आप बीती – जग बीती

शिव शंकर गोयल
बचपन में हम लोग जिस स्कूल में पढा करते थे वह पहाडों वाली स्कूल कहलाती थी. पहाडों वाली स्कूल का मतलब यह नही कि वह स्कूल किसी पहाडी पर बनी हुई थी. वह तो एक साधारण सी स्कूल थी जिसमें बच्चों को जोर जोर से बोल कर पहाडें यानि गणित के टेबल्स याद कराये जाते थे. इस का नतीजा यह हुआ कि न केवल वहां पढने वालें बच्चें बल्कि पास-पडौस में रहनेवाली गृहणियां भी साक्षर होगई. इसका पता तब लगा जब 1961 की जनगणना में वहां की साक्षरता अनुमान से अधिक निकली.
हमारी इस स्कूल के मास्टर लपटया पंडित कहलाते थे वैसे उनका असली नाम कुछ और ही था लेकिन वह लपटया पंडित के नाम से ही जाने जाते थे. यह नाम कैसे पडा यह राज की बात सी बीआई की जांच का विषय हैं, अगर वह बिना किसी सरकारी दवाब के तहकीकात करें तो. खैर, भर्ती के समय मास्’साब को सवा रु. एवं एक नारीयल देना पडता था. मेरी शुरु की पढाई्र इसी स्कूल में हुई. बाद में मैं एक हाई स्कूल में भर्ती हो गया. यह केवल नाम की ही “हाई” स्कूल थी इस प्रायवेट स्कूल में फीस के अलावा कुछ भी ‘हाई’ नही था.
कहावत हैं कि ‘पूत के पांव पालने में दिखाई दे जाते हैं’ उसी के अनुरुप हम में से अधिकांश सह पाठियों ने स्कूल जीवन में ही भविष्य के संकेत देने शुरु कर दिए थे. कहना ना होगा कि उस जमाने में गुरु शिष्य का वास्तविक संबंध हुआ करता था. दंड देने की प्रथा भी थी. बच्चों को दंड मिलने पर कोई मां-बाप स्कूल में लडने नही जाता था.
एक बार अंकगणित की कक्षा चल रही थी, शायद एकिक नियम के सवाल सिखाये जा रहे थे. उसी दौरान क्लास को सामान्य ज्ञान सिखाने हेतु हमारे मास्टर साहब ने मेरे से पूछा कि अगर एक आंख से दस फुट दिखाई देता हैं तो दो आंखों से कितना दिखाई देगा ? मैं जब एक बार में उस ‘कठिन’ प्रश्न का जवाब नही दे पाया तो मास्’साब ने उसे दोहराया, कुछ देर सोचने के बाद मैंने उत्तर दिया सर ! बीस फुट; इतना सुनते ही सारी क्लास हंसने लगी और मास्’साब ने मुझे सजा के रुप में दिन भर के लिए बैंच पर खडा कर दिया.
ऐसे ही एक बार हिन्दी की क्लास में हमारे अध्यापक ने हमे ‘प्यासे कव्वे’ की कहानी, जिसमें वह पत्थर के टुकडें डालकर घडे में पडा पानी उॅपर ले आता हैं और अपनी प्यास बुझा कर उड जाता हैं, सुना कर पूछा कि इस कहानी से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती हैं ? मैने झट से जवाब दिया कि ‘खाओ पीओ और खिसको’ इस बात पर क्लास तो क्लास, मास्’साब भी हंसे बगैर नही रहे.
उन्हीं दिनों की बात हैं, गणित की ही क्लास थी, मास्’साब शायद ऐलजेबरा पढा रहे थे. पढाते पढाते उन्होने मेरे सहपाठी एवं पक्के दोस्त रामू से पूछा, अच्छा बताओ, एक को एक से कैसे जोडें कि तीन हो जाय ? रामू ने तत्काल खडे हो कर जवाब दिया ‘सर ! दोनो की शादी करादें’ इधर सारी क्लास तो ठहाकों में डूबी हैं और उधर मास्’साब के ‘काटो तो खून नही’ वह बहुत गुस्सा हुए और बेंत से रामू की खूब पिटाई की. इतना ही नही दूसरे रोज उन्होंने रामू के पिताजी को स्कूल में बुला कर शिकायत भी की जिसका यह नतीजा हुआ कि उसके घर पर भी खूब मार पडी. इस तरह एक ही अपराध में उसे दो दो बार सजा मिल गई जो कि कहते हैं कि कानूनन गलत हैं, लेकिन अब, इतने दिनों बाद, क्या हो सकता हैं ? वैसे एक बार रमेश अर्थात रामू ने मिलने पर मुझे बताया था कि उसके पडौसी वकील साहब कहते रहते थे कि मैं उस समय होता तो ‘स्टे’ दिलवा देता यहां तक कि एक बार तो वह मुझें मुकदमें तक के लिए उकसाने लगे और इसके लिए वकालतनामा तक ले आए लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मा’स्साब और पिताजी दोनो ही अब इस दुनियां में नही हैं तब कही जाकर वह चुप हुए.
