बाय *डा. रमेश अग्रवाल*
एमर्सन नाम के किसी भोले भाले विचारक ने कहा है कि सभ्यता का असली इम्तहान इसकी आबादी , इसके शहरों की भव्यता या इसमें उगने वाली फसलों से नहीं बल्कि इस बात से होता है कि यह किस तरह के नागरिकों को जन्म देती है ? दुनिया की छठी महाशक्ति बनने जा रहा भारत सभ्यता और संस्कृति के मैदान में भी विश्वगुरू कहलाने के मन्सूबे बांध रहा है। इन्हीं रंगीन और मुंगेरी सपनों के बीच जब कोई काली सी बदनुमा खबर सुर्खियों में उभर कर आती है तो बेशक कोफ्त सी होती है। अभी दो ही रोज पहले समाचार पत्रों में छपा कि जोधपुर के कुछ नौजवान छुट्टे पट्ठों नें मजदूरी करने वाले एक बुजुर्ग को इस हद तक चिढ़ाया कि परेशान होकर उसने अपनी जान दे दी। खबर के मुताबिक यह वृद्ध जाने किन परिस्थितियों में इस जर्जर सी उम्र में भी ठेला चलाने को मजबूर था। कुछ फालतू युवाओं को वृद्ध के मुंह से निकली कोई बात हास्यपूर्ण लगी और इन्होंने इस घटना का वीडियो बना कर न सिर्फ सोश्यल मीडिया पर डाल दिया बल्कि यह वीडियो दिखा दिखा कर उसे रोज चिढ़ाने लगे। नैतिकता और धर्म का दम भरने वाले समाज के लिये एक शर्मनाक सवाल यह था कि अनेक सयाने और परिपक्व लोगों नें भी वृद्ध को परेशान होकर इधर से उधर भागते देखा मगर किसी ने इन ढीठ युवकों को रोकने या समझाने का प्रयास क्यों नहीं किया। इस पर यह और कि वृद्ध जब झल्ला कर आत्महत्या के इरादे से पेड़ पर चढ़ गया तब भी हर कोई बस एक तमाशबीन की तरह इस खेल के अन्त का इन्तजार भर करता रहा।
भारतीय संस्कृति में कहा जाता है कि जिस घर में बड़ों का सम्मान नहीं होता उस घर से लक्ष्मी और सरस्वती दोनों एक साथ विदा हो जाती है। दिलचस्प बात यह है कि जोधपुर में जिस दिन यह घटना घटित हुई उसी दिन उदयपुर में प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एक समारोह में भरे मंच पर स्वयं अपनी अवहेलना के बाद यह कहती सुनाई दीं कि, वफा का वो दौर बीत गया जब लोग किसी वरिष्ठ के किये हुए को मानते थे। आज लोग सबसे पहले उस उंगली को काटते हैं जिसे पकड़ कर वे चलना सीखते हैं। यह सच है आज हम भगवान राम के नाम के नारे तो लगाते हैं मगर हमें यह याद नहीं रहता कि राम ने सिर्फ बड़ों के सम्मान की खातिर अपनी सुनहरी युवावस्था जंगल की खाक में मिला डाली थी। ऋगवेद संहिता में कहा गया है कि मिनाति श्रियं जरिमा तनूनाम, अर्थात वृद्धावस्था शरीर का सारा आकर्षण छीन लेती है किन्तु यह अवस्था हर एक के जीवन में आनी है। प्रकृति का नियम है जो बोओगे वही काटोगे। युवा जो भी कुछ आज अपने वरिष्ठजन को देंगे, आने वाले कल के युवा वही सब उन्हें तब लौटाएंगे जब वे खुद बूढ़े हो जाएंगे।
शायद ये ही सब वे बातें हैं जिनकी वजह से, आज भी विश्व के हर सुसभ्य समाज में न सिर्फ वरिष्ठजन के सम्मान की नींव शैशवकाल में डाल दी जाती है बल्कि विधि और विधान के स्तर पर इसके लिये वांछित प्रावधान भी बनाये जाते हैं। डेन्मार्क और स्वीडन जैसे देश इस मामले में पूरे विश्व के लिये मिसाल हैं जो ,बुजुर्गों के रखरखाव ही नहीं बल्कि उनकी खुशी के इन्डैक्स में भी पूरे विश्व में नम्बर एक व दो पर आते हैं। यहां न सिर्फ वरिष्ठजन की आर्थिक सुरक्षा की गारन्टी है बल्कि उनके लिये सायास एक ऐसा वातावरण तैयार किया जाता है जिसमें न सिर्फ वे आत्मगौरव के साथ जी सकें बल्कि जीवन भर की मेहनत से सींचे गये अपनी खुशी के पुष्प का सर्वोच्च पल्लवन भी देख सकें। बेशक भारत सरकार द्वारा भी देश के वरिष्ठजन के लिये इन्टीग्रेटेड प्रोग्रेस फार ओल्डर मैन, राष्ट्रीय वयोश्री योजना, वरिष्ठ पेन्शन बीमा योजना, प्रधानमंत्री वय वंदना योजना, वयो श्रेष्ठ सम्मान जैसी योजनाओं को लिपिबद्ध किया गया है मगर बड़ों के वास्तविक सम्मान और खुशी की दिशा में कोई प्रयास अभी दूर की कौड़ी की ही तरह है। दूर की इस कौड़ी तक हम जाने कब पहुंचें बहरहाल जोधपुर जैसी घटनाओं को अगर रोकना है तो वरिष्ठजन के अपमान के विरुद्ध भी तत्काल प्रभाव से कोई ऐसा कानून बन ही जाना चाहिये जैसे कि अनुसूचित जाति जनजाति , विकलांग जन अथवा कुछ विशिष्ट श्रेणी के अनेक लोगों के लिये पहले से मौजूद है।