युगप्रवर्तक स्वामी विवेकानंद Part 2

dr. j k garg
इतिहास साक्षी है कि युग प्रवर्तक और मनीषीयों का जीवन काल साधरणतः अल्प कालीन ही होता हे, ऐसे ही युग प्रवर्तकों में स्वामी विवेकानन्दजी भी थे | इन्होनें अपने उन्तालीस वर्ष की अल्पायु (12 जनवरी 1863से 4 जुलाई 1902) में जो काम किये उसके लिये मानव मात्र हजारों साल तक उन्हें याद करेगा । स्वामीजी कहा करते थे कि “अतीत की नीवं पर ही भविष्य की श्रेष्टताओं का निर्माण होता है । विवेकानन्दजी सन्त होने के साथ एक महान देशभक्त, श्रेष्ट वक्ता, मूलविचारक, प्रख्यात् लेखक एवं मानवतावादी भी थे। अमरिका में संगठित कार्य के चमत्कार से स्वामीजी अत्यंत प्रभावित हुए थे। उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें भारत में भी इस संगठन कौशल को पुनर्जिवित करना है | विवेकानंदजी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर सन्यासियों तक को संगठित कर उन्हें समायोचित उत्तम कार्य करने का प्रशिक्षण दिया था | अमेरिका से लोटने पर स्वामीजी ने भारतीयों से नये स्फूर्तिपूर्ण भारत के निर्माण हेतु आह्वान किया | भारत की जनता भी स्वामी जी के आह्वान पर अपने उत्थान हेतु गर्व के साथ निकल पड़ी। स्वामी के वाक्य”‘उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ, अपने मानव जीवन को सफल करो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये |

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