गीता और हास्य

शिव शंकर गोयल
गीता अध्यात्म का सर्वोत्तम ग्रंथ है. इसमें किसी भी धर्म की प्रशंसा या निन्दा नही की गई है. इसमें परमात्मा, आत्मा और प्रकृति –शरीर – का विवेचन है. पुज्यनीय रामसुखदासजी महाराज ने निम्नलिखित शब्दों में गीता की टीका में हास्य का पुट दिया है.
एक बार एक हाथी मरकर यमलोक पहुंचा. पेशी के समय धर्मराज ने कहा अरे ! तुझें इतना बडा शरीर दिया और तू तेरे से बहुत छोटे मनुष्य के वश होगया . उसने जवाब दिया महाराज ! मनुष्य है ही ऐसा, बडे बडे इसके वश होजाते है. धर्मराज ने कहा कि हमारे यहां तो रोज ही अनगिनत आते है तो हाथी ने कहा सभी मृत आते है यदि कभी कोई जिन्दा आए तो पता लगे.
धर्मराज ने दूतों से कहा कि एक जीता आदमी ले आओ. दूतों ने कहा ठीक है महाराज. दूत तो घूमते ही रहते है. गर्मियों के दिनों में छत पर एक छुट-पुट हास्य-व्यंग्य लिखनेवाला सोया हुआ था. दूतों ने उसकी खाट उठाली और लेचले. उसकी नींद खुली तो वह अचरज में पड गया. उसने ग्रंथों में यमदूतों के बारे में पढा हुआ था. वह समझ गया कि ची-चपड करेंगे तो गिर जायेंगे, हड्डियों का चूरा होजायेगा. उसने जेब से कागज, बॉलपेन निकाला और उस पर कुछ लिखकर जेब में रख लिया.
धर्मराज की सभा लगी हुई थी, दूत उसे लेकर वहां पहुंचे. जैसे ही दूतों ने खाट नीचे रखी उसने तुरंत जेबसे कागज निकाला और धर्मराज तक पहुंचा दिया. उन्होंने पढा. उसमें लिखा था. धर्मराज को नारायण का यथायोग्य . यह हमारा मुनीम आरहा है. आगे से यह कहे जैसे ही करना. धर्मराज ने पढा तो कहा आइये ! गध्दी पर बैठिये. वह बैठ गया.
इतने में एक आदमी मरकर आया. इसने पूछा कौन है ? दूतों ने कहा यह साइबर क्राईम करता था. इसको क्या दंड दिया जाय ? तो यह बोला इसे वैकुंठ भेजो. दूसरा आया. यह कौन ? महाराज ! इसने दहेज के खातिर अपनी पत्नि को जिन्दा जला दिया. इसे क्या दंड दे ? तो यह बोला इसे भी वैकुंठ भेजदो. इस तरह जो भी आये यह सबको वैकुंट भेजदे. अब धर्मराज क्या करें ? बडे सरकार का आदमी जो कर रहा है सो ही ठीक है.
इधर वैकुंठ में भगवान ने जब यह नजारा देखा तो उन्हें भी आश्चर्य हुआ कि क्या मृत्युलोक में कोई महात्मा प्रकट होगए जो सभी को वैकुंठ भेज रहे है . पूछने पर पता लगा कि यहतो यमलोक से आरहे है. अब भगवान ने सोचा स्वयं चलकर पता करना चाहिए. क्या बात है, क्या नही ?
भगवान, धर्मराज के यहां पहुंचे. सब उनके सत्कार में खडे होगए. यह भी होगया. भगवान ने धर्मराज से पूछा आपने सबको वैकुंठ भेज दिया. क्या इतने लोग धर्मात्मा होगए ? तो उन्होंने कहा कि यह मेरा काम नही है. आपने जो आदमी भेजा है उसका काम है. अब भगवान ने उससे पूछा – तुझें किसने भेजा है यहां ? तो वह बोला आपने ! हमने कैसे भेजा ? तो उत्तर मिला कि आपकी इच्छा के बिना कोई काम होता है क्या. मेरे बल से थोडी ही हुआ यह काम.
…ठीक है तो तूने यह क्या किया ? सबको वैकुंठ भेज दिया. वह बोला वैकुंठ भेजना खराब काम है तो जितने संत-महात्मा है सबको दंड दिया जाय. इस पर भी आपको मेरा काम पसंद नही आया हो तो सबको वापस भेजदो परन्तु गीता में तो लिखा है कि जिस धाम में जाकर कोई वापस नही आता, वह मेरा वैकुंठधाम है. आप चाहे तो सबको वापस भेजदे.
भगवान मन ही मन सोचने लगे अगला कह तो ठीक ही रहा है. इस चुप्पी से उत्साहित होकर वह आगे बोलने लगा. मेरे हाथ में तो जब भी अधिकार आएगा, मैं तो सबको वैकुंठ भेजूंगा. मेरा वश चले तो मैं अच्छा ही करूंगा. भगवान चुप !
अब ईश्वर ने धर्मराज की तरफ रूख किया. धर्मराज तुमने इसको गध्दी कैसे देदी ? धर्मराज ने हस्ताक्षर शुदा वह कागज दिखाया जो उसने दिया था. भगवान ने उस लेखक से पूछा क्यों रे ! यह कागज मैंने तुझें कब दिया ? इस पर वह बोला कि गीता में लिखा है कि मैं सबके हृदय में रहता हूं तो हृदय से आवाज आई कि कागज लिखदो तो मैंने लिख दिया.
अब भगवान ने धर्मराज से पूछा कि यह यहां आया कैसे ? अब दूतों से पूछताछ होने लगी तो उन्होंने धर्मराज से कहा कि आपने ही कहा था कि किसी जिन्दा आदमी को पकड लाओ, हम ले आए. वही पास में हाथी भी खडा था. बोला जै रामजी की ! आपतो मुझें कह रहे थे कि तू कैसे वश में होगया . मैं क्या होगया वश में आप होगए और भगवान होगये. यह बडा विचित्र प्राणी है. चाहे तो उथल-पुथल करदे.
तब भगवान ने कहा कि जो हुआ सो हुआ. चलो अब वैकुंठ लौट चले.
पुनश्च: तथाकथित लेखक उनके साथ नही गया क्योंकि वैकुंठ जाने के बाद वहां से लौटना सम्भव नही था और उसे लौटकर कई काम निबटाने थे मसलन पेंशन लेने जाना,बिजली-पानी के बिल जमा कराना, बैंक की पास बुक अपडेट कराना आदि 2.

शिव शंकर गोयल

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