*सहानुभूति भारी,सत्ता हारी*

ओम माथुर
श्रीकरणपुर में कांग्रेस की जीत भाजपा की अनैतिक चाल पर जीत माना जा सकता है। जिसमें भाजपा ने चलते चुनाव के बीच अपने प्रत्याशी सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को बिना विधायक बने ही मंत्री बना दिया था,जो सीधे-सीधे क्षेत्र की जनता को लुभाने की कोशिश थी। लेकिन जनता ने पार्टी की इस चाल को नकार दिया और अपनी हार के साथ ही टीटी पार्टी को भी विधानसभा चुनाव की भारी जीत के एक महीने बाद ही बड़ा सदमा दे गए।
देश में ऐसा पहली बार हुआ था, जब बीच चुनाव में किसी प्रत्याशी को मंत्री बना दिया गया था। अब शायद देश में ऐसा भी पहली बार ही हुआ होगा कि वह मंत्री पदभार संभाले बिना ही दस दिन बाद ही चुनाव हार गया। अब टीटी को विधायक बने बिना 6 माह तक मंत्री रखना है या हटाना है ,यह फैसला भाजपा को करना है। दरअसल करणपुर से भाजपा को ये फीडबैक था कि वहां से टीटी चुनाव हार सकते हैं। इसीलिए उन्हें मंत्री बनाया गया था, लेकिन फिर भी मतदाताओं ने उन्हें कबूल नहीं किया। रूपिंदर सिंह कुन्नर को अपने पिता गुरमीत सिंह की मृत्यु के बाद उपजी सहानुभूति का वोटों के रूप में लाभ मिला। खुद गुरमीत सिंह की क्षेत्र में ईमानदार और जमीनी नेता की छवि रही है और वह खुद भी चाहते थे कि इस बार उनकी जगह उनके पुत्र को टिकट मिल जाए। लेकिन कांग्रेस ने चुनाव में किसी भी नेता के पुत्र या पुत्री को टिकट नहीं देने का फैसला किया था, इसलिए रूपिंदर को भी टिकट नहीं मिला। लेकिन शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था। चुनाव के दौरान गुरमीत सिंह का निधन हो गया और कांग्रेस ने बाद में बेटे रूपिंदर को अपना प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस ने सहानुभूति भुनाने के चलते बेटे पर दांव खेला था,तो भाजपा ने टीटी को मंत्री बनाकर सत्ता का दांव चला था। लेकिन सहानुभूति के आगे सत्ता नाकाम हो गई। राजस्थान में उपचुनाव में कांग्रेस के विधायकों के निधन के बाद उनकी पत्नियां-बेटों के जीतने का इतिहास रहा है। सुजानगढ़ में भंवरलाल मेघवाल के पुत्र मनोज मेघवाल, वल्लभनगर से गजेंद्र शक्तावत की पत्नी प्रीति शक्तावत सहाड़ा से कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री त्रिवेदी और सरदारशहर से भंवर लाल शर्मा की बेटा अनिल शर्मा इसके उदाहरण हैं, जो सभी उपचुनाव में विजय रहे थे।
इस हार से भजनलाल सरकार की छवि पर निश्चित रूप से आंच जाएगी। सत्ता संभालने के सिर्फ एक महीने बाद पूरी सरकार के चुनाव में लगने के बाद भी यह हार भाजपा के लिए झटका है। खुद मुख्यमंत्री भजनलाल, उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी,भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी सहित कई बड़े भाजपा नेताओं ने टीटी के लिए प्रचार किया था,लेकिन उन्हें जीत नहीं दिला सके। ऐसा लगता है कि पूर्ण बहुमत मिलने के बाद भाजपा को ये खुशफहमी हो गई थी कि करणपुर के लोग भी उसका ही साथ देंगे। इससे यह बिल्कुल साफ हो गया कि राजस्थान विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत केवल प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर मिली जीत ही थी। उसके पास वसुंधरा राजे के बाद प्रदेश स्तर पर खुद का कोई मजबूत चेहरा नहीं है। जो एक चुनाव जिता सके। एक तथ्य ये भी है कि प्रदेशाध्यक्ष जोशी एवं मुख्यमंत्री भजनलाल दोनों ही मोदी-शाह की पसंद है और उन्हें दिल्ली ने सीधे चुना है। इस हार से इन दोनों की छवि भी दिल्ली दरबार में कमजोर होगी। लेकिन इससे लोगों में ये संदेश भी गया है कि राजस्थान में अब भाजपा मजबूत नेताओं को दरकिनार कर ऐसे नेताओं का आगे बढ़ा रही है,जिन्हें दिल्ली से नियंत्रित किया जा सके। पहले मुख्यमंत्री के चयन और उसके बाद मंत्रिमंडल गठन तथा विभागों के वितरण में यह बहुत कुछ साफ हो चुका है।
यूं भी राजस्थान की भाजपा सरकार को कांग्रेस पर्ची और दिल्ली के इशारे पर चलने वाली सरकार बताती है। इस हार से चार माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में राजस्थान में मिशन- 25 की भाजपा का रणनीति पर भी असर पड़ेगा। लेकिन ये तय है कि राजस्थान भाजपा के संगठन और सत्ता पर अब दिल्ली का दबदबा और बढ़ेगा।

ओम माथुर
*9351415379*

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