रूहानी संवाद

शिव शर्मा
ए री सखी मंगल गाओ री !
धरती अम्बर सजाओ री !
सूफी गीत है। शब्द भी रूहानी, धुन भी रो रूहानी, अर्थ भी रूहानी! महातमा कबीर के एक पद पर आधारित है। गुरु रूपी भगवान के हमारे घर आने के उल्लास की बात है। हृदय में ही गुरु के दर्शन होने की खुशी है। मन में ही ब्रह्म की अनुभूति हो जाने के आनंद की बात है।
पाँचसौ साल पहले कबीर ने ऐसी ही बात कही – दुल्हिन गावहु मंगलाचार।
हम घर आए राजा राम भरतार।। — कबीर को अपने हृदय में ही गुरु के और फिर निराकार ब्रह्म के दर्शन हुए थे। उस आनंद में डूब कर उन्होंने यह पद लिखा। उसी का आधुनीकीकरण यह गीत है।
गुरु के ओर ईश्वर के आंतरिक दर्शन के फलस्वरूप धरती से आकाश तक दिव्य प्रकाश दिखने लगता है। दिव्य नाद सुनाई देने लगता है। चारों ओर ब्रह्म कमल जैसी रूहानी खुशबू की अनुभूति होती है। तब महातमा अपने अन्य साधकों को कहता है कि स्वयं के अंदर ऐसी धुन में डूबो कि तुम्हें भी यही दिव्य नजारा दिखने लगे। चाहे नाम में डूबो, चाहे ध्यान में डूबो किंतु दिव्य नाद को सुनो।
अनहद नाद बजाओ री सब मिल – तुम जितने भी भक्त हो, सााक हो, भगवान का सुमिरन करने वाले हो, सब के सब अपने ही अंदर वाले अनहत नाद को सुनो और उसकी ही मस्ती में गुरु-नाम को भजन या मंगलाचार की तरह गाते रहो। कबीर ने कहा कि 33 करोड़ देवता और 88 हजार ऋषि मुनी ऐसे दिव्य दृश्य को देखते हैं – भक्त के हृदय में ही ब्रह्म ज्योति के जागरण वाली अवस्था को देख कर उत्सव मनाते हैं।
विज्ञान – भक्ति में निरत मन की करोड़ों तंत्रिका कोशिकाएं (न्यूरांस) स्थिर हो जाती हैं । वे अन्य ऐसी ही कोशिकाओं के साथ क्रिया प्रतिक्रियां करना बंद कर देती हैं। परिणाम स्वरूप मन शांत हो जाता है। वहां ब्रह्माण्डीय नाद गूंजने लगता है। वहाँ चांदनी जैसा प्रकाश चमकने लगता है। ऐसे ही बुद्धि के न्यूरांस भी जब सकारात्मक हो जाते हैं तब वहाँ सूर्य जैसा प्रकाश चमकता है।
अंततः जीवात्मा को दिव्यानंद की अनुभूति होती है। पूरे ब्रह्मण्ड में नाद ज्योति की अनुभूति होती है। इसी अवस्था की तरफ यह गीत संकेत करता है – ऐ री सखी मंगल गाओ री !
मन को मनोमय कोश है, बुद्धि का विज्ञानमय ओर जीवात्मा का आनंदमय कोश है। प्रकाश एवं आनंद यहीं की विभूतियां हैं। मनोमय कोष के केंद्र में मानस तत्व है! विज्ञान में कोष के केंद्र में महत् तत्व है! आनंदमय कोष के केंद्र में चेतन या आत्म तत्व है! ं

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