अब फैसला हो ही जाना चाहिए, ऐसा कि कोई भी किसी की सरकार गिराने की हिमाकत ना करें

फैसला चाहे हाईकोर्ट में हो या सुप्रीम कोर्ट।
देश को संदेश जाना चाहिए, कि कोर्ट किसी को भी संविधान की मूल भावना से खिलवाड़ नहीं करने देगा।

रजनीश रोहिल्ला।
एक के बाद एक चुनी सरकारों का इस तरह गिरना लोकतंत्र की सारी मर्यादाओं का तार-तार कर रहा है। देश में बड़ा अजीब खेल चल रहा है। हर जगह और हर बार ऐसा ही देखने को मिल रहा है। जनता के जनादेश से बहुमत के साथ बनी सरकार के कुछ सदस्य अचानक अपनी सरकार से नाराज होते हैं। एक गुट बनाते हैं और दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं। फिर रातों रात सरकार बदल जाती है।
यह कहना भी गलत होगा कि ऐसी सरकारें मोदी राज में ही बन और बिगड़ रही है। राजनीतिज्ञों का यह खेल देश में चार दशक से चल रहा है।
एक कहानी बड़ी मजेदार है। कहानी 30 साल पुरानी है। हरियाणा के हसनपुरा में एक विधायक हुुआ करते थे। नाम था गयालाल। 15 दिन में 4 पार्टी बदल डाली थी। उसी समय से राजनीति के क्षेत्र में यह कहावत चली आ रही है। आयाराम-गयाराम।
राजनीतिक पार्टियों में बैठे ऐसे ही आयाराम-गयाराम के लिए 1985 में 52 वां संविधान संशोधन कर 10वीं अनुसूची से दल बदल कानून लाया गया। उस समय इसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा गया। लगा कि इस कानून से दल बदल की सारी गंदगी ही खत्म हो जाएगी। लोकतंात्रिक सरकारें पांच साल तक काम कर पाएंगी। लेकिन ऐसा हुआ नही।

