बुजुर्ग हमारे

खुलकर हंसने दो मुस्कुराने दो बुजुर्गो को
एक दिन खामोश हो जाना है बुजुर्गो को,
झिलमिलाते तारों की तरह सजाकर रखना
भुल से भी अवहेलना ना करना बुजुर्गो को।

उनके डांट-फटकार को दिल में ना लिया करो
उनके पद चिन्हों पर चलना सीख लिया करो,
उनकी बोली के कड़वाहट में प्यार छिपी होती है
हो सके तो इन बातों को समझ लिया करो।

चन्द दिनों के ही मेहमान है बुजुर्ग हमारे
मुकद्दर वाले हैं हम जो पास है हमारे,
उनके जाने के बाद सिर्फ यादें ही रह जाएंगे
फिर लौटकर नहीं आएंगे बुजुर्ग हमारे
फिर लौटकर नहीं आएंगे बुजुर्ग हमारे।

गोपाल नेवार,’गणेश’सलुवा, खड़गपुर पश्चिम मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल। 9832170390.

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