भारत में लोकतंत्र ने फिर एक बार प्रचंड जीत हासिल की। धर्मान्धता, व्यक्तिपूजा और निरंकुशता हार गई मगर अराजकता, अस्थिरता अथवा अनिश्चितता इसकी जगह ले नहीं पाई। लोकसभा चुनाव परिणामों में जहां एक तरफ, इन्डिया एलायन्स को 232 के लगभग इतनी सीटें मिल गईं ताकि वह सत्ता के निरंकुश हाथी पर अंकुश लगाये रह सके वहीं दूसरी तरफ एन.डी.ए. गठबंधन को भी उतनी सीटें मिलीं जिनकी बदौलत वह पांच साल तक स्थिर व टिकाऊ सरकार चला सके। बस 292। न 400 के पार न 272 से कम। यही है परिपक्व मतदाता और स्वस्थ लोकतंत्र का प्रमाण। कुल मिला कर आज के चुनाव परिणामों में न कोई व्यक्ति जीता है और न ही कोई पार्टी बल्कि जीता है तो सिर्फ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र।
कहते हैं सत्ता भ्रष्ट बनाती है और निरंकुश सत्ता पूर्ण भ्रष्ट। वर्ष 2019 में दोबारा जबर्दस्त बहुमत मिलने के बाद भाजपा नीत एन.डी.ए. गठबंधन को लगने लगा था कि उन्हें अब किसी भी पत्थर पर जय श्री राम लिख कर कोई सा भी समंदर पार कराने का अचूक मंत्र मिल गया है। श्री राम मंत्र के मद में जहां भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं की बाडी लैंग्वेज खुद भगवान राम जैसी हो गई वहीं, चाय से ज्यादा गरम भाजपाई केतलियां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लोकल अवतार लगने लगीं। चाय की इन लोकल केतलियों ने असहमति के स्वरों पर इस कदर बुलडोजर चलाये कि बड़े बड़े बुद्धिजीवी होंठ सी लेने में ही भलाई समझने लगे। हैरत की बात तो यह कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ और बेबाक अभिव्यक्ति का जरिया समझा जाने वाला मीडिया भी मदान्ध सत्ता के आगे दुम हिलाता दिखाई देने लगा।ऐसा नहीं है कि देश में नायक पूजा पहले नहीं हुई हो। स्वर्गीय इंदिरा गांधी के शासनकाल में आपात काल भी लगा। सत्ता निरंकुश भी हुई। लोगों को जेलों में ठूंसा भी गया मगर मीडिया इस मुद्रा में पहले कभी नजर नहीं आया जैसा हाल ही दिखाई दिया।
बहरहाल मीडिया के एक बड़े हिस्से द्वारा पालतू धर्म अपना लेने, ई.डी. एवं सी.आई.डी. की लटकती तलवारें लटकी होने एवं बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों द्वारा बुद्धि के कपाट प्राय: बंद कर लेने के बावजूद इन्डिया एलायंस ने जो प्रदर्शन किया है वह देश के समझदार मतदाताओं के प्रति विश्वास जगाता है किन्तु उन्हें पूर्ण बहुमत न मिलना मतदाता के इस संकेत को भी स्पष्ट करता है कि अभी भी एलायंस को एक सर्वमान्य नेता, सर्व स्वीकार्य एजेन्डा और सर्व स्वीकृत एक ही रास्ते की दरकार है। मतदाता के संकेत को समझ कर इंडिया एलायंस को बजाय सत्ता का दावा पेश करने के, विपक्ष में बैठने का मार्ग चुनना चाहिये और लोकतंत्र के पहरुए के रूप में अपनी भूमिका निभाते हुए अपनी कमियों पर ध्यान देना चाहिये। जहां तक भाजपा का सवाल है उसके लिये ये चुनाव परिणाम बहुत सारे सबक एक साथ लेकर आये हैं। सिर्फ हिन्दु-मुस्लिम को लड़वा कर देश पर लम्बे समय तक राज नहीं चलाया जा सकता। आम आदमी को महंगाई से निजात चाहिये और युवाओं को रोजगार। केजरीवाल का भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार है और अजीत पंवार का भ्रष्टाचार शिष्टाचार, ऐसे दोहरे मानदंड सिर्फ अंधभक्तों को वश में कर सकते हैं। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में चुनी हुई सरकारों को हार्सट्रेडिंग से गिरा कर आप नैतिकता के भाषण देने का अधिका कम से कम नहीं रख सकते। शिवराज सिंह एवं वसुंधरा जैसे अनुभवी सहयोगियों को किनारे लगा कर भाजपा ने क्या पाया है, इस पर भी चिंतन होना चाहिये। क्या सिर्फ नरेन्द्र मोदी के नाम की पूजा ने संघ के समर्पित कार्यकर्ताओं की निष्ठा को प्रभावित नहीं किया होगा इस पर संघ के नेतृत्व को मनन की जरूरत है। कांग्रेस विहीन भारत का नारा क्या अपने आपमें स्वच्छन्द होने की मंशा उजागर नहीं करता? ऐसे ही अनेक बिन्दुओं पर आधारित आत्मविश्लेषण करके संगठन,एकजुटता और अनुशासन की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ कही जा सकने वाली भारतीय जनता पार्टी लम्बी उम्र का वरदान पा सकती है। बेशक उपरोक्त कमियों पर चिन्तन के बगैर ,एन.डी.ए. की सरकार बनने जा रही है मगर आत्मचिंतन के बगैर इसके लिये और अच्छे दिनों की उम्मीद बेकार है।
डा. रमेश अग्रवाल