*▶️जनता केवल जनप्रतिनिधियों को ही नहीं, अफसरों को भी कोसें*
*▶️जनप्रतिनिधियों के पास अफसरों का ’इलाज’ करने का अधिकार नहीं*
*▶️कर्ता-धर्ता अफसर, तो समस्याओं के लिए जिम्मेदार भी वे ही माने जाएं*
*✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।*
📱08302612247
*👉किसी भी समस्या के लिए जनता द्वारा जनप्रतिनिधियों को कोसना आम बात हो गई है। कोसें भी क्यों नहीं, आखिर जनप्रतिनिधि जनता के वोटों के दम पर चुने जाते हैं, इसलिए सीधे तौर पर जनता और मीडिया के निशाने पर आ जाते हैं। लेकिन कभी यह भी सोचा है कि जिस तरह जनप्रतिनिधियों को आए दिन पानी पी-पीकर कोसते हैं, उसी तरह झोला भर-भर कर तनख्वाह पाने वाले अधिकारियों को भी कोसना चाहिए। जनता अधिकारियों को क्यों नहीं कोसती है, क्यों नहीं सीधे उनसे जाकर अपनी फरियाद करती, क्यों नहीं उलाहना देती, क्यों नहीं उनका घेराव करती है। जनप्रतिनिधि चाहे मंत्री हों, सांसद हों, विधायक हों, जिला परिषद के जिला प्रमुख हों, नगर निगम के मेयर हों, नगर परिषद के सभापति हों, नगर पालिका के अध्यक्ष हों, पंचायत समिति के प्रधान हों या फिर ग्राम पंचायत के सरपंच हों, यह सभी वैसे तो सरकारी कामकाज में फौरी तौर पर दखल तो रखते हैं, लेकिन कोई भी आदेश-निर्देश, पत्र आदि इनके हस्ताक्षरों से नहीं निकलते हैं। यहां तक कि राज्य सरकार की ओर से कोई भी आदेश-निर्देश मुख्यमंत्री और मंत्रियों के हस्ताक्षरों से जारी नहीं किए जाते हैं, बल्कि सभी आदेश मुख्य सचिव, संबंधित विभागों के अतिरिक्त मुख्य सचिवों, प्रमुख शासन सचिवों, शासन सचिवों, उप सचिवों, आयुक्तों और निदेशकों के हस्ताक्षरों से ही जारी किए जाते हैं। जब जनप्रतिनिधि केवल रबड़ स्टाम्प की तरह होते हैं, तो ऐसे में वे केवल अधिकारियों को मुंहजुबानी आदेश-निर्देश ही दे सकते हैं। केवल हमारे प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में अफसरशाही इस कदर हावी है कि वह जनप्रतिनिधियों के किसी भी आदेश-निर्देश की परवाह नहीं करती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब सारा कामकाज अधिकारियों द्वारा किया जाता है, निर्माण कार्यों की मंजूरी अधिकारियों द्वारा दी जाती है, नाली, पानी, बिजली, चिकित्सा, शिक्षा सहित सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए आदेश अधिकारी ही निकालते हैं, तो फिर जनता और मीडिया के लोग अधिकारियों को अपने निशाने पर क्यों नहीं लेते हैं। प्रेम आनंदकर जनप्रतिनिधियों के पास केवल मौखिक दिशा-निर्देश और आदेश देने, अधिकारियों की बैठक लेकर खिंचाई करने और लताड़ लगाने के सिवाय है ही क्या। किंतु यह अफसर इतनी ज्यादा मोटी चमड़ी के या यूं कहें चिकने घड़े हो गए हैं कि उन पर कुछ भी असर नहीं होता है। कितना आसान है, यह कहना कि फलां विधायक या सांसद फलां मार्ग पर टूटी-फूटी सड़कों, गड्ढों के लिए जिम्मेदार हैं। पानी नियमित रूप से नहीं आए, पानी की लगातार किल्लत बनी रहे, तो विधायक या सांसद को कोसने लग जाते हैं। स्कूल-कॉलेज या अस्पताल की परेशानी है, तो जनप्रतिनिधियों पर नजला उतारने लग जाते हैं। जनता शायद यह भूल जाती है कि शहर, जिले या प्रदेश की किसी भी समस्या का लंबे समय तक समाधान नहीं हो रहा है, सड़कों पर गड्ढे बने हुए हैं, सड़कों की मरम्मत नहीं हो रही है, नई सड़क कुछ दिन बाद ही अपने पुराने रूप में आ जाती है, पुल धराशाही हो जाते हैं, बिजली की समस्या है, नलों में समय पर और पर्याप्त पानी नहीं आ रहा है, तो इसके लिए केवल जनप्रतिनिधि ही नहीं, बहुत ज्यादा हद तक यानी सीधे तौर पर अधिकारी ही जिम्मेदार होते हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जनता जनप्रतिनिधियों को नहीं कोसे, बेशक कोसे और कोसना भी चाहिए, क्योंकि वे हमारे वोटों से चुनकर लोकसभा, विधानसभा, नगर निगम, नगर परिषद, नगर पालिका, जिला परिषद, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत में पहुंचते हैं, जनता के नुमाइंदे हैं, जनता की आवाज उठाना और समस्याओं का समाधान कराना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है। लेकिन वे भी करें, तो क्या करें। जनप्रतिनिधि जनता के वोटों से चुने तो जाते हैं, किंतु उनके पास निकम्मे अधिकारियों का इलाज करने का अधिकार नहीं होता है। ना सांसद और ना विधायक किसी लापरवाह और निकम्मे अधिकारी को तुरंत प्रभाव से हटा सकते हैं, नगर निगम के मेयर, नगर परिषद के सभापति, नगर पालिका के अध्यक्ष, जिला परिषद के जिला प्रमुख चाहकर भी किसी अधिकारी को विभागीय कार्यवाही के तहत दंडित नहीं कर सकते हैं, रिलीव कर सरकार के पास वापस भेज सकते हैं। ज्यादा से ज्यादा लोकसभा, विधानसभा, नगर निकाय, जिला परिषद और पंचायत समिति की साधारण सभा में गुबार निकाल सकते हैं। लेकिन ढीठ अधिकारियों पर कोई असर नहीं होता है, क्योंकि उन्हें यह बात अच्छी तरह पता है कि जनप्रतिनिधि चाहे जितना गला फाड़-फाड़कर चिल्ला लें, उनका बाल भी बांका होने वाला नहीं है। तो इसलिए जिस तरह जनता अपने जनप्रतिनिधियों को कोसती है, उसी तरह अधिकारियों को भी कोसना चाहिए, क्योंकि वे भी लोकसेवक की श्रेणी में आते हैं या फिर जनप्रतिनिधियों को यह अधिकार दिए जाएं कि यदि कोई अधिकारी उनके निर्वाचन क्षेत्र में सही ढंग से काम नहीं करता है, तो वे उसे तुरंत हटाकर सरकार से किसी अन्य अधिकारी को नियुक्ति करने की सिफारिश कर सकें।*
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