*समय की बलिहारी, फिर झुके गर्दन हमारी*

सत्ता बदलाव के साथ बदल जाती है सरकारी हाकिमों व कारिंदों की बोली
-जिस विपक्षी दल के नेताओं को तवज्जो नहीं देते थे, सत्ता में आने पर उन्हीं की पगचम्पी करने लग जाते हैं

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉’’समय की बलिहारी’’, ’’समय बड़ा बलवान’’, यह जुमले, मुहावरे या कहावतें हमने बहुत सुनी होंगी। वाकई में समय बड़ा बलवान भी होता है और समय की बलिहारी भी होती है, इसमें कोई दोराय नहीं है। यह समय ही है, तो जो अच्छे-अच्छों को अपनी औकात, हैसियत और गुरूर का नतीजा दिखा देता है। यह ब्लॉग उन सरकारी अफसरों और कर्मचारियों या राजनेताओं के लिए है, जो अपना समय अच्छा होने पर पायजामे में नहीं समाते हैं। सरकारी अफसरों और कर्मचारियों के लिए एक बड़ी सीख यह है कि उन्हें हर समय एक जैसा रखना चाहिए। देश-प्रदेश की सत्ता में कोई भी राजनीतिक दल हो, उसकी पगचम्पी में विरोधी दलों के नेताओं-कार्यकर्ताओं और आमजन से कभी भी बुरा बर्ताव नहीं करना चाहिए। अब देखिए, प्रदेश में कांग्रेस शासनकाल में जो अधिकारी और कर्मचारी विपक्षी दल भाजपा के छोटे-मोटे कार्यकर्ताओं, पार्षदों और पार्टी पदाधिकारियों की बात तो बहुत दूर है, भाजपा विधायकों और सांसदों को रत्तीभर नहीं गांठते थे, वही अब भाजपा के सत्ता में आते ही भाजपा नेताओं, विधायकों और सांसदों की ही नहीं, पार्टी पदाधिकारियों की भी पगचम्पी करने लगे हैं।

प्रेम आनंदकर
मुझे अच्छी तरह याद है, जो आला अधिकारी किसी समय भाजपा विधायकों को ऊंची आवाज में बात नहीं करने या धीमे स्वर में बात करने की नसीहत दे रहे थे, वही अब उन्हीं भाजपा विधायकों के फिर से चुने जाने पर जी-हुजूरी करते नजर आने लगे हैं। एक अधिकारी ने किसी सिलसिले में मिलने पहुंचे एक विधायक को ऊंची आवाज में बात नहीं करने की नसीहत दी थी, जिसकी सोशल मीडिया सहित मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर खासी चर्चा हुई थी और चटखारे वाली खबर भी बनी थी। लेकिन उसी विधायक के फिर से निर्वाचित होने के बाद अब ऊंचा पद हासिल करने पर वही अधिकारी उन्हें सैल्यूट करने के लिए उनके घर पहुंचे और अब ’’यस सर, यस सर’’ करते नजर आते हैं। यही विधायकजी जब किसी जनसमस्या को लेकर एक आला प्रशासनिक अधिकारी से मिलने गए थे, तो उस अधिकारी ने शिष्टाचारवश बैठने के लिए बोलने तो दूर अपने चैम्बर के बाहर खड़े-खड़े ऐसे बात की थी, जैसे कोई छोटा-मोटा कार्यकर्ता पहुंचा हो। लेकिन अब वही आला अधिकारी भी उसी नसीहत देने वाले अधिकारी के साथ हाजिरी बजाने के लिए पहुंचे। कहने का तात्पर्य यह है कि विधायक और सांसद चाहे भाजपा के हों या कांग्रेस के या फिर किसी अन्य दल के, उनका स्थान प्रोटोकॉल अनुसार अधिकारियों से काफी ऊंचा होता है, इसलिए अधिकारियों को इस मुगालते या गुमान में नहीं रहना है कि वे केवल सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों, सांसदों या पार्टी कार्यकर्ताओं की इज्जत करेंगे। अभी भाजपा सत्ता में आई है, तो इसका यह मतलब भी नहीं है कि विपक्षी दल कांग्रेस के पार्टी उन पदाधिकारियों की अनदेखी करना शुरू कर दिया जाए, जिनकी कांग्रेस में सत्ता में रहते हुए तूती बोलती थी और अधिकारी उनके हर हुक्म की तामील करते थे। अधिकारी और कर्मचारी लोकसेवक होते हैं और उन्हें तनख्वाह जनता की गाड़ी कमाई के टैक्स से ही मिलती है। इसलिए अधिकारियों और कर्मचारियों को केवल राजनेताओं ही नहीं, आमजन से भी सद् व्यवहार करना चाहिए। किसी भी कर्मचारी और अधिकारी के सेवाकाल के रिकॉर्ड को अच्छा व खराब राजनेता नहीं, आमजन बनाते हैं। यदि कार्यकाल अच्छा रहता है, तो जनता सिर-आंखों पर बैठाती है, वरना पुतले जलाती है। हां, जनप्रतिनिधि जनता के नुमाइंदे होते हैं, इसलिए राज किसी भी दल का हो, सभी के साथ व्यवहार शालीन रखना चाहिए। वरना सत्ता में आने पर पगचम्पी करते रहना पड़ेगा। यदि व्यवहार अच्छा रहेगा, तो कोई भी दल सत्ता में आए, कभी भी जीवन और सेवाकाल पर असर नहीं पड़ेगा। और सत्तासीन नेताओं के कोपभाजन बनने से बचे रहेंगे।

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