*सूरत के बाद इंदौर में भाजपा का खेल,कांग्रेस हुई फेल*
*एक महीने पहले 28 मार्च को मैंने एक ब्लाग लिखा था। शीर्षक था,बड़े नेताओं के चुनाव लड़ने से पिंड छुड़ाने से कांग्रेस में गफलत,टिकट लौटाना यानी मनोवैज्ञानिक हार। इस ब्लॉग में मैंने राजस्थान और देश में पहले लोकसभा चुनाव लड़ने से बचने वाले कांग्रेस नेताओं और फिर कुछ स्थानों पर कांग्रेस के घोषित उम्मीदवारों के टिकट लौटा देने की चर्चा करते हुए ये आशंका जताई थी कि *”अब तो कांग्रेस को ये डर भी सताने लगा होगा कि कहीं ऐसा ना हो कि उसका कोई अधिकृत उम्मीदवार नामांकन भरने के बाद अंतिम तिथि पर नाम वापस लेकर भाजपा के लिए रास्ता साफ कर दे। आखिर कांग्रेसियों का क्या भरोसा? जिस तरह से इस बार कांग्रेस से भाजपा में जाने के लिए नेताओं में भगदड़ मची हे,उससे कुछ भी असंभव नहीं लगता।”*
*मध्य प्रदेश के इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशी ने नाम वापस लेकर अपनी इस आशंका को आज सही साबित कर दिया। इंदौर लोकसभा सीट के कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने आज कांग्रेस की उम्मीदों के साथ ही उसकी प्रतिष्ठा और आलाकमान की ढीली पड़ती पकड़ को चौराहे पर पटक दिया। उन्होंने भाजपा के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और भाजपा विधायक रमेश मेंदोला के साथ जाकर पहले नाम वापस लिया और फिर भाजपा में शामिल हो गए। अब भाजपा इंदौर में भी सूरत की तरह निर्विरोध निर्वाचन की योजना बना रही है। इसलिए माना जा रहा है कि वह बचे हुए उम्मीदवारों को भी मैदान से हटवा सकती है। इंदौर में नामांकन वापसी कल मंगलवार दोपहर 3 बजे तक होगी।*
*इससे पहले भाजपा गुजरात में भी यही खेल खेल चुकी है। लेकिन वहां अंदाज अलग था । वहां कांग्रेस प्रत्याशी निलेश कुंभाणी ने नाम तो वापस नहीं लिया था। लेकिन नामांकन पत्र में गवाहों के नाम और हस्ताक्षर में गड़बड़ी के कारण नामांकन रद्द हो गया था। फिर भाजपा ने बसपा प्रत्याशी सहित बाकी सात निर्दलीय प्रत्याशियों को भी मैदान से हटवा दिया और और भाजपा प्रत्याशी मुकेश दलाल ने निर्विरोध जीत दर्ज कर 18 लोकसभा में भाजपा का खाता खोल दिया। इस मामले में पहले भाजपा ने ही चुनाव आयोग को शिकायत की थी कि कुंभाणी के पर्चे में प्रस्तावकों के फर्जी हस्ताक्षर हैं। फिर चारों प्रस्तावक एक दिन पहले अपने हस्ताक्षर नहीं होने का हलफनामा कलक्टर को देकर आए। आयोग ने इस पर कुंभाणी को स्पष्टीकरण देने के लिए बुलाया। लेकिन सुनवाई के दौरान चारों प्रस्तावक ही गायब थे। इससे हस्ताक्षरों की पुष्टि नहीं हो सकी और नामांकन खारिज हो गया। दरअसल, इस मामले में खुद कुंभाणी और प्रस्तावकों की भाजपा से मिलीभगत के संकेत इस बात से मिलते हैं कि चार में से एक प्रस्तावक कुंभाणी का जीजा,दूसरा भतीजा और दो अन्य बिजनेस पार्टनर थे। उन्होंने जानबूझकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अपना प्रस्तावक नहीं बनाया। फिर रिश्तेदारों ने ही फर्जी हस्ताक्षर का हलफनामा दे दिया और इसके बाद गायब हो गए। बाद में यह स्पष्ट भी हो गया कि एक होटल से यह सारी कार्यवाही खुद गुजरात भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल की देखरेख में पूरी की गई।*
*इंदौर में अपने प्रत्याशी का नाम वापस लेने के बाद कांग्रेस ने आरोप लगाया कि अक्षय बम को डराया-धमकाया गया तथा एक पुराने मामले में हत्या के प्रयास की धारा 307 बढ़ाई गई। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस नेताओं का विश्वास मोदी और भाजपा पर है और अब तो उम्मीदवार भी कांग्रेस में रहना नहीं चाहते। इंदौर में इस पूरे मास्टर प्लान की रचना एक होटल में बैठकर कैलाश विजयवर्गीय ने की।*
*हो सकता है कल इंदौर में भी भाजपा प्रत्याशी की निर्विरोध जीत हो जाए। लेकिन क्या यह है लोकतंत्र और खुद भाजपा की सेहत के लिए अच्छा है? जिस तरह भाजपा ने सूरत और इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशियों को हटाने के लिए रणनीति बनाई। उससे मतदाताओं में संदेश गया है कि पार्टी हर हाल में चुनाव जीतना चाहती है। दूसरी पार्टियों के कई भ्रष्ट और घोटालेबाज नेताओं को पार्टी में शामिल करने,दलबदलुओं को टिकट देने,दूसरी पार्टियों को तोड़ने,जांच एजेंसियों का विपक्षी नेताओं के खिलाफ दुरूपयोग,राजनीतिक परिवारों में दरार डालने के कारण भाजपा की छवि को बट्टा लगा है। खुद को अलग चाल, चरित्र, चेहरे की पार्टी बताने वाली भाजपा अब लोगों को कांग्रेस और दूसरी पार्टियों जैसी ही लगने लगी है। जिसमें राजनीति की हर बुराई शामिल हो गई है।*
*सवाल ये भी है कि क्या इस बार 400 पार का नारा देश में पहले दो चरणों में हुए चुनाव में कम मतदान के कारण भाजपा को पूरा होता नजर नहीं आ रहा,जो उसे ऐसे खेल करने पड़ रहे हैं। या उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मैजिक पर भरोसा नहीं रहा।
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा की सत्ता पाने के लिए बदलती विचारधारा और प्राथमिकताओं के कारण उसका कोर वोटर भी उससे खफा है। इसलिए पहले दो चरणों में हुआ मतदान भाजपा को अपने लिए खतरे की घंटी नजर आ रहा है। ऐसे में क्या वह विपक्ष को कमजोर और हतोत्साहित करने के लिए आखिरी समय में उसके उम्मीदवारों को मैदान से हटवाने की रणनीति पर भी काम करने लगी है? बचे हुए पांच चरणों में ऐसे कुछ और मामले सामने आ सकते हैं। रोचक बात यह है की सूरत और इंदौर दोनों सीटें भाजपा का गढ़ है। जहां पिछले 40 साल से भाजपा का कब्जा है। इसके बावजूद उसने इन दोनों सीटों पर निर्विरोध चुनाव की रणनीति बनाई। गुजरात और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में कई सालों से भाजपा की सरकार है। जाहिर है राजनीति में विपक्षियों पर सत्ता का दबाव भी अपना असर दिखाता है,क्योंकि राजनीति में कोई दूध का धुला नहीं है।खासतौर पर धंधेबाज नेता और इन दोनों मामलों में कांग्रेसी व्यवसायी ही थे।*
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