महावीर नए भारत के अभ्युदय की जीवंत प्रेरणा है

lalit-garg
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भगवान महावीर के 2550वें मोक्ष कल्याणक दिवस को मनाने की सार्थक पहल करके एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। दिनांक 12 फरवरी 2024 को विज्ञान भवन में आयोजित इस राष्ट्रीय समारोह में संघ के सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी एवं चारों जैन संप्रदाय के आचार्य और मनी गण भाग लेंगे । महावीर का मोक्ष कल्याणक महोत्सव का महत्व सिर्फ जैनियों के लिए ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज के लिये है। महावीर की शिक्षाओं की उपादेयता सार्वकालिक, सार्वभौमिक एवं सार्वदेशिक है, दुनिया के तमाम लोगों ले इनके जीवन एवं विचारों से प्रेरणा ली है। सत्य, अहिंसा, अनेकांत, अपरिग्रह ऐसे सिद्धान्त हैं, जो हमेशा स्वीकार्य रहेंगे और विश्व मानवता को प्रेरणा देते रहेंगे। महावीर का संपूर्ण जीवन मानवता के अभ्युदय की जीवंत प्रेरणा है। लाखों-लाखों लोगों को उन्होंने अपने आलोक से आलोकित किया है। इसलिए नए भारत में महावीर बनना जीवन की सार्थकता का प्रतीक है।
भगवान महावीर की शिक्षाओं का हमारे जीवन और विशेषकर व्यावहारिक जीवन में किस प्रकार समावेश हो और कैसे हम अपने जीवन को उनकी शिक्षाओं के अनुरूप ढाल सकें, यह अधिक आवश्यक है लेकिन इस विषय पर प्रायः सन्नाटा देखने को मिलता है। विशेषतः जैन समाज के लोग एवं अनुयायी ही महावीर को भूलते जा रहे हैं, उनकी शिष्याओं को ताक पर रख रहे हैं। दुःख तो इस बात का है कि जैन समाज के सर्वे-सर्वा लोग ही सबसे ज्यादा महावीर को सबसे अधिक अप्रासंगिक बना रहे हैं, महावीर ने जिन-जिन बुराइयां पर प्रहार किया, वे उन्हें ही अधिक अपना रहे हैं। उस महान् क्रांतिकारी वीर महापुरुष का मोक्ष कल्याणक महात्सव आयोजनात्मक ही नहीं प्रयोजनात्मक नहीं हो , इस दृष्टि से संघ का यह आयोजन संपूर्ण देशवासियों को एक नया संदेश देगा। हम महावीर को केवल पूजते हैं, जीवन में धारण नहीं कर पाते हैं। हम केवल कर्मकाण्ड और पूजा विधि में ही लगे रहते हैं और जो मूलभूत सारगर्भित शिक्षाएं हैं, उन्हें जीवन में नहीं उतार पाते।
समय के आकाश पर आज अनगिनत प्रश्नों का कोलाहल है। महावीर ने जो उपदेश दिया हम उसे आचरण में क्यों नहीं उतार पाए? मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था और विश्वास कमजोर क्यों पड़ा? धर्म की व्याख्या में हमने अपना मत, अपना स्वार्थ, अपनी सुविधा, अपना सिद्धान्त क्यों जोड़ दिया? ये ऐसे प्रश्न हैं जो हमारे जीवन को जटिल और समस्याग्रस्त बना रहे हैं। मनुष्य जिन समस्याओं से और जिन जटिल परिस्थितियों से घिरा हुआ है उन सबका समाधान महावीर के दर्शन और सिद्धांतों में समाहित है। जरूरी है कि हम महावीर ने जो उपदेश दिये उन्हें जीवन और आचरण में उतारें। हर व्यक्ति महावीर बनने की तैयारी करे, तभी समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। महावीर वही व्यक्ति बन सकता है जो लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित हो, जिसमें कष्टों को सहने की क्षमता हो। जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी समता एवं संतुलन स्थापित रख सके, जो मौन की साधना और शरीर को तपाने के लिए तत्पर हो। जिसके मन में संपूर्ण प्राणिमात्र के प्रति सहअस्तित्व की भावना हो। जो पुरुषार्थ के द्वारा न केवल अपना भाग्य बदलना जानता हो, बल्कि संपूर्ण मानवता के उज्ज्वल भविष्य की मनोकामना रखता हो।
