धर्म की कट्टरपंथी विचारधारा वाले तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी वापसी बडी जोर शोर से कर ली है। रास्ता अमेरिका ने ही दिया, माहौल पाकिस्तान ने बनाया, अफगान सरकार ने घुटने टेके। हमारे देश की सरकार भी कुछ सालों से पर्दे के पीछे तालिबान से गुटरगूं करती रही। हमारे देश की सरकार को आभास था कि अमेरिका ने तालिबान से समझौता कर अपनी फौज अफगानिस्तान से हटाई तो तालिबान सत्तासीन हो सकता है इसलिए तालिबान से बातचीत को पर्दे के पीछे रखा गया।
हमारे देश में कुछ बुद्विजीवियों ने भारतीय मुसलमानों पर तालिबान का प्रभाव पडने और उससे साम्प्रदायिकता फैलने का अंदेशा जाहिर किया है। कुछ ने कहा कि भारतीय मुसलमानों को तालिबान की निंदा करनी चाहिए, देशप्रेम दिखाना चाहिए। हकीकत यह है कि मुसलमान चाहे भारतीय हो या विश्व के किसी भी देश का नागरिक, वो कुरआन की शिक्षाओं, हिदायतों को अच्छी तरह जानता है और आज तालिबान की जिन बातों का प्रभाव मुसलमानों पर पडने की आशंका जताई जा रही है वो नादान नहीं जानते कि सात साल की उम्र से हर मुसलमान का बच्चा मदरसे में कुरआन की तालीम पाने लगता है। बालिग होने पर इस्लामी कानून के बारे में भी थोडा बहुत जानने लगता है और दुनियाभर में यह सिलसिला चौदह सौ सालों से बराबर चल रहा है। लेकिन मुस्लिम समुदाय इस्लाम की कट्टर बातें या अपराध पर सजा की जानकारी अपने घरों तक ही सीमित रखते हैं वो जानते हैं कि आधुनिक विचारों वाले हमारे देश में और ना ही विकसित देशों में ऐसा होना संभव नहीं है। सउदी अरब हो या संयुक्त अरब अमीरात के प्रिंस, सभी आधुनिक विचारों वाले हैं यह बात और है कि 1998 में अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को मान्यता देने वाले तीन देशों में दो देश सउदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ही थे। तीसरा देश पाकिस्तान था। इससे पहले तालिबान को फंडिंग भी सउदी अरब से मिलती थी क्यूंकि तालिबान इस्लाम की सुन्नी मुस्लिम विचारधारा का प्रचार प्रसार कर रहा था। अर्थ साफ है कि तालिबानी विचारधारा असल में सुन्नी मुस्लिम विचारधारा है। हमारे देश के साथ साथ दुनिया के मुस्लिम देशों में सबसे अधिक आबादी सुन्नी मुस्लिम विचारधारा की है। फर्क इतना है कि तालिबान जिस इस्लामी तौर तरीके से शासन करने का ख्वाब पाले है वो हिंसा के बल पर करना चाहता है। तालिबान की यही ंिहसक प्रवृत्ति दुनिया में उसे खलनायक बनाए हुए है। भारतीय मुसलमान तालिबान की हिंसक प्रवृत्ति को कभी मान्यता नहीं देगें और ना ही उनका सीधा समर्थन करेंगें।
– मुजफ्फर अली
