दल बदलुओं पर 6 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध हो, चुनावी क्षेत्र का खर्चा भी वसूला जाए

रजनीश रोहिल्ला।
लोकतंत्र और संविधान की मूल भावना के लिए नासूर बनते जा रहे दल बदलुओं के खिलाफ देश में अब सख्त कानून लाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है।
ऐसा नहीं कि दल बदल कानून नहीं है। लेकिन यह कानून पूरा प्रभावी नजर नहीं आ रहा है। कई राज्यों के घटनाक्रम देखें तो संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के निर्णयों पर सवाल उठना और कोर्ट में जाने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
स्ंाविधान कहता है कि यदि जनता द्वारा ख्ुनी गई सरकार के पास बहुमत है, तो वो पूरे पांच साल तक काम करें। लेकिन देखने में आ रहा है, जिन्हें जनादेश नहीं मिलता वो जोड़-तोड़ की गणित से अपनी सरकार बना लेते हैं, इस पूरी कहानी में जनता की चुनी हुई सरकार गिर जाती है।
क्यों ना, आए दिन होने वाली इस तरह की राजनीतिक घटनाओं को रोकने के लिए देश की संसद कुछ ऐसा कदम उठाए कि यह हमेशा के लिए ही रूक जाए।
कोई भी जनप्रतिनिधि अपनी महत्वकांशा या निजी हित को पूरा करने के लिए अपनी ही पार्टी की सरकार को गिराने से पहले कांपना शुरू कर दे। देश में ऐसे सुधार होते रहे हैं, होते रहने भी चाहिए।

रजनीश रोहिल्ला
पहले देश में भ्रष्टाचार और अपराधों के मामलों से जुड़े संासदों और विधायकों की भरमार होती थी।
साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। यह फैसला संसद और विधानसभाओं को अपराधियों से मुक्त करने की दिशा मेें बहुत कारगर साबित हुआ। यह निर्णय जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 (4) से जुड़ा था।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय देते हुए ऐसे सभी सांसदों और विधायकों को संसद और विधानसभा से की सदस्यता से निलंबित करने का फरमान सुनाया जिन्हें किसी अपराध में 2 साल की सजा सुनाई गई हो। यही नहीं ऐसे जनप्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट से बरी होने पर ही निलंबन समाप्त हो सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मुताबिक जेल में रहते हुए उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं होगा और न ही वे चुनाव लड़ सकेंगे। जेल में रहते हुए उन्हें नामांकन का अधिकार भी नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट के इसी ऐतिहासिक निर्णय के कारण लालू प्रसाद यादव जैसे नेता जेल में बैठे हैं, चुनाव नहीं लड़ पा रहे।
अब क्या दल बदलुओं का क्या करें
अभी देश के सामने बड़ा सवाल है कि उन दलबदलुओं का क्या करें, जो अपनी महत्वकांशा और निजी हित के लिए दूसरी पार्टी के साथ मिलकर अपनी सरकार गिरा देंते हैं।
इसे बिकाउ और जनता के विश्वास के साथ धोखा करने वाले नेताओं को कैसे रोका जाए। उनके साथ क्या किया जाए।
ऐसा नहीं है कि इसके लिए कोई कानून नहीं है लेकिन देश में अलग-अलग राज्यों में सरकारें अलग-अलग तरह से गिर रही है।
क्या कहता है, दल बदल कानून, दन महानुभावों को ठहराया जा सकता है अयोग्य
1 विधायक स्वेच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ दे।
2 कोई निर्दलीय किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल हो जाए
3 सदन में अपनी पार्टी के विरोध में वोट डाल दें
4 स्वयं को वोटिंग से अलग कर लें
यानि ऐसा करने वाले हर विधायक को अयोग्य ठहराया जा सकता है।
वहीं एक पार्टी के दो तिहाई विधायक मिलकर किसी दूसरी पार्टी में शामिल हो सकते हैं।
यह कानून क्यों बना
इसका उद्देश्य राजनीतिक लाभ और पद के लालच में दल बदल करने वाले जन-प्रतिनिधियों को अयोग्य करार देना है, ताकि स्थिरता बनी रहे।
सवाल उठ रहा है, क्या स्थिरता बनी हुई है
जवाब है नहीं। कानून में कोई प्रावधान ऐसा जोड़ा जाए कि कोई भी जनप्रतिनिधि अपनी सरकार को अस्थिर करने का प्रयास ही नहीं करें। करें भी तो कोई न कोई बड़ी सजा भुगतने के लिए तैयार रहे।
6 साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित हो
एक के बाद एक गिर रही चुनी हुई सरकारों के शोर के बीच कई विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कानून में कोई ऐसा प्रावधान किया जाना चाहिए कि ऐसे विधायकों को छह साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही चूंकि एक विधानसभा क्षेत्र के चुनाव पर 15 से 20 करोड़ का खर्चा आता है, ऐसे में उस माननीय से वसूला जाना चाहिए। या फिर कोई और ऐसा प्रावधान आना चाहिए, जिससे जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि अपने लाभों के लिए बिक ना सके। या फि विपक्ष के साथ मिलकर अपनी ही सरकारों के काम में गिराने में ना सफल हो सकें।

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