ऐसा ही मिलता जुलता एक वाकया ईतिहास की क्लास में हुआ, हमे मुगल.काल पढाया जारहा था, इसी दौरान इतिहास के मास्’साब ने एक लडके से पूछ लिया, मोहन बताओ, अकबर कौन था और वह कब मरा ? मोहन पढाई में कौन सा कम था ? पक्का रटटू था, उसने तुरन्त जवाब दिया, सर ! अकबर अपने बाप का बेटा था और जब उसकी मौत आई तब वह मरा. इतना सुनने के बाद मास्’साब की हिम्मत नही हुई कि वह और कोई्र दूसरा प्रश्न मोहन से कर ले.
जब ईतिहास में यह घटना घटी तो भूगोल में क्यों नही घटती ? ईतिहास भूगोल का तो जोडा हैं, इनके साथ के कई मुहावरे बने हुए हैं मसलन,‘हिस्ट्री जोगराफी बडी बेवफा, रात को रटी, दिन को सफा’ आदि 2 खैर, भूगोल की क्लास थी और पिछले कई दिनों से मास्’साब सारी क्लास को समझा समझा कर थक चुके थे कि पृथ्वी गोल हैं, आखिर में उन्होंने मेरे सहपाठी जगदीश से पूछ लिया, अच्छा जगदीश, पृथ्वी गोल हैं इसके कोई तीन उदाहरण बताओ.
जगदीश किताबों का कीडा था. अपनी सामर्थ के अनुसार खूब पढता था, उसने मास्’साब को जवाब दिया, सर ! एक कारण तो यह हैं कि इतने दिनों से आप स्वयं ही बार बार कह रहे हैं कि पृथ्वी गोल हैं, पृथ्वी गोल हैं. वह गोल होगी तभी तो आप कहते हैं कि पृथ्वी गोल हैं इसलिए मानना पडेगा कि पृथ्वी गोल है. दूसरे घर पर जब मम्मी पढाती हैं तो कहती हैं कि पृथ्वी गोल हैं और आप जानते ही है कि हमारे घर में मम्मी का कहा कोई नही काट सकता. तीसरें किताब में भी लिखा हैं कि पृथ्वी गोल हैं, अतः सिद्ध हुआ कि पृथ्वी गोल हैं. इतना सुन कर मास्’साब अपना सिर पकड कर कुर्सी पर बैठ गए, वो तो भला हो स्कूल के चपरासी का जिसने पीरियड खत्म होने की वजह से घन्टी बजा दी वर्ना उस रोज राम जाने क्या होता ?
एक बार विज्ञान की रसायनशास्त्र की क्लास में भी बडी रोचक घटना घटी. विज्ञान के मास्’साब हम सब लडकों को प्रयोगशाला में ले गए और एक लडके से कहा कि फलां द्रव्य की बोतल उठा लाओ, लडका जब बोतल ले आया तो उन्होने बोतल में से द्रव्य को एक बीकर में लेकर अपनी जेब से एक सिक्का निकाला और उसमें डाला और हमसे पूछा कि यह सिक्का इसमे घुलेगा या नही ? सब लडकों ने मास्’साब को एक साथ सामुहिक जवाब दिया ‘नही घुलेगा’. मास्टर साहब लडकों के रसायन शास्त्र के ज्ञान से बहुत खुश हुए, परन्तु अगली ही सांस में उन्होंने हमसे इसका कारण पूछा तो एक लडके ने बताया कि ‘सर ! अगर सिक्का इसमें घुल जाता तो आप अपना सिक्का न डाल कर हममें से किसी और का सिक्का इसमे डालते’. उसके बाद उस रोज मास्’साब कुछ नही बोले.
विज्ञान का दूसरा विषय भौतिकशास्त्र हमें दूसरे मास्टर साहब पढाते थे वह हमें जियादा ही मेहनत एवं लगन से पढाते थे. उनका कहना था कि वैज्ञानिक अथवा इंजिनियर बनने के लिए विज्ञान तथा गणित जैसे विषयों पर अधिक घ्यान देना चाहिए मुझे अच्छी तरह याद हैं कि जब वह हमें आर्किमिडिज का सिद्धान्त पढा रहे थे तो उन्होने हमें बताया था कि कैसे किसी चीज का भार हवा की बजाय पानी में जाते ही कम होजाता हैं यह बात उन्होने कई कई बार समझाई अंत में एक दिन उन्होने क्लास की परीक्षा लेनी चाही तो क्लास में मेरे सहपाठी मोहन से पूछा कि मोहन बताओ आर्किमिडिज के बारे में क्या जानते हो ? इस पर मोहन ने काफी देर तक सिर खुजलाने के बाद कहा सर ! आर्किमिडिज का नाम तो सुना है लेकिन कभी मिलना नही हुआ. मोहन का उत्तर सुनकर मास्टर साहब बहुत देर तक आकाश में शून्य की तरफ देखते रहे.
