निर्भया

डॉ. फरग़ाना
निर्भया तुम बार-बार क्यों आती हो
रूप बदल-बदल कर
कभी आशा कभी मीना बनकर
कभी हाथरस में
कभी सीकर में
आख़िर कितनी निर्लज्ज हो तुम
शर्म तुम्हें क्यों नहीं आती
इतने छोटे कपड़े पहनती हो
पर पिंकी ने क्या किया था?
वो तो है ही इतनी छोटी
जितनीे उसके कपड़े छोटे-छोटे
फिर उसके साथ भी तो …..
निर्भया! तुमको शर्म क्यों नहीं आती
तुम क्यों घूमने जाती हो
अपने दोस्तों के साथ
तुम कार क्यों चलाती हो
तुम तो प्लेन भी उड़ाती हो
तुम माउंट एवरेस्ट पर भी चढ़ गयी
बहुत ही निर्लज्ज हो तुम तो
चांद पर भी चली गयी
पर जब तुम घास काट रही थी
तुमको पता क्यों नही चला
उसमें एक ज़हरीला कीड़ा भी था
पर तुम्हारी निर्लज्जता तो देखो
तुमको कीड़े ने काट लिया है
तुमको लाज शरम कुछ नहीं
पर तुम बोलती बहुत हो
तभी तो तुम्हें सच बोलने की ख़ातिर
जलते हुए शरीर के साथ
रेल्वे स्टेशन पर भागना पड़ा था
लाज लुटाकर भी तुम्हें
जलना पड़ा था
तुम निर्लज्ज हो इसलिये तो तुम
दुतकारी जाती हो
प्राचीन समय से ही
क्या तुमको अपना इतिहास याद नहीं
फिर भी तुम कोशिश करती हो
समाज में बराबरी की?
देख लिया ना अन्जाम
अपनी इस जुर्रत का
मलाला बनकर गोली खाई
पढ़ने गयी थी ना तुम कालेज …..
और तरक़्क़ी करो
निकलो घर से तुम
तुमको यूंही किया जायेगा
शरमसार बार-बार लगातार
तुम्हारी इज़्ज़त को किया जायेगा
तार-तार बार-बार लगातार
क्योंकि तुम अब बग़ावत जो
करने लगी हो
फूलन देवी बनकर …..?

डॉ. फरग़ाना

परिचय
डॉ. फरग़ाना का जन्म राजस्थान जयपुर में हुआ। आपकी शिक्षा जयपुर महारानी कॉलेज एवं राजस्थान विश्वविद्यालय से हुई। एम.ए. उर्दू गोल्ड मेडल लेकर किया। एम. फिल एवं पीएच.डी. के बाद बैचलर ऑफ जर्नलिज़्म किया। आपने बीकानेर डूंगर कॉलेज, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में अध्यापन का कार्य किया एवं साथ-साथ वार्डन के पद पर भी कार्यरत रहीं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की महिला फैलोशिप के अन्तर्गन 2011 से 2016 तक आपने राजस्थान विश्वविद्यालय में पी.डी.एफ. के पद पर रहते हुए एक प्रोजेक्ट पर कार्य किया। वर्तमान समय में अपेक्स विश्वविद्यालय, जयपुर में वार्डन एवं असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं एवं समाजसेवा से भी जुड़ी हुई हैं। काफी समय से लेखन का कार्य भी कर रही हैं। विभिन्न विधाओं में कविता लेख, अफसान्चे, बच्चों की कवितायें एवं किताबें लिखी हैं, ड्रामे पर काफी काम किया है एवं उत्तर आधुनिकता पर काफी काम किया है।
डॉ. फरगाना उर्दू एवं हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखती हैं। उर्दू ड्रामे पर दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं एवं कई पुस्तकों पर अभी काम चल रहा है जो जल्द ही प्रकाशित होने वाली हैं। अब तक 60 से अधिक लेख प्रकाशित हो चुकी हैं एवं 50 से अधिक राष्ट्रीय एवं अर्न्तराष्ट्रीय सेमीनारों में पत्रवाचन कर चुकी हैं। डॉ. फरगाना की पुस्तक को राजस्थान उर्दू एकेडमी से अवार्ड भी मिल चुका है एवं बहुत से अन्य अवार्ड भी मिल चुके हैं। महिला सशक्तिकरण पर भी अवार्ड मिला है।

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