी कि बगल के कमरे से उसके चाचा बाहर निकले और पुछा-“क्या हुआ बेटा?”
उसने फिर कहा:- “चाहे कुछ भी हो जाए, मैं इस बुढिया के साथ स्कूल नहीं जाउँगा, हमेशा डाँटती रहती है और मेरे दोस्त भी मुझे चिढाते हैं !”
घर के सारे लोग उसकी बात पर चकित थे l
घर मे बहुत सारे लोग थे मैं और मेरे पति, दो देवर और देवरानी , एक ननद , ससुर और नौकर भी !
फिर भी मेरे बेटे को स्कूल छोडने और लाने की जिम्मेदारी उसकी दादी की ही थी l पैरों मे दर्द रहता था , पर पोते के प्रेम मे कभी शिकायत नही करती थी, बहुत प्यार करती थी उसको, क्योंकि घर का पहला पोता था।
पर अचानक बेटे के मुँह से उनके लिए ऐसे शब्द सुन कर सबको , बहुत आश्चर्य हो रहा था। शाम को खाने पर उसे बहुत समझाया गया पर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा।
पति ने तो गुस्से मे उसे थप्पड़ भी मार दिया, तब सबने तय किया कि कल से उसे स्कूल छोडने और लेने माँजी नही जाएँगी !!
अगले दिन से कोई और उसे लाने ले जाने लगा, पर मेरा मन विचलित रहने लगा कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया?
मै उससे कुछ नाराज भी थी !
शाम का समय था , मैने दूध गर्म किया और बेटे को देने के लिए उसे ढूंढने लगी, मैं छत पर पहुँची तो बेटे के मुँह से मेरे बारे में बात करते सुन कर मेरे पांव ठिठक गये…!
मैं छुपकर उसकी बात सुनने लगी।
वह अपनी दादी की गोद में अपना सर रख कर कह रहा था:-
*”मैं जानता हूँ दादी कि मम्मी मुझसे नाराज है ,पर मैं क्या करता ? इतनी ज्यादा गर्मी मे भी , वो आपको मुझे लेने भेज देते थे ! आपके पैरों मे दर्द भी तो रहता है, मैने मम्मी से कहा तो उन्होंने कह दिया कि दादी अपनी मरजी से जाती हैं ! दादी मैंने झुठ बोला…
.बहुत गलत किया, पर आपको परेशानी से बचाने के लिये मुझे और कुछ नही सुझा…
आप मम्मी से बोल दो ,मुझे माफ कर दे ”
वह कहता जा रहा था और मेरे पैर तथा मन सुन्न पड़ गये थे। मुझे अपने बेटे के झुठ बोलने के पीछे के बड़प्पन को महसुस कर गर्व हो रहा था…!
*मैने दौड कर उसे गले लगा लिया और बोली-“नहीं , बेटे तुमने कुछ गलत नही किया।हम सभी पढे लिखे नासमझों को समझाने का यही तरीका ठीक था..
*शाबाश बेटा ! शाबाश !!*

प्रस्तुति सौजन्य-
*बी एल सामरा नीलम*
पूर्व शाखा प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम मंडल कार्यालय अजमेर

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