जिम्मेदार आप हैं, आंसू क्यों बहाते हो

ओम माथुर
इन नेताओं को मजदूरों की मौत पर दुख जताने के लिए मगरमच्छ के आंसू बहाने की भी जरूरत क्या है। सडकों पर मजदूर पैदल इन्हीं के कारण तो चल और मर रहे हैं। न कोई नीति,न नीयत। अगर मजदूरों की इतनी ही चिंता है तो पहले राष्ट्रीय स्तर पर कोई नीति बनाते और फिर इन्हें घर भेजते। बिना किसी तैयारी के पहले इन्हें जहां तहां रोक दिया गया और फिर बिना सोचे जाने दिया।
भीषण गर्मी में धूप और भूख से बेहाल पैदल मजदूर वैसे भी जिंदा लाश की तरह ही तो आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे में अगर सड़क दुर्घटना में उनकी जान जा रही है, तो देश के प्रधानमंत्री से लेकर सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इसके लिए जिम्मेदार है। मजदूरों की मजबूरी पर भी केंद्र और राज्यों में खुलकर सियासत चल रही है। मजदूरों की हालत देख इंसानियत को शर्म आ जाए। लेकिन बेशर्म राजनीति और स्वार्थी नेताओं पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा है। करीब एक महीने से मजदूरों का पलायन और उनकी बेबसी सुर्खियों में है। लेकिन उसके बाद भी केंद्र और राज्यों ने मिलकर इन्हें घर तक पहुंचाने के लिए कोई साझा प्रयास नहीं किए हैं।
देश को बनाने वाले यह लोग कितने मजबूर और उपेक्षित है,जगह जगह से आ रही इनकी कहानियां गवाह है। सरकार किसी भी दल की हो,मजदूरों की किस्मत में पीडा, प्रताडऩा, बेबसी, बेचैनी ही लिखी है। और इनके हित और उद्धार की बातें करने वाले सभी नेता आज चौराहे पर निर्वस्त्र नजर आ रहे हैं। कभी मुजफ्फरनगर, कभी पंजाब में तो आज औरेया में मजदूरों की मौतें यही थमने वाली नहीं। जगह बदल जाएगी, लेकिन इनकी नियति कौन बदलेगा। शाम को टीवी वाले डिबेट कर लेंगे। भाजपा नेता विपक्षी राज्य सरकारों पर और विपक्षी नेता केंद्र सरकार पर ठीकरा फोड़ते रहेंगे और बेचारे गरीब मज़दूर ऐसे ही सडकों पर मरते रहेंगे!

ओम माथुर/अजमेर।

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