शैतानियत जीत गई है

प्रिय……………..
जब तुम कहते थे कि
तुम्हारे हिन्दुस्तान में
बंदिशों में शख्स जीते हैं

जब तुम कहते थे कि
तुम्हारे हिन्दुस्तान में
मजबूरियां पनपती हैं

जब तुम कहते थे कि
तुम्हारे हिन्दुस्तान में
इच्छाओं का दामन होता है

जब तुम कहते थे कि
तुम्हारे हिन्दुस्तान में
भेदभाव का चलन होता है

जब तुम कहते थे कि
तुम्हारे हिन्दुस्तान में
आज़ादी में खलल पड़ती है

जब तुम कहते थे कि
तुम्हारे हिन्दुस्तान में …….

तुम बहुत कुछ कहते थे
और मैं हर बार लड़ती थी
और तुमसे ये कहती थी

कि मुझे नाज़ है
अपने हिन्दुस्तान पर
इसकी संस्कृति पर

कि मुझे नाज़ है
अपने हिन्दुस्तान पर
इसकी आत्मीयता पर

कि मुझे नाज़ है
अपने हिन्दुस्तान पर
इसके प्रेम भाव पर

कि मुझे नाज़ है
अपने हिन्दुस्तान पर
इसकी सहृदयता पर

कि मुझे नाज़ है
अपने हिन्दुस्तान पर…….

बड़ा गर्व होता था मुझे
ये सब कुछ कहते हुये
बड़ा गर्व होता था मुझे
अपने हिन्दुस्तानी होने पे

पर आज वही मेरा
गर्विला मस्तक
झुक गया है, कुछ
लोगों की हैवानियत से
शर्मसार हूं मैं
मर गये इन्सानियत से
………
जानती हूं अब तुम
मुस्कुरा रहे होगे
और अपनी जीत पर
इतरा भी रहे होगे

पर ये जीत तुम्हारी नहीं
ये जीत है …..
गलत भावनाओं की
ये जीत है….
निर्ममताओं की

मुझे इसका कतई
अफसोस नहीं कि
मैं हार गई हूँ
अफसोस तो इस
बात का है कि
शैतानियत जीत गई है

-आशा गुप्ता आशु

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