वैचारिकी-अपने मनुष्य होने को जाने

जब कोई व्यक्ति या संघठन धर्म, जाति, नाम की आड़ में पहचान या गौरव की बात कर रहा होता है, तब वह किसी अन्य के प्रति लघुता या नफरत का भाव भी भर रहा होता है। ठीक वैसे ही जैसे अ से अनार, आ से आम सिखाते हुए ना फल दिखाया जाता है और ना ही चखाया जाता है वरन उस बहाने शब्दों की पहचान के साथ पढ़ना-लिखना सीखाया जाता है। उसी तरह धर्म या जाति की श्रेष्ठता थोपकर समान्तर धर्म और जातियों के लिए कमतर होने का भाव जगाया जाता है, जो कलांतर में विभिन्न स्वार्थी तत्वों द्वारा कभी संस्कृति,कभी इतिहास, कभी अधिकार तो कभी राष्ट्र के साथ जोड़कर घृणा में अनुदित कर दिया जाता है। और इस तरह समाज में मनुष्यता की सत्ता कमजोर पड़ती जाती है। हमारा हिंसक चरित्र वैधता पा जाता है। हमारे भीतर का प्रेम तिरोहित होकर हमें मनुष्यता के मूल स्वभाव से च्युत कर देता है।
*मनुष्य का मूल स्वभाव प्रेम है।* प्रेम से ही वह नया मनुष्य सृजित करता है। *प्रेम के पालने में झूलते हुए वह प्रेमी- प्रेमिका, पति-पत्नी, माता-पिता के सामाजिक युगल रचता है। प्रेम की खोज में वह ईश्वर तक पहुंचता है।* आसान जुबान में कहें तो जो लोग हमें नफरत का एक भी शब्द सीखाते हैं, वे दरअसल हमसे प्रकृति प्रदत्त प्रेम करने की प्रवृति छीनते हैं। हमारे मनुष्य होने को पशुओं के समूह में भी धकेल देते हैं।
हमें ऐसे तत्त्वों से सावधान रहना चाहिए। *कोई धर्म, कोई जाति, कोई समूह, कोई संस्थान मनुष्य होने की सत्ता से बड़ा नहीं हो सकता।* हमें अपने मनुष्य होने को बचाना है।

प्रसंगवश, इस विषय पर मेरी एक कविता भी है।

*कविता -नफरत की वजह*

उनके पास प्यार करने के
बहुत कम कारण हैं
लेकिन नफरत करने की अनेक वजह हैं

प्यार के लिए
कोई उनका अपना होना चाहिए
जैसे प्रेमी, प्रेमिका, पत्नी, बच्चे, बंधु
या कोई सगे वाला
ज्यादा से ज्यादा
स्वधर्मी, स्वजाति या स्वदेशी

प्यार में ‘स्व’ की अनिवार्य शर्त
या शर्तो पर प्यार
प्यार के नाम पर नफरत की नई वजह खड़ी करता है

नफरत के लिए
यूँ तो नाम ही काफी होता है
नाम के साथ जुड़ी सूचनाएं
काम को आसान कर देती हैं

वह हर पहचान
जो उन्हें दूसरे से अलग करती है
वह कद
जो उनके बराबर खड़ा होने की कोशिश करता है
वह हर आवाज़
जो अपनी अलग जुबान रखती है
उन्हें सचमुच अच्छी नहीं लगती

वे चारो ओर ‘अच्छी नही लगती’ से
ऐसे से घिरे रहते हैं
जैसे घिरे रहते हैं
अपने सही होने के तर्कों से

सिनेमा, किताब, कला,
आसमानी होने पर ही स्वीकार्य है
कल्पना की हर दुनिया
उन्हें अपने ईश्वर को चुनौती देती है

वे इतिहास को
समय के विरुद्ध दस्तावेज मानते हैं
भूगोल, विज्ञान, समाज, दर्शन, भाषा, समस्त ज्ञान- सम्पदा
उन्हें अपने घर से चोरी हुआ सामान लगता है
वे चोरों से बहुत घृणा करते हैं

संस्कृति, संस्कार, सभ्यता के
सापेक्ष खड़ी आधुनिकता
उन्हें एक बदचलन औरत मालूम देती है

वे औरत के नाम पर
हर नफरत को जायज मानते हैं
वे मानते हैं
किसी भी तप को भंग करने में
औरत अकेली जिम्मेदार होती है

वे माँ, बहिन, बेटी, पत्नी से प्यार करना चाहते हैं
लेकिन उनका औरत होना बीच मे आ जाता है

प्यार करने का एकमात्र कारण
फिर से नफरत में बदल जाता है

*रास बिहारी गौड़*

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