‘अपेक्षा ही दुःख का कारण”

बाजार से हमने अगर एक मटका और एक गुलदस्ता साथ में खरीदा हो और घर में लाते ही 50 रूपये का वह मटका टूट गया तो हमें इस बात का दुःख होता है क्योंकि मटका इतनी जल्दी फूट जायेगा ऐसी हमें कल्पना भी नहीं थीं। परंतु गुलदस्ते के फूल जो 100 रूपये के हैं, वो शाम तक मुरझा जाएं, तो भी हम दुःखी नहीं होते। क्योंकि ऐसा होने ही वाला है, यह हमें पता था किन्तु मटके की इतनी जल्दी टूटने की हमें अपेक्षा ही नहीं थी, इसलिए टूटने पर दुःख का कारण बना। परंतु​ फूलों से अपेक्षा नहीं थी, इसलिए​ वे दुःख का कारण नहीं बनें। इसका मतलब साफ़ है कि जिसके लिए जितनी अपेक्षा ज़्यादा, उसकी तरफ़ से उतना दुःख ज़्यादा और जिसके लिए जितनी अपेक्षा कम, उसके लिए उतना ही दुःख भी कम। जीवन में हमारे साथ हमेशा ऐसा होता हैं।रिश्ते नातो से हमे हमेशा अपेक्षा रहती हैं और वह पूरी ना होंने पर दुख का कारण बन जाते हैं। और ठीक उल्ट कुछ अनाम रिश्ते जीवन को रोशन कर जाते हैं क्योकि उनसे हमारी अपेक्षा नही होती हैं।जीवन में आगे बढ़ना हैं तो अपेक्षा को तो त्यागना ही होगा।.

dinesh garg
dineshkgarg.blogspot.com
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