जिन्दगी से संवाद

शिव शर्मा
यम से बचने की राह गुरु ही बताता है !
ग्ुरु बिन कौन बतावे बाट ;
बड़ा कठिन, यम घाट !
कबीरदास जी का कहना है कि यम यानी मृत्यु से बचने का उपाय केवल गुरु ही बताता है। अन्य संसारी लोग तो वासना की राह पर धकेलते हैं – और वासना में मृत्यु है। जन्म लेते ही मृत्यु साथ लग जाती है। हर जन्म में यही होता है। प्रत्येक पल मृत्यु हमारे निकट आती रहती है। इसलिए हर क्षण को अमूल्य समझते हुए उसका अधिकतम सकारात्मक उपयोग करो – पारिवारिक-सामाजिक दायित्वों के निर्वाह के साथ साथ स्वयं को अमृत्यु की तरफ ले जाने वाली साधना भी करो।
मृत्यु को पार करना कठिनतम कार्य है। हमारा जीवन , मृत्यु के घाट से ही गुजरता है। उस घाट को पार करना है तो किसी गुरु की शरण में चले जाओ। वह तुम्हें साधना कराएगा। वह तुम्हें वासनाओं से मुक्त करेगा। वह तुम्हें पुनर्जनम कराने वाले कार्यों से रोकेगा। वह तुम्हें सवयं के शरीर से अनासक्त कर देगा। गुरु ही तुम्हें अपने शरीर से निकल जाने की विधि बताएगा। वह तुम्हें यमराज के हाथ नहीं पड़ने देगा – तुम्हें समझा देगा कि इस जन्म के निमित्त सारे कर्म पूरे होते ही अपनी देह को छोड़ देना। इसी को मृत्यु से बचने की राह कहा गया है। आगे न जनम और न ही मृत्यु।
एक शिष्य को ज्योतिषी ने उसकी मृत्यु का दिन बता दिया। वह अपने गुरु के पास गया ओर उक्त बात कह दी। गुरु बोले कि बात तो सही है किंतु तुम अब मेरी अमानत हो, यम की नहीं। तुम मेरे संरक्षण में रहो। यहीं आश्रम में रहो और मेरी अनुमति के बिना बाहर मत निकलना। निश्चित दिन उस शिष्य के सामने यम आ गया। किंतु आश्रम में प्रवेश नहीं कर सका। उसके गुरु ने यमदेव को कहा – आप वापस जाएं। यह स्वयं ही अपनी देह छोड़ देगा। इसे मै तुम्हारे साथ नहीं भेजूंगा। इसकी रूह का निबटारा मै करूंगा। इसकी जीवात्मा को यथा योग्य लोक में इसका गुरु ही भेजेगा। यम लौट गया। यह वृन्दावन में एक आरम की सच्ची घटना है।
गुरु इतना सक्षम होता है।

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