सचेतन स्त्री – उत्कर्ष की सम्भावनाओं के आकाश में पंख खोलती है !

शिव शर्मा
कौन है सचेतन स्त्री ! क्या चाीती है ! इसका जवाब है –
1. व्ह महिला जो अपने मनुष्य जन्म को अधिकतम सार्थक बनाने के लिए सतर्क है, सवेष्ट है।
2. जेा अपने शरीर के बाॅयलोजिकल वजूद पर ही नहीं ठहर जाती है। वह ह्यूमन फिलाॅसाफी के विस्तार में स्वयं को फेलाने के लिए आतुर रहती है।
3. जिसमें अपनी जन्मजात योग्यता एवं सामथ्र्य को बढाने का जुनून है। जिसमें योग्यतम बनने का उत्साह है, संकल्प है।
4. जो स्त्री देह की सीमाओं को पार करते हुए स्त्रीत्व की सम्पूर्ण सम्भावनाओं को स्वयं की दृष्टि में रखती है और वहां तक पहुंचने के लिए संकल्पित होती है। वह गार्गी की तरह ब्रह्माण्ड के बाहर क्या है ; यह जानना चाहती है तो शची की तरह अपने पति को युद्ध में विजय का वरदान देती है। वह आनंदमयी की भँति अपने अंदर की रूहानी शक्तियों को उजागर करती है तो टेसी थामस क्ी भाँति मिसाईल वूमेन भी बनती है।
5. वशिंगटन (अमेरिका) की डोरेथी स्ट्रेथे ने मात्र चार साल की उम्र में े एक किताब लिख दी – हाऊ दॅ वल्र्ड बिगेन । इसे 1964 में एक बड़े प्रकाशन संस्थान ने प्रकाशित किया। वह तेरह साल की उमं में (मलवथ पूर्णा, तेलंगाना की एक लड़की जो दलित परिवार से है) विश्व के सर्वोच्च शिखर एवरेस्ट पर चढ जाती है तो आरती साहा (पश्चिमी बंगाल) बन कर 19 वर्ष की आयु में ही दंनिया की सब से तेज प्रवाह वाली इंगलिश चैनल को लगातार 16 घण्अे तैर कर पार कर लेती है।
6. एक तरफ वह मदर टेरेसा है तो दूसरी ओर वही इजराइल की खूखार प्रधान मंत्री स्टील लेडी गोल्डा मायर भी है।
7. सचेतन स्त्री असीम है, प्रकृति की तरह। सृजन की अनंतता में खुद को देखती है। कुछ भी करने में सक्षम। वेद रचना में सहभागी 80 ऋषिकाएं, ब्रह्मवादिनी महिलाएं, ब्रह्मविद्या वाली स्त्रियां। युद्ध में कौशल – कैकेई, रानी बाई, लक्ष्मीबाई, चांद बीवी, रजिया सुल्ताना। अध्यात्म में अनुपम – गार्गी, मैत्रेयी, देवहूति, वेदवती, लोपमुद्रा, कश्मीर की लल्लेश्वरी, दक्षिण की अंदाल, अक्का महादेवी। पूरब की मां आनंदमयी, शारदा मां। पश्चिम की मीरा, भूरीबाई। वह चाहती है कि उसकी अनंत सम्भावनाओं का पुरुष स्वागत करे। वह स्वयं भी पुरुष के प्रातिभिक विस्तार में उत्सव हो जाना चाहती है।
8. ब्रह्म उसी में से व्यक्त (प्रकृति, अपरा शक्ति) होता है। फिर ब्रह्मण्ड हो जाता है। शुक्राणु उसी (अण्डाणु) से निषेचित हो कर पूर्ण मनुष्य बनता है। नर-मादा के शरीर का पाॅवर हाऊस भी स्त्री ही है – माईट्रोकांडिया नाम वाला कोशीकीय उपांग स्त्री में ही होता है। पुरुष को अपनी मां से मिलता है। यह ऊर्जा जेनरेट करता है, ऊर्जा संग्रहण करता है ओर वितरण करता है। स्त्री की आनुवांशिकी भी इस में ही होती है। इसलिए स्त्री के ऊर्जावान होने पर शंका नहीं की जानी चाहिए। सचेतन स्त्री इस बात को जानती है और इसीलिए अपनी सम्भावनाओं को साकार करना चाहती है।
9. स्त्री ने ही पुरुष को ब्रह्मावस्था तक पहुंच जाने के लिए मुक्त किया है – पिंगला ने भर्तृहरि को, यशोधरा ने गौतम को, लुई ने कबीर को, मां शारदा ने रामकृष्ण को, रत्ना ने तुलसी को, विद्योत्मा ने कालीदास को। उर्मिला ने लक्ष्मण को, माण्डवी ने भरत को।
10. मन मिर्जा तन साहिबां ! मिर्जा पुरुष, साहिबां स्त्री। ऐसे जैसे ध्वनि और तरंग । मानो प्रकाश और किरण। जैसे बीज में अंकुर। मानो अनहत नाद।
11. स्त्री पुरुष का प्रेम ऐसे मोनो जुड़वां मंदिर में एक ही मूर्ति। दानों का उत्सर्ग मानो संयुक्त गिरजे में एक ही सलीब। दोनों की रूह ऐसी जैसे युग्म दरगाह में एक ही मजार। यही सजीवता है। जीवन की सजीवता, रिश्ते की सजीवता। सचेतन स्त्री-पुरुष के आपसी जीवन की सजीवता। आपसी संलयन वाला जीवन। शब्द में निहित अर्थ जैसा संबंध। शब्द से व्यंजित अर्थ के विस्तार जैसा जीवन।
12. देह तो सजीव होती ही है लेकिन जीवन किसी किसी का ही सजीव होता है। ज्यादातर लोग निर्जीव जीवन के साथ ही मर जाते हैं। उन्हें ज्ञात ही नहीं कि जीवन की भी कोई सजीवता होती है। कृष्ण का कर्म सजीव। राधा का प्रेम सजीव। विदुर की भक्ति सजीव। अष्टावक्र का ज्ञान सजीव। तुम यदि ज्ञान, भक्ति, कर्म, प्रेम में रूपांतरित हो गए तो तुम सजीव हो।

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