जलकुम्भी पौधा

केशव राम सिंघल
जलकुम्भी पानी में तैरने वाला एक अद्वितीय प्रकार का फूलदार पौधा है। यह पौधा मूलतः दक्षिणी अमेरिका का है और भारत में वर्ष 1986 में आया। बंगाल के पहले गवर्नर जनरल बेरिन हेस्टिंग्स इसे भारत में लाए थे। इस पौधे के कई लाभ और नुकसान हैं। इस पौधे ने 1950 तक बंगाल और असम में अनेक समस्याएँ पैदा की थीं। इस पौधे का अंग्रेजी नाम “Water Hyacinth” है। यह पौधा भारतीय नदियों और झीलों में आकर्षित होता है। तेजी से बढ़ने की इसकी क्षमता इस पौधे के असंतुलित विकास के लिए जाना जाता है।
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इस पौधे को बंगाल का आतंक भी कहा जाता है क्योंकि यह एक विदेशी पौधा है, जो जल निकाय की सतह पर खतरनाक दर से बढ़ रहा है। यह प्रकाश की कमी और ऑक्सीजन की कमी के कारण मछली और अन्य जलीय जीवों के विकास को रोकता है।
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जलकुम्भी पौधे के नुकसान
जलकुम्भी पौधे के बहुत से नुकसान हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि यह जलमार्गों को अधिक बाधित कर सकता है, जिससे जलमार्गों का प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है। इसके अतिरिक्त, यह पौधा जल में ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर सकता है, जिससे जल में जीवन का नाश हो सकता है, अर्थात मछलियाँ और अन्य पानी के जीव मर सकते हैं।
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जलकुम्भी पौधे की उपस्थिति से वाष्पोत्सर्जन की गति में वृद्धि होने की संभावना होती है। जलकुम्भी पौधे के अधिकतम विकास के समय पर, यह जल में कार्बन और नाइट्रोजन के अधिशेष का संचय करता है, जिससे जल में जीवाणुओं और अन्य जीवों के उत्सर्जन को बढ़ावा मिलता है। यह वाष्पोत्सर्जन की गति को बढ़ा सकता है, जिससे नदियों और झीलों में पानी का स्तर कम हो सकता है।
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जलकुम्भी के संबंध में एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य है कि इसकी उपस्थिति से ग्रसित पानी का क्षेत्र मच्छरों की उत्पत्ति के लिए सहायक हो सकता है। जलकुम्भी पौधे जल में अधिक संख्या में जीवाणुओं की उत्पत्ति को बढ़ावा देता है, जो मच्छरों के लिए आहार के स्रोत के रूप में काम कर सकते हैं। इस तरह, जलकुम्भी पौधे मच्छरों की उत्पत्ति को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं, जो कि पास में आवासीय क्षेत्र में रहने वालों के लिए नुकसानदायक है।
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जलकुम्भी पौधे के लाभ
यह विभिन्न प्रकार की जलीय जीवों की प्रोत्साहन में सहायक हो सकता है। इसके साथ ही, इसे खाद बनाने में भी उपयोग किया जा सकता है। यह पौधा जल में पोषक तत्वों का संचय करके जलीय जीवों के विकास और वृद्धि में प्राथमिक रूप से मदद करता है। जलकुम्भी पौधे का उपयोग विभिन्न प्रकार के जलीय जीवों के उत्पादन में किया जाता है, जैसे कि मछलियाँ, कीटाणु, और अन्य संयोजन। यह पौधा जल के माध्यम से पोषक तत्वों का आपूर्ति करता है जो जलीय जीवों के विकास और वृद्धि में मदद करते हैं। जलकुम्भी पौधे का उपयोग प्राथमिक रूप से जलीय जीवों के प्रोत्साहन में होता है, लेकिन जब यह अधिक मात्रा में बढ़ जाता है, तो इसका नकारात्मक प्रभाव अर्थात जल में जीवन का नाश होता है।
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जलकुम्भी पौधे से निपटान
यदि किसी झील में बिना उगाए जलकुम्भी पौधे उग जाएँ तो इससे कैसे निपटा जा सकता है? यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है। जलकुम्भी पौधे हटाने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि रस्सी, जाल या अन्य उपकरणों का उपयोग करके इसे हटाया जा सकता है। जलकुम्भी को हटाने के लिए जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ जैविक कीटनाशक विशेष रूप से जलकुम्भी जैसे जलीय वनस्पतियों को नष्ट करने के लिए तैयार किए जाते हैं। ये जैविक कीटनाशक जलकुम्भी को बढ़ने से रोक सकते हैं और उसके प्रजनन को नष्ट कर सकते हैं। इसे नियंत्रित करने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए अन्य वैज्ञानिक अध्ययन किए जा रहे हैं।
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जैविक कीटनाशकों का उपयोग करते समय, ध्यान दिया जाना चाहिए कि ये वातावरण को हानि न पहुँचाए और अन्य संजीवियों को प्रभावित न करें। इसलिए, सबसे अच्छा यह है कि कृषि विशेषज्ञों से सलाह ली जाए और उनके द्वारा सुझाए गए निर्देशों का पालन किया जाए।
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जलकुम्भी को नष्ट करने और उसके प्रजनन को रोकने के लिए कई प्रकार के जैविक कीटनाशक हो सकते हैं। निम्नलिखित कुछ उदाहरण हैं:
(1) कार्प ग्रास कार्प: यह एक प्रकार का जलीय कीट है जो जलकुम्भी को खाता है और इसे नष्ट कर सकता है।
(2) नीम तेल: नीम का तेल जलकुम्भी के विकास को रोक सकता है और उसे मार सकता है।
(3) मेथिल जलावार: यह भी जलकुम्भी के विकास को रोकने और उसे मारने में मदद करता है।
(4) कोपर जलावार: इसका उपयोग भी जलकुम्भी के विकास को नियंत्रित करने और उसे नष्ट करने में किया जा सकता है।
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ये कुछ उदाहरण हैं, लेकिन अधिक विवरण के लिए उपयुक्त कीटनाशकों के बारे में जानकारी के लिए कृषि विशेषज्ञों से संपर्क करना बेहतर होगा।
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अजमेर के आनासागर पर जलकुम्भी का प्रकोप
पिछले कई समय से अजमेर के आनासागर पर जलकुम्भी का प्रकोप छाया हुआ है। पिछले महीने मशीनों और जनशक्ति की तैनाती अजमेर में आना सागर झील को जलकुंभी से बचाने में विफल रही है। झील, जो वर्तमान में हरे आवरण में है, से बदबू आने लगी है और इसकी वनस्पतियाँ और मछलियाँ मरने लगी हैं। यह दुःखद स्थिति है। इस सम्बन्ध में आवश्यक उपाय करने की आवश्यकता है, जिसके लिए स्थानीय प्रशासन को कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए।

केशव राम सिंघल

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