क्या धर्मेश जैन निशाने पर रहे?

रेलवे स्टेशन परिसर में तालेड़ा स्क्वायर स्थित स्काई ग्रिल रेस्टोरेंट को नगर निगम द्वारा सीज किए जाने की घटना ने षहर की राजनीतिक आबोहवा में हलचल मचा दी है। ज्ञातव्य है कि
भाजपा नेता श्री धर्मेश जैन की साझेदारी में स्काई ग्रिल रेस्टोरेंट चलता है। प्रत्यक्षतः निगम के दावे के अनुसार कार्यवाही नियमानुसार की गई प्रतीत होती है, मगर षहर में यह संदेष क्यों चला गया कि इसके पीछे राजनीतिक मंषा छुपी हुई है? वो भी यह नहीं कि सरकार कांग्रेस की है, और वे भाजपा नेता है, बल्कि यह कि निगम पर भाजपा बोर्ड के काबिज होते हुए भी कार्यवाही कैसे हो गई? क्या इसका भाजपा की अंदरूनी राजनीति से संबंध तो नहीं है? इस घटना से कई सवाल उत्पन्न हो गए हैं। क्या निगम के अधिकारियों को यह पता नहीं था कि उनकी ओर से की जा रही कार्यवाही की जद में भाजपा के वरिश्ठ नेता आ रहे हैं? क्या सीजिंग की कार्यवाही मेयर को प्रकरण जानकारी में ला कर की गई या इसे रूटीन की कार्यवाही मानते हुए उसकी जरूरत ही नहीं समझी गई? जो कुछ भी हो, मगर मेयर की भूमिका पर षहर में चर्चा है कि निगम में भाजपा का बोर्ड होने के बावजूद भाजपा के वरिश्ठतम नेता के साथ ऐसा कैसे हो गया? क्या नियमों के चलते मेयर को तटस्थ रहना पडा? यदि कार्यवाही नियमानुसार हुई है तो क्या इस बात का ख्याल नहीं किया गया कि इसका राजनीतिक संदेष जाएगा? क्या मेयर को यह ख्याल रहा कि कार्यवाही के बाद अंदरखाने भाजपा नेताओं का दबाव आएगा? निगम की कार्यवाही कितनी जायज अथवा लीगल है, या उसमें कोई लेकुना रह गया है, यह तो नियमों के जानकार ही समझ सकते हैं, या फिर अपील होने पर उच्चाधिकारी या कोर्ट तय करेगा, मगर के इसके राजनीतिक पहलु को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सवाल यह भी उठता है कि अगर तालेड़ा स्क्वायर प्राइवेट लिमिटेड ने बार बार नोटिस दिए जाने के बाद भी बकाया नगरीय कर जमा नहीं करवाया गया तो पूरी बिल्डिंग ही सीज क्यों नहीं की गई?
क्या किसी रेस्टोरेंट को सीज करने से पहले वहां रखे कच्चे माल को सुरक्षित निकालने की सुविधा नहीं दी जानी चाहिए? जिन लोगों ने पहले से बुकिंग करवा रखी होगी, उनका क्या होगा? बकाया राषि वसूलने का दबाव बनाने के लिए की गई इस कार्यवाही से रेस्टोरेंट को हुए नुकसान का कौन जिम्मेदार होगा?
कानाफूसी है कि कहीं इस कार्यवाही का श्री जैन की ओर से समय समय पर निगम व प्रषासन की कार्यषैली पर सवाल उठाने से संबंध तो नहीं है? ज्ञातव्य है कि जैन षहर के हित से संबंधित ज्वलंत और वाजिब मुद्दों पर बेकाकी से आवाज बुलंद करते रहते हैं, बिना इस बात की परवाह किए हुए कि संबंधित अधिकारी इससे नाराज हो जाएंगे। बेषक वे मंझे हुए वरिश्ठतम नेता हैं और नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रह चुके हैं, मगर एक व्यापारी के नाते जरा संभल कर चलना चाहिए, क्योंकि सिस्टम की नैसर्गिक खामियों के चलते व्यापारी को चाहे जब किसी न किसी षिकंजे में लिया जा सकता है।
मसले का अहम पहलु ये है कि संबंधित फर्म का कहना है कि उनका होटल रेलवे की भूमि पर बना हुआ है, इसलिए स्थानीय निकाय के नियम लागू नहीं होते हैं। वहीं निगम के सूत्रों बताते हैं कि रेलवे परिसर में बनी व्यावसायिक संपत्तियों पर स्थानीय निकाय टैक्स की वसूली कर सकते हैं। इस संबंध में भाजपा नेता धर्मेश जैन का कहना है कि टैक्स जमा कराने की जिम्मेदारी तालेड़ा स्क्वायर की है। उनका रेस्टोरेंट सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं है।
मोटी मोटी बात यह भी है कि भले ही कार्यवाही तालेड़ा स्क्वायर पर की गई है और अगर वह दोशी है तो ऐसे दोशपूर्ण भवन में रेस्टोरेंट का संचालन करते हुए इस बात का ख्याल क्यों नहीं रखा गया कि तालेड़ा स्क्वायर पर कार्यवाही की गाज रेस्टोरेंट पर गिर सकती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि तालेडा स्क्वायर का यह गुमान था कि भाजपा नेता के होते हुए कार्यवाही नहीं होगी? बहरहाल, रेस्टोरेंट के पार्टनर राजा कनोडिया ने आयुक्त को पत्र लिख कर सीजिंग की कार्यवाही पर ऐतराज किया गया है। साथ ही रेस्टोरेंट को सीजिंग से मुक्त करने की मांग की गई है।
जानकारी के अनुसार यह मामला भाजपा हाईकमान तक पहुंच गया है और स्वाभाविक रूप स्थानीय भाजपा नेताओं का भी मेयर पर दबाव बन रहा होगा। अंजाम क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा।

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