अब…. जी चाहता है आग लगा दूँ नक़ाब में

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
चेहरा छुपा लिया है किसी ने हिज़ाब में, जी चाहता है आग लगा दूं नक़ाब में…….. जी हाँ ज़नाब…..हमारी सोचने वाली स्थिति कुछ इसी तरह बन गई है। हम यही सोच रहे हैं कि जल्द ही वह दिन आये जब हर स्त्री-पुरूष, बच्चे-बुजुर्ग के चेहरों से नकाब हट जाये। मार्च से अब तक एक लम्बी अवधि हो गई, जब घर में आइसोलेट रहकर चारपाई पर पड़े-पड़े सामान्य दिन आने की बाट जोह रहे हैं। इधर अनलॉक में जब भी घर से 10-20 मिनट के लिए गली-कूचों व सड़क पर जाना होता है तब लोगों के चेहरों पर पड़े हुए नकाब से हमें काफी दिक्कत पेश आती है। विशेष तौर पर यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब महिलाओं के चेहरे ढके मिलते हैं। बड़ी कोफ्त होती है। बस इतना ही कह सकते हैं कि हमारी इस बेबसी के जिम्मेदार देश के पी.एम. ही हैं। वर्ना कोरोना की क्या मज़ाल जो हम पर अटैक कर सके।
पी.एम. के मन की बात मानकर हमने लोटा-थाली बजाया, नाचा-गाया, घरों की बिजली गुल का मोमबत्ती जलाया……क्या कुछ नहीं किया…….लेकिन हाय रे निर्मोही पी.एम. तूने हमारी कदर नहीं समझा और न हमारे दिल की बात समझ पाये। हम कितना तड़प रहे हैं शायद इसका अन्दाजा तुम्हें नहीं होगा। और हो भी कैसे तुम ठहरे अकेला…..यहाँ तो परिवार में रहते हुए भी तुम्हारे कहने पर हमने सोशल डिस्टैन्सिंग का पालन अभी तक किया हुआ है। अरे बदर्दी 7 महीने कम नही होते, रड़ुआ की जिन्दगी जीते………कुछ तो कर। अनलॉक भी उठा ले। कर दे सामान्य स्थिति की घोषणा। हम जैसे देश वासी तेरा शुक्रगुजार रहेंगे।
हिज़ाब, नक़ाब और मास्क ये तीनों समानार्थी शब्द हैं। लेटे-लेटे मेरे हुजूर का वह कर्णप्रिय गाना जिसके बोल…….रूख से जरा नक़ाब हटा दो मेरे हुजूर, जलवा फिर एक बार दिखा दो मेरे हुजूर……। जितेन्द्र और माला सिन्हा जैसे बॉलीवुड के दिग्गज स्टार्स तो याद आ ही रहे हैं साथ ही हम इन्तजार की इस घड़ी में बस इतना ही चाहते हैं कि स्थिति सामान्य हो और हम भी मचलते हुए जज्बात को कम से कम हमउम्र महिलाओं से कह सके। हालांकि हमारी उम्र अब ऐसी नहीं है कि हम युवकों की तरह अपनी एक्टिविटी का प्रदर्शन कर करें फिर भी दिल है कि मानता नही। आप यह भी मान सकते हैं कि मरहूम कादर खान साहब की फिल्म उमर 55 दिल बचपन के किरदार की तरह हमारी स्थिति हो गई है। यह स्थिति तब बनी जब कोरोना काल में लॉकडाउन और सरकार द्वारा गाइडलाइन्स का पालन करने की बाध्यता रखी गई।
मास्क और सोशल डिस्टैन्सिंग ये दो शब्द हमारे लिए काफी हानिकारक हैं। मास्क पहनकर सामाजिक दूरी बनाते हुए रहने को विवश हम तड़पते दिल में अपने अरमानों का गला घोंट रहे है। गाइडलाइन के अनुसार घरों से बाहर तभी निकलते हैं जब अति आवश्यक कार्य हो, और वह कार्य है शाम को गली-कूचों और बाजार में सौन्दर्य दर्शन का। मतलब यह कि शाम को शहर के मार्केट में घूम टहलकर महिलाओं के हाव-भाव और उनकी खिल खिलाती हंसी देख सुनकर आनन्द उठाता हूँ। लेकिन वह भी आधा-अधूरा। सौन्दर्य का सम्पूर्ण दर्शन लाभ न मिल पाने की वजह से टहलना-घूमना बेमानी सा होकर रह जाता है। एक बात बता दूँ इस अवधि में हमने अपने श्वेत हुए केशों को हिज़ाब की तर्ज पर खिज़ाब लगवाकर एकदम से स्याह करा लिया है। और दाढ़ी मूंछ सफाचट। कपड़े भी लकदक पहनकर अपनी गली में इस कदर चहलकदमी करता हूँ, जैसे उत्तर प्रदेश की राजधानी नवाबों के शहर लखनऊ में किसी जमाने में लोग हजरतगंज में घूम-टहलकर गन्जिंग किया करते थे।
