अपने ही अंदर देखते रहो, आत्मा तक पहुंच जाओगे

शिव शर्मा
ध्यान योग का सपलतम उपाय है अपने आप को देखते रहना। स्वयं के अंदर वाले मनुष्य पर नजर रखना। गृहस्थी में रहते हुए लगातार ऐसा अभ्यास करते रहने से अंततः हम अपने आत्मा तक पहुंच सकते हैं। क्बीर ने कहा है कि खुद को हेरते हेरते वे खुदा तक पहुंच गये । तब वे बोले . मो को कहां ढूंऐ बंदेए मै तो तेरे पास में । आत्मा आपके अंदर है तो वहीं उसकी अनुभूति होगी य बाहर कहीं नहीं। इसका उपाय है ध्यान योग। अपनी आत्मा के ध्यान मेे ठहरना। ध्यान प्रक्रिया को स्वयं के ही शरीर से शुरू करो . अपने शरीर को विपश्यना वाली विधि से देखते रहो य स्वस्थ है अथवा रोगी। फिर इंद्रियों पर ध्यान लगाओ . भोग में प्रवृत्त रहती हैं या योग में य अथवा दोनो में। इसके बाद मन को टटोलो . राग.द्वेषए लोभ.मोहए शत्रु.मित्र.भाव आदि में उसकी लिप्तता। अब बुद्धि . नकारात्मक.सकारात्मक। विचारए अस्थिरताए संशयए सन्देह आदि । तत्पश्चात् अहंकार . कर्ता भाव का अभिमान और भोक्त होने की आसक्ति। इन चारों पक्षों पर ध्यान लगाने का अभ्यास करो। धीरे धीरे जो कुछ भी गलत हैए अनैतिक हैए अकर्तव्य हैए वासनामय हैए पतनकारी है और रूहानी यात्रा में बाधक है वह कम होने लगेगाए वह छूटता जायेगा । स्वतः ही ध्यान शरीर से इंद्रियों की तरफ मुड़ेगा। फिर यही ध्यान इंद्रियों से मनए बुद्धिए अहंकार आदि की तरफ मुड़ता हुआ रूह तक पहुंच जायेगा।
यह स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा है। जैसे पदार्थ से कणए अणुए परमाणु तक जाने का क्रम। फिर परमाणु से इलेक्ट्रानए प्रोटोन एवं न्यूट्रोन तक पहुंचना। इस से भी आगे क्वार्कए लेप्टानए हिग्स बेसान आदि मूल कण य और फिर हाईड्रोजनए हीलियम आदि गैस। अंततः महासफोट। यह जड़ प्रकृति में स्थूल से सूक्ष्मतम तक पहुंचना है। ऐसे ही शरीर से इंद्रियांए मनए बुद्धिए अहंकारए जीवात्माए आत्मा और परमात्मा तक चले जाना या अनुभूति करना ध्यान योग से सम्भव है। ऐसी अनुभूति ही आत्म दर्शन हैए रूहानी दर्शन हैए परमात्म दर्शन है। जो आपके भीतर है वह वहीं तो दिखेगां बाहर तो प्रकृति है य आत्मा अंदर हे।
इसलिए स्वयं के आत्मा का ध्यान करो। स्थूल देह से परम ज्योति स्वरूप ब्रह्म तक पहुंचो। विज्ञान तो पदार्थ से बिगबैंग ;महाविस्फोटद्ध तक चला गया है। हमारे ऋषि गण व अनेक महात्मा भी देह से अदेह तक पहुंचं हैं। अब हमें भी यही प्रयास करना है। पारीवारिक एवं सामाजिक दायित्व निभाते हुए आतमानुभूति भी करनी है। प्रति दिन एक घण्टा ध्यान का अभ्यास . नाम के सहारे या श्वास के सहारे। संकल्प एवं अभ्यास से सब सम्भव है।

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