*भ्रष्टाचार की नींव पर बने पुल ढहेंगे ही*

*▶️बिहार सरकार ने गरमाए मामले पर ठंडे छींटे मारने के लिए 11 इंजीनियरों को सस्पेंड कर दिया*
*▶️बिहार में भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की चलती है दादागिरी*
*▶️अधिकारियों और कर्मचारियों को केवल कमीशन चाहिए, चाहे निर्माण कार्य घटिया हो*

*✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।*
📱8302612247

*👉भ्रष्टाचार की बुनियाद पर बने पुल ढहेंगे नहीं तो और क्या होगा। बिहार में मात्र 17 दिन में करीब 12 पुल धराशायी हो गए। बिहार सरकार ने 11 इंजीनियरों को सस्पेंड कर दिया है। बिहार में भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी और रिश्वतखोरी की यह घटनाएं तो महज बानगी हैं। भ्रष्टाचार के साथ-साथ बिहार में सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की दादागिरी करते हुए आम जनता से धन ऐंठने की अनेकों घटनाएं हैं। निर्माण कार्यों में खुलेआम भ्रष्टाचार करना बिहार में शिष्टाचार बन गया है। इसके बिना वहां कोई भी निर्माण कार्य पूरा नहीं होता है। भ्रष्टाचार से जुड़े अनेकों वीडियो यू-ट्यूब और अन्य सोशल प्लेटफार्म पर देखने को मिल जाते हैं। यदि मीडिया आवाज उठाता है, तो भ्रष्टाचार में लिप्त माफिया चाहे अधिकारी हो, कर्मचारी हो या फिर कोई दलाल हो, मीडिया पर ही हाथ डालने की कोशिश करता हुआ वीडियो में दिखाई दे जाता है। यदि कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार नहीं हुआ होता, तो यकीन मानिए पुल कभी भी नहीं ढहते। भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों को केवल मोटी राशि का कमीशन चाहिए। उन्हें काम की गुणवत्ता से कोई मतलब नहीं है। निर्माण में चाहे घटिया सामग्री लगे। घटिया लोहे के सरिए, घटिया रेत या बजरी लगे, घटिया या कम सीमेंट लगे। इन सब से कोई लेना-देना नहीं है। चाहे पुल गिरें या सड़क धंसें। बिहार के अनेकों ऐसे वीडियो दिखाई दे जाते हैं, जिनमें सड़क बनाने के अगले दिन ही पूरी तरह उखड़ जाती है।

प्रेम आनंदकर
सड़क निर्माण में या तो घटिया तारकोल यानी डामर या सीसी रोड पर कम सीमेंट का उपयोग किया जाता है। बिहार सरकार ने जिन 11 इंजीनियरों को सस्पेंड किया है, उससे यह बात तो साबित हो गई है कि इन इंजीनियरों ने अपने कर्त्तव्य के प्रति पूरी तरह लापरवाही बरती और जमकर कमीशन खाया। यदि उन्होंने कमीशन नहीं खाया होता, तो पहले ही पुल बनाने वाले ठेकेदारों की नाक में नकेल कसकर रखते। जब कमीशन खाया है, तो फिर ठेकेदार चाहे जैसा काम करे, उसमें मीन-मेख निकालने की इंजीनियरों और अन्य अधिकारियों की हिम्मत नहीं हो सकती है। इंजीनियरों को सस्पेंड करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि ऐसे इंजीनियरों और अधिकारियों को तो सरकारी नौकरी से सीधे बर्खास्त कर घर बैठा देना चाहिए। सस्पेंड करना तो किसी घटना या गंभीर मामले को दबाने के लिए ठंडे छींटे मारना है। बिहार सरकार ने पुल ढहने की जांच के लिए आदेश दे दिए हैं। आप और हम सब अच्छी तरह जानते हैं कि जांच के नाम पर केवल लीपापोती के अलावा कुछ भी नहीं होता। जिन इंजीनियरों को सस्पेंड किया गया है, उन्हें कुछ समय बाद जांच विचाराधीन रहते हुए बहाल कर दिया जाएगा। उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। सस्पेंड अवधि में सरकार आधी तनख्वाह देगी। फिर बहाल होने के बाद बाकी आधी तनख्वाह भी मिल जाएगी। अब कार्यवाही के शिकार होंगे तो ठेकेदार। उन्हें ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा। यदि इंजीनियरों ने कमीशन खाने की बजाय ठेकेदारों से यह कहा होता कि हमें किसी तरह का कमीशन नहीं चाहिए, आप लोग केवल निर्माण कार्य पूरी गुणवत्ता के साथ कीजिए। तो यकीन मानिए यह पुल कभी नहीं ढहते। पुल ढहने के लिए सीधे तौर पर इंजीनियर और अन्य सभी संबंधित वह अधिकारी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने कमीशन डकारा है। जब तक कमीशनखोरी, रिश्वतखोरी और अन्य सभी तरह के भ्रष्टाचारों पर अंकुश नहीं लगाया जाएगा, तब तक इसी तरह पुल ढहते रहेंगे, सड़कें उखड़ती रहेंगी और निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल उठाए जाते रहेंगे।*
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