dr. j k gargनिसंदेह नेहरूजी ने हिन्दुस्थान में लोकतंत्र को खड़ा करना था जिसकी जड़ें अब काफ़ी मज़बूत हो चुकी हैं और जिसका लोहा पूरी दुनिया भी मानती है | उन्होंने अपनी पार्टी के सदस्यों के विरोध के बावजूद 1963 में अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ विपक्ष की ओर से लाए गए पहले अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा कराना मंज़ूर किया और उसमें सक्रियतापूर्वक भाग भी लिया था | निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि जितना समय पंडित जी संसद की बहसों में दिया करते थे और बैठकर विपक्षी सदस्यों की बात सुनते थे उस रिकॉर्ड को अभी तक कोई प्रधानमंत्री नहीं तोड़ पाया है बल्कि अब तो हाल के कुछ वर्षो से प्रधानमंत्री के संसद की बहसों में भाग लेने की परंपरा निरंतर कम होती जा रही है |
पंडित जी प्रेस की आज़ादी के भी बड़े भारी पक्षधर थे और कहा करते थे लोकतंत्र में प्रेस चाहे जितना ग़ैर-ज़िम्मेदार हो जाए मैं उस पर अंकुश लगाए जाने का समर्थन नहीं कर सकता शायद इसकी वजह एक यह भी थी कि वे एक दौर में ख़ुद पत्रकार थे और प्रेस की आज़ादी का महत्व समझते थे |