कहते हैं कि जो चीज पोशीदा होती है उसी की तरफ सभी की निगाह जाती है। आजकल हर कोई अपने मुँह/चेहरे को मास्क से पोशीदा रखते हुए घरों से बाहर निकल रहा है। तब ऐसे में मास्कधारी महिलाओं और पुरूषो को देखने की उत्सुकता और बढ़ी हुई है। पोशीदा शब्द इस्तेमाल करने से अमर, अकबरपुर, एन्थॉनी की वह कव्वाली याद आने लगी, जिसमें अपने अब्बा के साथ बुर्खा में बैठी नीतू सिंह (कपूर) अपने प्रेमी ऋषी कपूर यानि अकबर की कव्वाली का आनन्द उठा रही थीं। उस कव्वाली के बोल कुछ इस तरह हैं- पर्दा है पर्दा, पर्दे के पीछे पर्दानशीं हैं, पर्दानशीं को बेपर्दा न कर दूँ तो अकबर मेरा नाम नहीं…..।
ये तो रहे हिज़ाब और नक़ाब शब्दों के प्रयोग वाले कुछ ऐसे गानों की लाइनें, जिनका जिक्र करना यहाँ लाज़िमी हो गया था। कभी लोग विशेषकर मुझ जैसे मनचले पुरूष आधुनिक परिधान से लकदक युवतियों को देखकर फब्तियाँ कसते हुए गाते थे कि- गोरे, गोरे मुखड़े पे काला-काला चश्मा….तौबा खुदा खैर करें खूब है करिश्मा……..अब जबकि सभी के मुँह मास्क से ढके हुए हैं, तब इस तरह के गीत-गानें कम ही सुनाई पड़ रहे हैं।
भाइयों और बहनों आप से और कुछ नहीं कहना है बस इतना ही कहूँगा कि वैश्विक महामारी कोरोना, कोविड-19, लॉकडाउन, अनलॉक, मास्क, सैनिटाइजर, सोशल डिस्टैन्सिंग, क्वारंटीन, आइसोलेशन इन ढेर सारे शब्दों की जानकारी मुझे इसके पहले नहीं थी। इस कथित कोरोना काल में इन सबकी जानकारी हुई। जीवन धन्य हो गया, और हो भी क्यों न। अभी तक जिन्दा हूँ। पहले हल्ला-गुल्ला ज्यादा था कि 70 वर्ष के आस-पास के लोग कोरोना की चपेट में आसानी से आ जाते हैं। इसलिए इनका आइसोलेशन आवश्यक है। अकारण घरों से न निकलें। मैंने जिन्दगी को अनमोल माना और एक तरह से 144 वर्गफुट कमरे में कैद होकर रह गया। पुरानी कथरी 50 साल पुराना तखत होने वाली पीठ मे दर्द इस बात का गवाह है कि हमने 7 महीने तक लाकडाउन प्रोटोकाल का पालन किया है और भविष्य में भी करते रहेंगे।
जऩाब पीएम आपसे इल्तेजा है कि बच्चों का स्कूल खोल दें, देश में सामान्य स्थिति बहाली की घोषणा करें। कोरोना की क्या मज़ाल कि वह देश वासियों का प्राण ले सके। बेहतर होगा कि जल्द मन की बात प्रोग्राम में देश में सामान्य स्थिति बहाली की घोषणा करें। हम आपके शुक्रगुजार होंगे। हम आपसे वादा करते हैं कि जब भी कलम कागज उठायेंगे, हिज़ाब, नक़ाब और मास्क का जिक्र कत्तई नहीं करेंगे। यह मेरा वादा चुनावी नहीं है। एक कलमकार द्वारा कही गई स्पष्ट बात है। इन्तजार है कि जल्द ही आप द्वारा देशवासियों के हित में सकारात्मक कदम उठाया जायेगा। अब तो लगभग हर व्यक्ति आत्मनिर्भर हो चुका है। बता दूँ कि हमने इस भयंकर बरोजगारी में मूल व्यवसाय छोड़कर गली-गली घूमकर सब्जी आदि बेंचने का काम शुरू कर दिया है। महंगाई का यह आलम है कि सब्जी का राजा आलू भी अब आम आदमी की पहुँच से बाहर हो गया है। हम तो मास्क भी पुराने-फटे कपड़ों का सिलकर धारण कर रहे हैं। इसलिए नहीं कि इससे कोरोना आक्रमण से बचेंगे अपितु पुलिस के डण्डे की मार से बचाव के लिए ऐसा करना पड़ रहा है। अब आप समझ सकते हैं कि हम सभी कितना आत्म निर्भर हो चुके हैं।

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
वरिष्ठ नागरिक/स्तम्भकार
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)
9125977768, 9454908400

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