किताबें ही किताबें हास्य-व्यंग्य

(गत दिनों मनाय़े गए विश्व पुस्तक दिवस के लिए विशेष)

‘किताबें ऐसे काबुली दस्तें है जिन्हें पढकर
बेटें अपने बापको खप्ती समझते है”…अकबर ईलाहाबादी

शिव शंकर गोयल
कहते है कि साहित्य समाज का दर्पण होता हैं. कुछ दिनों पूर्व पुस्तक मेलें में विभिन्न स्टालों पर आई कुछ किताबें इस बात का प्रमाण हैं. इनमें एक किताब थी ‘मिलावट के 101 नुस्खें” जो चावडी बाजार, खारी बावली, दिल्ली से प्रकाशित हुई हैं. यह कईयों के लिए बडी उपयोगी किताब है. हो सकता है कि इस बार इसे साहित्य संस्था का कोई पुरस्कार भी प्राप्त होजाय.
इसमें किरयानें की छोटी-बडी चीजों में तरह तरह की मिलावट के गुर बताये गए हैं. मसलन कालीमिर्च में पपीते के बीज मिलाकर उसमें कुछ पानी एवं उडनशील तेल की मात्रा मिलाई जाय तो अच्छी चमक आजाती हैं. पिसे धनिये में घोडें की लीद, कुटटू के आटें में मिलावट आम बात है. इसी तरह दालों में चमक लाने हेतु कैमिकल्स की पालिश इत्यादि परम्परागत नुस्खें तो है ही साथ ही सिंथेटिक दूध, नकली पनीर, एवं मावा बनाने की आधुनिक विधियों का सम्पूर्ण विवरण भी पाठकों को इस किताब में मिल जायगा. इस बहुपयोगी किताब के विमोचन के समय जब एक पत्रकार ने इसके अनुभवी लेखक से अकस्मात यह पूछ लिया कि असली और नकली घी में क्या फर्क है तो उसने बडी सहजता से जवाब दिया कि जो बाजार में मिलता है वह नकली और जो कही नही मिलता उसे असली घी कहते हैं.
हायर चापलूसी:- इसका शीर्षक प्रसिद्ध गणितज्ञ हाल एन्ड नाईट की किताब ‘हायर एलजबरा” की तर्ज पर रखा गया प्रतीत होता हैं. इसमें उदाहरण दे देकर उॅचें दर्जें की चापलूसी करने के तरीकें बताये गए हैं. जैसे आपातकाल में एक नेताजी ने ‘इंडिया इज इंदिरा एन्ड इंदिरा इज इंडिया” कह कर न केवल अपने देश तथा दल का नाम रौशन किया बल्कि अपना नाम भी ईतिहास में अमर करा लिया.
कुछ सालों पूर्व बिहार के एक नेता ने ‘युवराज” की तुलना जयप्रकाश नारायण से और पिछले दिनों वेंकैया नायडू ने नरेन्द्र मोदी को भारत के लिए वरदान बताकर अपना खुदका कद भी बहुत ‘उॅचा कर लिया. ऐसे कई कई उदाहरण इस पुस्तक में हैं. जो पाठक ‘खानदानी दवाखानें” की किसी दवा या बिना कोई कसरत के अपना कद उॅचा करना चाहे वह इस किताब से प्रेरणा लेकर आगे बढ सकता हैं.

आतंकवाद से मुकाबला :- वर्तमानयुग में कई तरह के आतंकवाद के साथ साथ घरेलू आतंकवाद का अपना स्थान हैं. इसके चलते कई भुक्तभोगी अपने घरों में किस तरह रह रहे है यह बात किताब के निम्न उद्धरणों से आपको स्पष्ट होजायगी.

खाकसार के मोहल्लें में एक पहलवान रहते थे. उनकी बडी धाक थी. एक रोज किसी काम से मेरा उनके घर जाना हुआ. वह ड्राइंग रूम में बैठे दाल-रोटी खा रहे थे. मैं-लेखक-उनके पास ही बैठ गया. संयोग की बात थोडी देर बाद उनके खाने में कुछ कंकर आगए जिससे कड-कड की आवाजें आने लगी. यह आवाज रसोई में काम कर रही उनकी पत्नि ने भी सुनी तो वह वही से बोली ‘क्या दाल में कंकर ज्यादा है इस पर पहलवान साहब ने मिमियाते हुए जवाब दिया कि ‘नही नही ज्यादा तो दाल ही है.

‘एक सीनियर आइएएस थे. बडे रूआब में रहते थे. आफिस में उनके हुकम को कोई नही टाल सकता था. एक रोज वह अपने ड्राइंगरूम में बैठे थे मेरा किसी काम से उनके यहां जाना हुआ. इतने में ही उनका लडका वहां आगया और अपने पिताजी से बोला कि मुझे बाहर खेलने जाना है और मम्मी जाने नही दे रही. इस पर दोनों ने आपस में कुछ तय किया. तत्पश्चात अफसर ने उॅची आवाज में अपने लडके से कहा कि ‘नही बन्टू ! तुम बाहर खेलने नही जाओगे यह सुनते ही मेमसाहब जो किसी और कमरें में थी, वही से बोली ‘जाओ बन्टू खेलने जाओ. देखूं कौन रोकता है ऐसे कई उदाहरण और चित्र पुस्तक में हैं. घरेलू आतंकवाद के मुकाबले हेतु यह किताब बडी उपयोगी एवं पठनीय हैं. हर गृहस्थ को मंगाकर घर में रखनी चाहिए.

