पृथ्वी दिवस पर मेरे मन के भाव

*सबकी माँ -पृथ्वी*

अंबिका हेडा
समेट के अपने आँचल में
एक एक को पनाह देती है ।
वो *माँ पृथ्वी* ही तो है जो
उफ़ ना किया करती है ।

हीरे मोती क़ीमती ज़ेवरात
सब से सजी होती है ।
सागर ,नदियाँ ,तालाब
जिसकी पहचान होती है ।
वो *माँ पृथ्वी* गंदे नालों को भी
अपना लेती है ………
क्यूँकि एक माँ ही तो होती है
जो अपने बच्चों की हर बात सहन करती है ।

विराट पहाड़ ,टीले
श्रिंगार है जिस माँ के 🙏
वो ऊँचे कचरे के ढेर को देख भी
मौन रहती है 😷
जैसे एक माँ अपने बच्चे के
गिले में भी सो लेती है ।

धरा पर खड़े वृक्ष
जो *पृथ्वी माँ * को सूक़न देते है ।
हम परवाह किये बिना माँ की
अपने फ़ायदे के लिए उन्हें काट देते है ।

कष्ट देने पर भी बच्चों की
ख़ुशहाली की दुआ करती है ।
एक माँ ही तो है जो बच्चों से
निस्वार्थ प्यार करती है ।

जिस तरह माँ की ममता का
क़र्ज़ चुकाना नामुमकिन है ।
*पृथ्वी माँ* के दिए उपहारो का
मोल चुकाना नामुमकिन है 🙏

अम्बिका हेड़ा
अजमेर
राजस्थान

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