dr. j k gargआदमी की चेतना जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है इसलिए अपनी चेतना को जानना ही आदमी के जीवन का उद्देश्य होना चाहिय। वास्तविकता में चेतना को जानना ही मोक्ष है |वह मनुष्य ही सच्चा इन्सान है जिसने स्वयं को एवं अपनी आत्मा को जान लिया है | वो.जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है | .लालच, स्वार्थ और भय ही संसार में आदमी के दुःख के मुख्य कारण हैं |ईश्वर ने ही संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुख और सुख की रचना की |सवाल उत्पन्न होता है कि क्या ईश्वर है ? कौन है वे ? क्या रुप है उनका ? क्या वह स्त्री है या पुरुष ?* इन सबका सरल जवाब है कि कारण के बिना कार्य नहीं होता है। संसार का सर्जन उस कारण के अस्तित्व यानि परमात्मा के का प्रमाण है। तुम हो, इसलिए वे भी है उस महान कारण को ही आध्यात्मिकता में ‘ईश्वर‘ कहा गया है। वह न स्त्री है और ना ही पुरुष वो तो इन सबसे परे है |हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है तथा आदमी का आज का प्रयत्न या परिश्रम ही उसका कल का भाग्य है |