बनादे बहरा मुझे भगवान, बनादे बहरा ! हास्य-व्यंग्य

शिव शंकर गोयल
शहर के कई मंदिरों एवं देवालयों में आजकल यह भजन अकसर सुनने को मिल जाता है. इसमें वरिष्ठ (नागरिक) भक्तगण माईक लगाकर जोर जोर से समवेत स्वरों में ईश्वर से यह मांग कर रहे होते है कि तू हमें बहरा बनादे. इन भक्तों में उम्र के दूसरें पडाव के वह लोग ही ज्यादा शामिल है जिनके सिर पर हालांकि घने बाल नही है लेकिन फिर भी उनकी ‘मांग’ है कि हे परमेश्वर ! हमें बहरा बनादे. आप कहेंगे कि जब बाल ही नही है तो ‘मांग’ कैसी ? सुनने में थोडा अजीब तो लगता है लेकिन मांग है तो हैं. खैर,
मुझें ऐसे भजन कीर्तन में जाकर बैठने से कई गुर की बातें पता लगी. बिना कोई ‘स्टिंग ऑपरेशान’ अथवा सीबीआई जांच कई रहस्योदघाटन मालुम हुए. मसलन यहां आपसी बातचीत में बताया गया कि बहरा बनने की मांग के पीछे ‘स्वांत सुखाय:’ अर्थात खुदका सुख का सिद्धांत भी है और यह भी है कि ‘जो सुख चावै जीव को तो बुद्धू बन कर रह’. थोडी देर के लिए मान लीजिए कि भगवान ने आपकी प्रार्थना सुनली,जोकि सुनेगा ही, तो सबसे बडा फायदा तो आपको अपने घर में ही होगा. बीबी आप पर लाख चिल्लायें, झल्लायें लेकिन आप पर उसका कोई असर नही होगा उल्टे आप मुस्कराते रहेंगे. इससे आपका स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा.
वह आपको सब्जी लाने के लिए कुछ कहती रहेगी लेकिन आप झूठ-मूठ समझने की ऐक्टिंग करते हुए गरदन हिलाते रहेंगे. यह बात दीगर है कि भलेही आप बाजार से अपनी मनमरजी या दुकानदार की इच्छा से आलू की जगह प्याज या प्याज की जगह टमाटर उठा लाएं, आखिर सब्जी ही तो बननी हैं.
घर में सास-बहू दोनों इस फन्डें पर चलने लगे तो सोने में सुहागा हो जायेगा या दोनों में से कोई एक भी इसे अपनाले तो कलह धीरे धीरे कम होते होते समाप्त प्रायः होजायेगी. मुझे यह रहस्य जिस व्यक्ति ने बताया उसका दावा था कि यह ‘नुस्खा’ आजमूदा है अर्थात आजमाया हुआ है. उसने तो यहां तक दावा किया कि भगवान तो सुनेगा जब सुनेगा आप तो आजसे ही यह मानकर चले कि आपको कम सुनाई देता हैं. फिर देखना आप इसका आनंद !
कीर्तन मंडली में बैठे एक अन्य सज्जन, जो हाव-भाव से सरकारी अफसर-कर्मचारी लग रहे थे, हमारी बातचीत के बीच में ही कूद पडे और बोलें ‘आप क्या बात करते है ? बहरा बनने का सबसे बडा फायदा जनसेवासे जुडे सरकारी विभाग के लोगों को हैं. यह लोग इस फन्डें पर बिलीव करते है कि ‘लोगों का काम है शिकायत करना, करते रहेंगे’. शहर में पानी नही आरहा है, बार बार पावर कट हो रही है, नगर में गुन्डागर्दी बढ रही है,सडकों पर गढ्ढें हो रहे है इत्यादि और न जाने क्या क्या समस्याएं है जिनके लिए दफतर में टेलीफोन आरहे है, लोग दफतरों के चक्कर लगा रहे है, धरना-प्रदर्शन हो रहे है परन्तु आपको इससे क्या ? आपको तो कुछ सुनाई ही नही देता, है ना ?
इतना ही नही पासही बैठे एक बुजुर्ग सज्जन ने तो यह रहस्योदघाटन तक कर दिया कि मैं तो इस थ्योरी पर विश्वास करता हूं जिसमें कहा गया है कि ‘नशा करे तो ऐसा कर, जैसे पीली भंग. घर के जाणै चला गया, आप करै आनंद.’
बुद्धिमानों, जानकारों की कही कोई कमी नही हैं. शासकीय हलकों से जुडें एक सज्जन, जो कीर्तन में जोर जोर से ताली बजा रहे थे हालांकि आंखें मूंदे हुए थे लेकिन कभी कभी कनखियों से मेरी तरफ देख लेते थे, बोले कि अधिकांश जनप्रतिनिधी, मंत्री, पार्षद इत्यादि भी उस फार्मूलें पर काम करते है जिसका वर्णन एक कवि-श्री कृष्ण कल्पित- ने अपनी निम्न कविता में किया हैः-
‘राजा रानी प्रजा मंत्री, बेटा इकलौता, मां से सुनी कहानी जिसका अंत नही होता.
……राजा राज किया करता था, राजा राज करै.
प्रजा भूख मरा करती थी, प्रजा भूख मरै.
मैं भी अब इस कहानी का दर्द नही ढोता. राजा रानी…..’
और इस फन्डें पर तबही काम किया जा सकता है जबकि हम बहरें बन जाय और जब तक भगवान हमारी सुने कम से कम तब तक हम बहरा बनने का नाटक तो करें.
मैंने उन्हें कहा, नही, नही वह सबकी सुनता है अतः आपकी भी सुनेगा. आप तो गाते रहिए
‘बनादे बहरा मुझे भगवान, बनादे ….’

शिव शंकर गोयल

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