आगे बढ़ने के लिए जीवन में शार्ट अपनाने का परिणाम बुरा

खरगोश और कछुए की रेस की कहानी हमने में से कई ने सुनी और पढी है। घमंड में चूर तेज दौड़ने वाले खरगोश ने धीमी गति से चलने वाले कछुऐ की हंसी उड़ाई और उसे दौड़ स्पर्धा की चुनौती दे डाली।
रेस शुरू होने पर तेज़ दौड़ते हुए खरगोश को एक हरा भरा बगीचा दिखाई दिया। हरी हरी घास देखकर ललचाया खरगोश घास खाने रूक जाता है। और पेट भर जाने पर ठंडी छांव में सुस्ताने लगता है।
इधर कर्मशील कछुआ बिना रुके सतत् अपने पथ पर लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता हुआ लक्ष्य हासिल कर लेता है।
तब खरगोश नींद से जाग कर हड़बड़ी में दौड़ता हुआ वहां पहुंचता है। निर्णायक कछुए को विजेता घोषित करते हैं। खरगोश की हार होती है।

मनुष्य के जीवन की जिंदगी रेस भी कुछ ऐसी ही है।
हम में से कई लोग खरगोश तो कई कछुए बनते हैं। जो अपनों से आगे निकलने , (वह चाहे पढ़ाई,पद, धन कमाने की दौड़ हो सकती है) दौड़ में आगे बढ़ने के लिए सतत निरंतर प्रयास मेहनत की बजाय शोर्ट कट का सहारा लेना चाहते हैं।
कोई चोरी,लूट ,डाका, मिलावट,नकली माल जैसे अनैतिक काम करके भले ही तात्कालिक तौर पर सम्मान या धन जमा कर सकते हैं।
लेकिन शार्ट रास्ते से ऊंचाई पर पहुंचने वाले को नीचे या जीवन के अंतिम सफर तक भी शार्ट रास्ते से ही पहुंचना पड़ेगा। ब्लड प्रेशर, शुगर कैंसर जैसे दानव उन पर हमला करने के लिए तत्पर रहते हैं।

जबकि कई लोग कछुए कै जैसे निरंतर और सतत अपने कर्तव्य कर्म में लगे रहते हैं। ईमानदारी कर्म करते रहते हैं। दूसरों की चकाचौंध की होड़ किए बिना सतत् और निरंतर कर्तव्य कर्म करते हुए आगे बढ़ते हैं।
जीवन की रेस में तात्कालिक रूप से भले ही वे पीछे रह जाए, लेकिन जिंदगी की आपाधापी में सुकुन और सुख शांति समृद्धि पाने में वही सफल होते हैं।

पोल्ट्री फार्म के पिंजरे में बंद मुर्गी दिन रात दाना खाती रहती है शायद वह सोचती हो कि उसके लिए ईश्वर ने दाना पानी की व्यवस्था के लिए नौकर चाकर भेजे हैं।वह अन्य प्राणियों में से सबसे ज्यादा सुखी है । उसका जीवन स्वर्ग है।
लेकिन दिन-रात दान खा कर वह इतनी मोटी हो जाती है कि पंख होते हुए भी उड़ नहीं पाती। दिन रात खाकर मोटी तगड़ी होने वाली मुर्गी का अगला घर कत्लखाना होता है।
किसी बकरी के यदि दो जुड़वां बच्चे बकरा और बकरी हो तो जंगल से चरकर आने के बाद भी पशुपालक बकरे के भोजन के लिए विशेष व्यवस्था करता है। उसे रोज बढ़िया अनाज दाना भी खिलाता है। बकरी की तुलना में बकरा जल्दी मोटा तगड़ा हो जाता है। बकरा भले ही अपने भाग्य पर घमंड करे लेकिन गंतव्य उसका भी कत्ल खाना ही होता है।
मनुष्य के जीवन में जो शार्टकट रास्ते से आगे बढ़ने का ख्वाब पलते हैं थोड़े समय के लिए भले ही आगे बढ़ जाए लोगों की वाहवाही बटोर ले। लेकिन उनके जीवन का अंत समय भी जल्दी ही आ जाता है। जीवन जीने का सुख और सुकुन उन्हें नहीं मिल पाता।

*हीरालाल नाहर पत्रकार*
*9929686902*

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