*समझदारी*

नटवर विद्यार्थी
सोचते हैं लोग सब ,
होठ कैसे सी लिए !
मेंढकों के शोर में ,
समझदारी “चुप रहें” ।

दीप की महत्ता वहीं ,
रोशनी की माँग हो ।
हैं सभी अँधे जहाँ ,
क्यों जलाए हम दिए ?

झूठ के आग़ोश में ,
सत्य छटपटा रहा ।
धूर्त्त सारे एक हो ,
सत्य को दबा रहे ।

पर मुझे विश्वास है ,
झूठ मात खाएगा ।
कंटकों के बीच में ,
सावधानी से रहें ।
– *नटवर पारीक*,डीडवाना

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