श्री हनुमानजी को कलियुग के देवता के नाम से जाना जाता है। एक पौराणिक कथा आती है कि रावण की लंका पर विजय पाकर जब भगवान श्री राम अयोध्या लौट रहे थे, कहते हैं कि उस समय भगवान राम ने लोगों को भेंट के रूप में विभिषण, अंगद,सुग्रीव व अन्य को उपहार दिए थे, जिन्होंने लंकापति रावण के साथ युद्ध में उनका साथ दिया था। कहते हैं कि उसी समय हनुमान जी महाराज ने भगवान श्रीराम से याचना की थी कि ‘यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले। तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशय:।।’ अर्थात ‘हे वीर श्रीराम ! इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहें।’ इस साल 6 अप्रैल 2023, को हनुमान जी महाराज के जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाएगा। वास्तव में, चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि के दिन श्री हनुमान जी महाराज का जन्म हुआ था, इसीलिए इस दिन को हनुमान जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाता है। वहीं साल की दूसरी हनुमान जयंती दिवाली के पास कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ती है। वास्तव में, हनुमान जंयती मनाने के पीछे जो पौराणिक कथा है उसके अनुसार बाल हनुमान चैत्र माह की पूर्णिमा के दिन भगवान सूर्य को आम(आम का फल) समझकर उन्हें खाने के लिए दौड़े थे, और आकाश में उड़ने लगे थे, उसी दिन राहु भी सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहते थे, लेकिन हनुमानजी को देखकर सूर्यदेव ने उन्हें दूसरा राहु समझ लिया था।एक दूसरी कथा के अनुसार सीता मां ने हनुमान जी की भक्ति और समर्पण को देखकर उनको अजर-अमर होने का वरदान दिया था। श्रीरामचरितमानस सुंदरकांड में वर्णन मिलता है कि माता सीता हनुमानजी को वरदान देतीं हैं कि-अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना।।’ यानी कि माता सीता हनुमानजी से कहतीं हैं कि हे पुत्र ! तुम अजर (बुढ़ापे से रहित), अमर और गुणों के खजाने होओ। श्रीरघुनाथजी तुम पर बहुत कृपा करें। ऐसा कानों से सुनते ही हनुमानजी पूर्ण प्रेम में मग्न हो गए। कहते हैं कि इस दिन नरक चतुर्दशी का दिन था जो दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाती है। बालाजी महाराज(वीर हनुमानजी) ‘अष्ट सिद्धि, नव निधि के दाता’ कहलाते हैं। एक चौपाई भी आती है इस संबंध में-‘अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।। राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।’ सुंदरकांड में एक जगह वर्णन आता है, जहाँ हनुमानजी कहते हैं- ‘जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी।। यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा।।’ यानी कि इसका अर्थ यह है कि ‘जब तक मैं सीताजीको देखकर [लौट] न आऊँ । काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदयमें श्रीरघुनाथजीको धारण करके हनुमानजी हर्षित होकर चले।’ हनुमान के बुद्धि कौशल से प्रसन्न होकर सुरसा ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा था, ‘पुत्र तुम अपने कार्य में सफल हो।’ सुंदरकांड में इस संबंध में वर्णन मिलता है जब सुरसा हनुमानजी को यह कहतीं हैं कि-‘राम काज सब करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान, आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान।’ हनुमान जी महाराज ने अपने शरीर को पहले विशालकाय और फिर एक छोटे रूप में ‘महिमा’ तथा ‘लघिमा’ सिद्धि के बल पर किया था। जानकारी देना चाहूंगा कि हनुमान जी महाराज रुद्र के ग्यारहवें अवतार माने जाते हैं। संकटमोचक हनुमान ‘अष्ट सिद्धि’ और ‘नव निधि के दाता भी हैं। हनुमान जी महाराज ‘अणिमा’, ‘लघिमा’, ‘गरिमा’, ‘प्राप्ति’, ‘प्राकाम्य’, ‘महिमा’, ‘ईशित्व’ और ‘वशित्व’ इन सभी आठ प्रकार की सिद्धियों के स्वामी हैं। यहाँ यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि भगवान राम जब अपने भ्राता लक्ष्मण के साथ सीताजी को