एक बार नागरिकशास्त्र की क्लास चल रही थी. मा’स्साब हमे पिछले कई रोज से पुलीस, नगरपालिका, कोर्ट इत्यादि के कर्तव्य बता रहे थे. एक रोज उन्होंने गोपू, जोकि क्लास का सबसे लम्बा लडका होने के कारण सबसे पीछे बैठता था, से पूछा कि बताओ पुलीस के क्या कर्तव्य हैं ? तो उसने खडे होकर कहा कि सर ! मुझे करतब का मतलब नही आता है तो मास्टर साहब ने कहा कि पुलीस क्या 2 काम करती हैं ? इस पर गोपू ने बताया कि वह चैराहे पर आने जाने वाले ट्रकों से पैसे वसूलती हैं, सब्जी मंडी में ठेले खोंमचेंवालों से चौथ लेती हैं, कोई वारदात हो जाय तो घटना घटने के बाद आती है.
यह बात नही कि ऐसी वैसी घटनाएं ईतिहास – भूगोल में ही घटती हो, इंगलिश भी हम लोगों के लिए जान लेवा थी. एक तो वह देर यानि छठी क्लास से शुरु हुई दूसरे उसे पढाते पढाते कई बार मास्’साब भी अटक जाया करते थे और सलाह देते थे कि यह इम्पोरटेन्ट नही है इसे छोड दो आदि.
एक बार अंग्रेजी कक्षा की ही बात हैं मेरे सहपाठी लालचन्द उर्फ लाल्या का सिर दर्द कर रहा था और वह छुटटी ले कर घर जाना चाहता था इसलिए किसी तरह उसने हिम्मत करके मास्’साब को कहा, सर ! माई हैड इज इटिग सर्किल इसलिए मैं घर जाना चाहता हूं, तत्काल ही मास्’साब ने उसे छुटटी दे दी.
वैसे लगे हाथ ही मैं बतादूं कि लाल्या क्लास में उस ग्रुप का नेता था जो अक्सर ही टीचर से तरह तरह के सवाल किया करते थे, जैसे पीयूटी को पुट बोलते हैं तो बीयूटी को बुट की बजाय बट क्यों कहते हैं ? यही ग्रुप मास्’साब की अनुपस्थिती मे क्लास के लडकों को ले कर फिल्म ‘अनपढ ’ का निम्न लिखित गाना गाया करते थे.
‘सिकन्दर ने पौरस पे, की थी चढाई, की थी चढाई, तो मैं क्या करुं ?
कौरव और पांडव में हुई हाथा पाई, हुई हाथा पाई, तो मैं क्या करुं ? ’
स्कूल में जब कोई दंगा फसाद होता तो उसमें हाथ तो लाल्या का ही होता लेकिन वह कभी पकडा नही जाता था. यह बात नही हैं कि लाल्या के ग्रुप ने ही आगे चल कर नाम कमाया हो, हमारे कुछ और सहपाठी भी उन्नति करते करते काफी उॅची जगहों पर पहुंचे हैं. पूत के पांव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं इस बात की मिशाल था काली चरण. एक बार की बात हैं हम कई सहपाठी अपने अपने बस्ते लिए हुए स्कूल से घर लौट रहे थे, कि हमें रास्ते में एक बुढिया मिली. उसने पांच रु. का एक नोट काली चरण को दिखाते हुए पूछा कि बेटा देखना यह नोट पांच का ही हैं ना ? काली चरण ने उस नोट को लपक कर अपनी जेब में डाल लिया और अपनी दूसरी जेब से चार रु. निकाल कर बुढिया को देते हुए कहा, माई ! नोट तो पांच का ही था लेकिन एक रु. मैंने सलाह मांगने का काट लिया हैं. कहते है कि काली चरण आजकल उस शहर का नामी वकील हैं. भले ही वह आज तक सुप्रीम कोर्ट न गया हो लेकिन अपने मकान पर नाम की तख्ती में ‘ऐडवोकेट सुप्रीम कोर्ट’ जरुर लिखवाया हुआ हैं.
हमारा एक साथी रमेश तो बचपन से ही डाक्टर बनना चाहता था, वह अक्सर कहा करता कि मेरे मामाजी मुझे डाक्टर बनायेंगे. खैर, मुन्ना भाई की तर्ज पर किसी तरह उसने भी एम बी बी एस कर ही ली. बचपन में छठी या सातवी क्लास की बात हैं. एक बार हमे मास्’साब ने कुछ हॉम वर्क करने को दिया. मैं पढने में शुरु से ही कमजोर था और मेरे में आत्म विश्वास नाम की चीज न तब थी न अब हैं. खैर, अपना होम वर्क करके मैंने रमेश से कहा कि वह उसे जांचले तो उसने कहा कि मेरे घर आ कर दिखाओ. मैं हुलसा हुलसा कॉपी ले कर उसके घर पहुंचा तो होम वर्क चैक करने के एवज में वह बोला कि मैटिनी शो, सुबह दस से साढे बारह बजे तक चलने वाली फिल्म दिखानी पडेगी. मरता क्या नही करता, मैं मान गया. सुनते हैं आजकल वह किसी मेट्रो सिटी के हस्पताल में बडा प्रसिद्ध डाक्टर हैं.

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