रजनीश रोहिल्ला
इस कानून में प्रावधान था कि दल बदल के लिए कम से कम दो तिहाई जनप्रतिनिधि ही एक साथ अपने दल को छोड़कर दूसरे दल में जा सकते हैं।
इस कानून की यही खूबी इसकी सबसे बड़ी कमी साबित हुई। अब एक दो नहीं बल्कि पार्टी के दो तिहाई लोगों को तोड़ने की मुहिम विपक्षी खेमों द्वारा शुरू कर दी गई। यानि सामूहिक खरीद फरोख्त से सरकार गिराने की स्थितियां बन गई।
कानून में राजनीतिक दल को भी एक अधिकार दिया गया कि उनकी पार्टी से जीता सांसद या विधायक पार्टी विहप का उल्लघंन करता है तो उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है। इसके लिए पार्टी को स्पीकर को शिकायत करनी होगी। स्पीकर उसकी जांच करेगा और निर्णय करेगा।
संविधान में विधानसभा स्पीकर को ऐसे मामलों में बहुुत बड़ी ताकत दी गई है। इसके तहत स्पीकर किसी सांसद या विधायक की संसद या विधानसभा की सदस्यता समाप्त कर सकता है।
अब इस कानून की यही खूबसूरती का भी अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल नजर आया। सरकार की ओर से इस कानून के तहत स्पीकर के सामने शिकायत आती है, स्पीकर नोटिस जारी करता है। जिनकों नोटिस जारी किए जाते हैं, वो कोर्ट में पहुंच जाता है। फिर मामला कानूनी दाव पेच में कुछ समय तक मामला उलझ जाता है।
यहां एक समस्या यह भी सामने आ रही है कि चूंकि स्पीकर राजनीतिक पार्टी से जुड़ा कोई व्यक्ति ही बनता है, ऐसे में उस पर पक्षपात करने और निष्पक्ष नहीं रहने के आरोप लगते हैं।
ऐसे दसों मामले देश की अलग-अलग कोर्ट में सामने आए। तभी सुप्रीम कोर्ट ने एक सुझाव दिया कि ऐसे मामलों की जांच और उस पर निर्णय लेने के लिए एक स्वतंत्र प्राधिकरण बनाया जाना चाहिए। जो न्यायधीशों की देखरेख में निर्णय करें। जिससे हमेशा स्पीकर पर इस तरह के उठने वाले सवालों और उनसे जुड़े कानूनी विवादों को रोका जा सके।
संविधान कहता है कि कोर्ट स्पीकर के निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक जजमेंट में कहा गया कि निर्णय की समीक्षा की जा सकती है।
राजस्थान में चल रहा सियासी घमासान भी इस तरह के विवाद से अलग नहीं है। यहां भी गहलोत सरकार के मुख्य सचेतक ने स्पीकर को पायलट सहित 18 लोगों के खिलाफ पार्टी विहप के उल्ल्घंन में कार्रवाई करने के लिए शिकायत दर्ज कराई।
स्पीकर ने सभी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। पायलट खेमा हाईकोर्ट पहंुच गया। संविधान की 10वीं अनूसूची से मामला जुड़ा होने के कारण हाईकोर्ट ने तुंरत डिविजन बैंच में इसकी सुनवाई शुरू कर दी।
मामले में 24 जुलाई यानि शुक्रवार को कोर्ट अपना फैसला देगा। इसके साथ ही स्पीकर को फैसला सुनाए जाने तक विधायकों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से भी रोक दिया है।
अब यहां फिर से संविधान की पेचीदगी शुरू हो जाती है। संविधान में स्पीकर को बहुत अधिक शक्तियां प्रदत है। इसमें कोर्ट द्वारा स्पीकर के काम में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि स्पीकर कोर्ट का फैसला आने तक कोई कार्रवाई ना करें। अब स्पीकर ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में दखल बताया है।
स्पीकर सी पी जोशी ने कहा है कि किसी विधायक को नोटिस जारी करने और अयोग्य घोषित करने का अधिकार स्पीकर का है, जबतक निर्णय ना हो जाए तब तक कोई इसमें दखल नहीं दे सकता है।
सीपी जोशी नेे कहा कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स का पालन कर रहे हैं। अभी सिर्फ नोटिस भेजा है, कोई फैसला नहीं लिया गया है। स्पीकर ने कहा कि अगर हम कोई फैसला करते हैं, तो कोर्ट रिव्यू कर सकता है।
सीपी जोशी ने कहा कि वो हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे, क्योंकि अदालत स्पीकर के काम में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
अब तय हो गया है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में जाएगा। अच्छा है, लोकतांत्रिक सुधारों के लिए बेहतरीन मौका है। वैसे भी जानकार कह रहे थे कि हाईकोर्ट कुछ भी फैसला दें, मामला सुप्रीम कोर्ट जरूर पहुंचेगा।
देश में लोकतंात्रिक सुधारों की दिशा में यह बड़ा अवसर साबित हो सकता है। अधिकारों और निर्णयों की व्याख्या पर भी विचार हो सकता हैं।
दल बदल कानून मेें संशोधनों पर भी चर्चा और निर्णय हो सकती है। संवैधानिक व्यवस्थाओं को नए सिरे से परिभाषित किया जा सकता है। उसके सही अर्थों को रखा सकता है।
अगर इस मौके से चूके तो सरकार बनाने और गिराने का सिलसिला चलता रहेगा। यह सिर्फ पार्टियों और व्यक्तियों के बीच का मामला नहीं है।
यह जनता के उस पक्ष से जुड़ा मामला है, जो चुनाव में जिताती तो एक्स नाम की पार्टी के व्यक्ति को है और कुछ समय बाद वो दिखाई वाई पार्टी में देता है। यह जनता के साथ किसी धोखे या विश्वासघात से कम नहीं है। इन विधायकों और सांसदों के चुनाव पर जनता के ख्ूान पसीने की कमाई पानी की तरह बहती है। एक-एक चुनाव पर हजारों करोड़ रूपए खर्च होते हैं। फिर इन माननीयों पर पांच साल तक वेतन, भत्तों सहित कार्यकाल समाप्त हो जाने पर पेंशन व अन्य सुविधाओं पर सैंकड़ो करोड़ रूपए खर्च होते हैं।
अपनी राजनीतिक महत्वकांशाओं और निजी हित के लिए कब तक- कब तक यह खेल चलता रहेगा। इस पर कोर्ट का सख्त से सख्त फैसला आना ही चाहिए।

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