शांति की तलाश

Dinesh Garg
मानव स्वभाव में हम प्राय: अपने द्वारा किए गए कार्यो के परिणाम पर गौर अधिक करते है, यदि परिणाम सापेक्षित रहता है तो खुशी मिलती है और शांति का आभास होता है और इसके ठीक विपरीत यदि अगर असफलता हाथ लगती है तो खुशी और शांति के स्थान पर मायूस हो जाते है। यही अंशात मन जीवन को निराशा में धेर लेता है। क्या हम ऐसा नहीं कर सकते है कार्य के दौरान मिली खुशाी का अहसास करना प्रारंभ कर दे तो परिणाम से दुख ही नहीं मिलेगा।
गीता में भी श्रीकृष्ण ने कर्म के महत्व को इंगित किया है, परिणाम को नहीं इसलिए हमें यह सोच बदलनी होगी कि मंजिल ही हमारी खुशी होगी। यदि आप किसी भ्रमण के लिए जाते है तो आने वाले मार्ग में भी आपको खुबसूरती के नजारे महसूस करने चाहिए। अंतिम लक्ष्य के साथ साथ आपको रास्ते भर की खुशी का आंनद भी लेना चाहिए। एक बार यदि हमने यह समझ लिया कि जीवन तो एक यात्रा है खुशी हमें ही तलाशनी होगी। जिदंगी खुशी नहीं देती लेकिन हम अपनी जिदंगी में खुशी और शांति स्वयं लाते है। कार्य के दौरान हमें मिली खुशी का अहसास भर ही हमारे आगे के मार्ग को और अधिक खुशनुमा बना देगा। जीवन में अधिकांश हम यहीं धोखा खा जाते है हम ना जाने किस अंधी दौड़ में दौड़ रहते है और अंत में कुछ हासिल नहीं होता तो मायूस हो जाते है जबकि जिदंगी जीना सिखाती है मायूस होना नहीं। एक बात और यदि जीवन में हमें शांति का अहसास करना है तो हर पहलू से शिकायत करना समाप्त करना होगा। यह सत्य है कि दुनिया ऐसी ही है और ऐसी ही रहेगी, आप अपने मुताबिक दुनिया को नहीं बदल पाएंगे ऐसे में हमेशा शिकायत क्यूं करे ? सरकार यह नहीं कर रही है, बच्चे परिजन मेरे मुताबिक नहीं चल रहे, यह गलत हो रहा है वह गलत हो रहा है के स्थान पर जीवन की खुबसूरती, परिजनो की मुस्कराहट को देखने की आदत डाल लेेगे तो शांति का अहसास स्वत: ही होने लगेगा। शांति बाहर नहीं मिलती यह तो हमें भीतर ही तलाशनी होगी। क्या आप इसके लिए तैयार होगें। जबाव का इंतजार रहेगा। COMMENT ME ON 9414004630
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