वन-वन खोज रहे थे तो ब्राह्मण वेश में हनुमानजी अपनी सरलता, वाणी और ज्ञान(विवेक) से भगवान श्रीराम को प्रभावित कर लेते हैं। महाभारत काल में हनुमान महाबली भीम के बल के अहंकार को तोड़ने के लिए बूढ़े वानर का रूप धारण उनके मार्ग में लेट गए थे और भीम उनकी पूंछ को हिला भी नहीं पाए थे। बाल हनुमान के मन में उगते हुए सूर्य को पाने की अभिलाषा जागी तो उन्होंने उसे पकड़ कर मुंह में रख लिया था, वास्तव में यह ‘अभिलाषा’ सिद्धि को दर्शाता है। रामभक्त हनुमान ने भगवान श्रीराम की भक्ति के अलावा जीवन में और कुछ नहीं चाहा और वह उन्हें मिल गई, इसलिए कहा जाता है कि हनुमान की कृपा पाए बिना राम की कृपा नहीं मिलती है। वास्तव में हनुमानजी महाराज नौ निधियों के दाता हैं। नव रत्नों को ही नौ निधि कहा जाता है। ये हैं- पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व सांसारिक जगत के लिए ये निधियों भले ही बहुत महत्व रखती हों, लेकिन भक्त हनुमान के लिए तो केवल राम नाम ही सबसे ज्यादा मूल्यवान है। वास्तव में, इसे इस प्रसंग से समझा जा सकता है। रावण वध के पश्चात एक दिन श्रीराम सीताजी के साथ दरबार में बैठे थे। श्रीराम ने हनुमान जी महाराज को भी अन्य लोगों की तरह उपहारस्वरूप(भेंटस्वरूप) मूल्यवान मोतियों की माला भेंट की। पवन पुत्र उस माला से मोती निकाल निकालकर उन्हें अपने दांतों से तोड़-तोड़कर देखने लगे। हनुमान के इस कार्य को देखकर भगवान राम ने हनुमान से पूछा, ‘हे पवन पुत्र ! आप इन मोतियों में क्या ढूंढ रहे हैं?’ पवन पुत्र ने कहा, ‘प्रभु मैं आपको और माता को इन मोतियों में ढूंढ़ रहा हूं। लेकिन इसमें आप कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे हैं और जिस वस्तु में आप नहीं, वह मेरे लिए व्यर्थ है।’ यह देख एक दरबारी ने उनसे यह बात कही कि , ‘पवन पुत्र हनुमान ! क्या आपको लगता है कि आपके शरीर में भी भगवान श्रीराम बसते हैं ? अगर ऐसा है तो हमें दिखाइए। नहीं तो आपका यह शरीर भी व्यर्थ है।’ कहते हैं कि यह सुनकर हनुमान जी महाराज ने भरी सभा में अपना सीना चीरकर दिखा दिया था। पूरी सभा यह देखकर हैरान थी कि भगवान राम माता जानकी के साथ हनुमान के हृदय में विराजमान हैं। जानकारी मिलती है कि हनुमानजी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 115 वर्ष पहले त्रेतायुग जे अंतिम चरण में चेत्र पूर्णिमा को मंगवार के दिन आंजन नामक एक छोटे से पहाड़ी गावँ में हुआ था, उनके पिता का नाम केसरी और माता का नाम अंजना है। जन्म के बाद उनका नाम वायुदेव द्वारा मारुति रखा गया था और वज्र के प्रहार से उनकी ठुड्डी टूटने की वजह से उन्हें हनुमान कहा जाता है। वैसे तो हनुमानजी जी के बहुत से नाम हैं लेकिन उन्हें बजरंग बली,मारुति, अंजनि सूत, केसरी नंदन, संकटमोचन, पवनपुत्र, महावीर,कपीश, शंकर सुवन के नाम से पूरी दुनिया जानती है। कहते हैं किपवनदेव के आग्रह पर उन्हें भगवान सूर्यदेव के पास शिक्षा प्राप्ति के लिए भेजा गया था, जहाँ पर उन्होंने मात्र 7 दिनों में सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया था और राम नाम में लीन हो गये थे। भगवान सूर्य देव हनुमान जी के गुरु थे I कहते हैं कि भगवान सूर्य देव के पास 9 परम दिव्य विद्याएं थीं । उन परम दिव्य विद्याओं का ज्ञान हनुमान जी प्राप्त करना चाहते थे और उन विद्याओं की शिक्षा लेने के लिए हनुमान जी ने भगवान सूर्यदेव को अपना गुरु बनाया था। संकट मोचन हनुमान पंचमुख थे, जिनमें वराह मुख,नरसिंह मुख,गरुड़ मुख, हयग्रीव मुख और हनुमान मुख शामिल हैं। हनुमानजी महाराज आज भी सशरीर इस धरती पर विराजमान हैं और उनके समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति, भूतप्रेत की शक्ति ठहर नहीं सकती है। वास्तव में हनुमानजी आज भी धरती पर विचरण करते हैं और कहते हैं कि जहाँ कहीं भी रामकथा होती हैं, वहां हनुमानजी जी साक्षात जरूर पधारते हैं। वास्तव में, चारों युग में भगवान हनुमानजी के ही प्रताप व महिमा से ही इस जगत में आज उजियारा है।