महावीर जन्म से महावीर नहीं थे। उन्होंने जीवन भर अनगिनत संघर्षों को झेला, कष्टों को सहा, दुख में से सुख खोजा और गहन तप एवं साधना के बल पर सत्य तक पहुंचे, इसलिये वे हमारे लिए आदर्शों की ऊंची मीनार बन गये। उन्होंने समझ दी कि महानता कभी भौतिक पदार्थों, सुख-सुविधाओं, संकीर्ण सोच एवं स्वार्थी मनोवृत्ति से नहीं प्राप्त की जा सकती उसके लिए सच्चाई को बटोरना होता है, नैतिकता के पथ पर चलना होता है और अहिंसा की जीवन शैली अपनानी होती है।
महावीर का एक महत्वपूर्ण संदेश है ‘क्षमा’। महावीर ने कहा कि ‘खामेमि सव्वे जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे, मित्ती में सव्व भूएसू, वेर मज्झं न केणई’। अर्थात् ‘मैं सभी से क्षमा याचना करता हूं। मुझे सभी क्षमा करें। मेरे लिए सभी प्राणी मित्रवत हैं। मेरा किसी से भी वैर नहीं है। यदि महावीर की इस शिक्षा को हम व्यावहारिक जीवन में उतारें तो फिर क्रोध एवं अहंकार मिश्रित जो दुर्भावना उत्पन्न होती है और जिसके कारण हम घुट-घुट कर जीते हैं, वह समाप्त हो जाएगी। व्यावहारिक जीवन में यह आवश्यक है कि हम अहंकार को मिटाकर शुद्ध हृदय से आवश्यकता अनुसार बार-बार ऐसी क्षमा प्रदान करें कि यह भावना हमारे हृदय में सदैव बनी रहे।
महावीर का संपूर्ण जीवन तप और ध्यान की पराकाष्ठा है इसलिए वह स्वतः प्रेरणादायी है। भगवान के उपदेश जीवनस्पर्शी हैं जिनमें जीवन की समस्याओं का समाधान निहित है। भगवान महावीर चिन्मय दीपक हैं। दीपक अंधकार का हरण करता है किंतु अज्ञान रूपी अंधकार को हरने के लिए चिन्मय दीपक की उपादेयता निर्विवाद है। वस्तुतः भगवान के प्रवचन और उपदेश आलोक पंुज हैं। ज्ञान रश्मियों से आप्लावित होने के लिए उनमें निमज्जन जरूरी है।
महावीर आदमी को उपदेश/दृष्टि देते हैं कि धर्म का सही अर्थ समझो। धर्म तुम्हें सुख, शांति, समृद्धि, समाधि, आज, अभी दे या कालक्रम से दे, इसका मूल्य नहीं है। मूल्य है धर्म तुम्हें समता, पवित्रता, नैतिकता, अहिंसा की अनुभूति कराता है। महावीर बनने की कसौटी है-देश और काल से निरपेक्ष तथा जाति और संप्रदाय की कारा से मुक्त चेतना का आविर्भाव। भगवान महावीर एक कालजयी और असांप्रदायिक महापुरुष थे, जिन्होंने अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत को तीव्रता से जीया। वे इस महान त्रिपदी के न केवल प्रयोक्ता और प्रणेता बने बल्कि पर्याय बन गए। आज के युग की जो भी समस्याएं हैं, चाहे हिंसा एवं युद्ध की समस्या हो, चाहे राजनीतिक अपराधीकरण एवं अनैतिकता की समस्या, चाहे तनाव एवं मानसिक विकृतियां हो, चाहे आर्थिक एवं पर्यावरण की समस्या हो- इन सब समस्याओं का समाधान महावीर के अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत के सिद्धान्तों एवं उपदेशों में निहित है। इसलिये आज महावीर के पुनर्जन्म की नहीं बल्कि उनके द्वारा जीये गये आदर्श जीवन के अवतरण की/पुनर्जन्म की अपेक्षा है। जरूरत है हम बदलें, हमारा स्वभाव बदले और हम हर क्षण महावीर बनने की तैयारी में जुटें तभी महावीर मोक्ष कल्याणक महोत्सव मनाना सार्थक होगा।
(ललित गर्ग)
सदस्य राजभाषा समिति- गृहमंत्रालय, भारत सरकार
अध्यक्ष: सुखी परिवार फाउण्डेशन
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