“संताचरण”

हेमंत उपाध्याय
एक बार राष्ट्रीय एकता के तहत सरकार ने सर्वधर्म हितार्थ हेतु सभी धर्मों के प्रतिष्ठित धर्मावलंबियों व प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया ।
सरकारी खर्च पर राजधानी के पाँच सितारा होटलों में ठहराया। दैनिक यात्रा व भ्रमण हेतु ए.सी. कार की सुविधाएँ उपलब्ध कराईं। आपसी मंथन हेतु सर्वसुविधायुक्त पांडाल में विशाल मंच बनाया। सबको बोलने का अवसर दिया।
अंतिम दिन ये निष्कर्ष निकला कि हर शहर में सरकारी खर्च पर सबके धर्म के धार्मिक स्थल बनाए जाएँ, धर्मगुरुओं के प्रवचन कराए जाएँ, एवं उनका व्यय सरकार उठावे ।
एक साधारण भारतीय वेशभूषा वाले व्यक्ति को सबके विरोध के बाद बोलने के लिए दो मिनट पत्रकारों के आग्रह पर मिल ही गये।
उस सादगी पूर्ण महाशय ने एक प्रस्ताव रखा जिसका तर्क पूर्ण विरोध हुआ। कोई ने कहा ये आज का विषय नहीं है। एक ने कहा- इसका धर्म से कोई संबंध नहीं है। ये हमारा काम नहीं है। एक ने तो पूरजोर विरोध करते हुए कहा- न तो वक्ता साधुसंतों व अतिथियों की आमंत्रित सूची में है और न ही कोई धर्म विशेष का है। इसके प्रस्ताव को कार्यवाही से हटा दिया जाए। सबके विरोध के बाद उसके प्रस्ताव को विलोपित कर दिया गया। वो प्रस्ताव था – सभी धर्मावलंबी शक्तिशाली हैं। हम सब धर्म से व जात-पात से हटकर देश हित की बात करते हुए, हम सभी सरकारी संस्थाओं और उपक्रमों के निजीकरण को रोकें।

हेमंत उपाध्याय साहित्य कुटीर पं. रामनारायण उपाध्याय वार्ड क्र 43 खण्डवा म.प्र. 450001 [email protected]

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