कहा गया है कि-‘चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥अंतकाल रघुवरपुर जाई, जहां जन्म हरिभक्त कहाई॥ और देवता चित्त ना धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥’ यदि हम यहाँ हनुमानजी महाराज के बल व शक्ति की बात करें तो हनुमानजी जी महाराज बहुत ही शक्तिशाली देवता हैं और उनके बल की कोई सीमा नहीं है, कहने का मतलब यह है कि उनमें अतुलनीय बल है। वैसे तो हनुमानजी महाराज के बल का अनुमान लगाना बहुत ही मुश्किल है लेकिन जानकारी मिलती है कि 10 हजार हाथियों का बल एक ऐरावत हाथी में होता हैं और दस हजार ऐरावत हाथियों का बल एक देवराज इन्द्र में होता हैं और 10 हजार देवराज इन्द्र का बल हनुमान जी महाराज के एक रोम में होता हैं। यानी कि हनुमानजी इस कलियुग के बहुत अधिक शक्तिशाली देवता हैं जो अपने भक्तों की हर हाल में सदैव रक्षा करते हैं। यहाँ यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि वीर हनुमान जी की गद्दा का नाम वामहस्त हैं , जिसके बारे में अग्नि पुराण में विस्तार से बताया है। हनुमान जी को गद्दा कुबेर जी महाराज ने भेंट की थी, जो रावण के सौतेले भाई और अलका पुरी के राजा थे I यह गद्दा अद्वितीय मारक क्षमता से सम्पन्न और दिव्य गुणों से भरपूर थी तथा इस गद्दा को कोई भी अस्त्र-शस्त्र से पराजित नहीं कर सकता था।लंका पर चढ़ाई करने के लिए हनुमान जी ने वानरों के साथ मिलकर एक पुल ‘रामसेतु’ बनाया था। रामायण में भी लंका पर आक्रमण करने के लिए वानरों द्वारा निर्मित सेतु का निर्माण करने का उल्लेख मिलता है, उस पुल की लम्बाई 52 किलोमीटर तथा चौड़ाई 3 किलोमीटर बताई जाती हैं, जिसको आज भी दुनिया रामसेतु के नाम से जानती है।हनुमान जी ने जो पर्वत उठाया था उसका नाम द्रोणागिरी पर्वत था। जब लक्ष्मण जी के प्राण बचाने के लिए सुषेण वैद्य ने राम जी को सूर्योदय से पहले संजीवनी बूटी लाने को कहा था तो भगवान राम जी यह जिम्मेदारी हनुमान जी को दी थी। मगर हनुमान जी को संजीवनी बूटी कैसी दिखती है, यह नहीं पता था। इसीलिए कहते हैं कि हनुमान जी पूरे द्रोणागिरी पर्वत को ही उठा लाये थे और लक्ष्मण जी के प्राण बचाये थे। हनुमानजी को सिंदूर बहुत पसंद है, क्यों माता सीता जब एक बार सिंदूर लगा रही थी तो उन्होंने माता सीता से इसके लगाने के पीछे का राज पूछा था तो माता सीता ने हनुमानजी को बताया था कि इससे ‘स्वामी'(भगवान राम) की उम्र बढ़ती है। कहते हैं कि तब हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर मल लिया था, तब से हनुमानजी जी को सिंदूर बेहद पसंद है। हनुमानजी के 12 नाम हनुमान, अंजनीसुत, वायुपुत्र, महाबल, रामेष्ट, फाल्गुण सखा, पिंगाक्ष, अमित विक्रम, उदधिक्रमण, सीता शोक विनाशन, लक्ष्मण प्राणदाता और दशग्रीव- दर्पहा बहुत ही प्रसिद्ध हैं और इनको जपने से धन-धान्य, सुख-समृद्धि, वैभव, प्रसिद्धी व सब मनोकामनाएं पूर्ण होतीं हैं। श्री सालासर धाम, चूरू और मेंहदीपुर, दौसा में राजस्थान में बालाजी महाराज का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है, जहाँ लाखों लोग अपनी मन्नत मांगने आते हैं और उनकी मुरादें पूर्ण होती हैं। बाबा को चूरमा, लड्डू, पेड़ों, नारियल आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है और लाखों लोग मन्नत पूरी होने पर बाबा की सवामणी(प्रसाद) करते हैं। लाल ध्वज व सिंदूर बाबा को बहुत पसंद हैं और कहते हैं कि बाबा सिंदूर, ध्वज व नारियल चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। बजरंगबली बाबा(बाबा हनुमानजी महाराज) की पूरे संसार में बड़ी मान्यता है और बाबा बजरंगबली अपने प्रत्येक भक्त पर अपना वरद हस्त सदैव बनाए रखते हैं। आज हनुमान जन्मोत्सव है, आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। जय श्री बालाजी महाराज।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला,
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार
पटियाला, पंजाब