रिश्वत विज्ञान, इस किताब की लेखिका रक्षा सौदों की जानी-मानी हस्ती रही हैं. उनके संबंध मीडिया के कतिपय तत्वों के साथ साथ सरकारी हलकों के बडें बडें लोगों से भी हैं और अपने लम्बें अनुभव के आधार पर निकाले गए निचोड से ही उन्होंने यह पुस्तक लिखी हैं. पुस्तक के अंत में अतिरिक्त परिशिष्ट जोडकर भविष्य में किसी सौदावार्ता का ‘टेप रिकार्ड न पकडा जाय इसके लिए सावधानियां भी बताई गई हैं. पुस्तक हिन्दी एवं इंगलिश दोनों भाषाओं में है और किसी को वारें-न्यारें करने हो तो उसके लिए पढने-गुणने लायक हैं.
चुनावी हथकंडें:- यह किताब चार भागों में है जो क्रमश ग्रामपंचायत, नगरपरिषद, विधानसभा और लोकसभा चुनाव लडनेवालों को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं. इसमें जातिवाद प्रांतियवाद भाषा एवं धर्म के नाम पर मजहब और साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने के गुर तथा धार्मिक भावनाओं को भुनाने के तरीकें बताये गए हैं. इस काम के लिए खाप पंचायतों जातिगत शिक्षण संस्थानों एवं धार्मिक स्थलों के उपयोग एवं छदम नामों से अपील फतवें और चित्र जारी करने के नमूनें भी दिए गए हैं. जनताकी सेवा किए बिना चुनाव जीतने के लिए बडी काम की पुस्तक हैं.
दिलचस्प बात यह थी कि जिस स्टाल पर यह किताब बिक रही थी उसके आस-पास जगह जगह ‘वोट बैंक आपका बैंक के बोर्ड भी लगे हुए थे. वोट बैंक पर कैसे डाका डाला जाय यह भी इसमें बताया गया हैं.
रचनात्मक भूगोल:- इस पुस्तक में ‘पृथ्वी गोल है को सिर्फ किताबी ज्ञान की बजाय तरह तरह के उदाहरण देकर सिद्ध किया गया हैं. मसलन एक उदाहरण में बताया गया है कि एक भक्त मंदिर के पास स्थित हलवाई की दुकान से मिठाई खरीदकर भगवान के चढाता हैं. मंदिर में पुजारी के चेलें उस मिठाई को तहखानें में इकटठा करके अतिरिक्त मात्रा वापस हलवाई तक पहुंचा देते हैं. हलवाई उसको वापस भक्तों को बेच देता हैं. इस तरह मिठाई में घूमकर वापस वही पहुंच जाती हैं जहां से चली थी जो यह सिद्ध करती है कि पृथ्वी गोल हैं.
दूसरें उदाहरण में मरीज का तिमारदार सरकारी अस्पताल के आपरेशन थियेटर में इलाज करवा रहे अपने रिश्तेदार के लिए इन्जैक्शन दवाईयां ग्लूकोज की बोतलें लाकर कम्पाउंडर को देता हैं. कुछ काम आती है कुछ नही आती. बाकी वापस कम्पाउंडर साहब मेडीकल स्टोर में पहुंचा आते हैं. मेडीकल स्टोर वापस उन्हें किसी और मरीज को बेच देता हैं. ऐसे कई उदाहरण है जो इस किताब की सार्थकता सिद्ध करते हैं.
महामूर्खता अंक:- इसके पहले इसी पत्रिका के ‘महामूढ अंक ‘धूर्त अंक ‘लालची अंक इत्यादि भी निकल चुके है जो काफी बिकें. आधुनिक कबूतरबाजी-नौकरी के झांसें में विदेशों में भेजना-घर घर जाकर भोलेभालें लोगों को सोना दुगना करने अथवा साल छः महीनें में ही जमापूंजी को दुगना करनेवाली कम्पनी परिवार की ही पत्रिका हैं.
उपरोक्त पुस्तकों के अलावा कुछ और किताबें भी है जो पढने काबिल हैं. जैसे ‘किसी संस्थान में समस्या कैसे खडी करें रिश्तेदारी में शादी-विवाह होने पर बवाल कैसे मचाया जाय किसी संस्था को निष्क्रिय कैसे किया जाय ‘पडौसियों से कैसे लडें इत्यादि. आशा है इच्छुक पाठकगण इसका फायदा उठायेंगे.

शिव शंकर घोयल

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