dr. j k gargमाना जाता है कि कार्तिक महीने की अमावस्या को देवताओं द्वारा समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी क्षीर सागर से ब्रह्माण्ड में अवतरित हुई थी। इसी वजह से कार्तिक महीने की अमावस्या को माता लक्ष्मी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में दिवाली के त्यौहार के रूप में मनाना शुरू किया था भगवान | कृष्ण ने कार्तिक महीने की चतुर्दशी को नरकासुर को मार कर समस्त महिलाओं को मुक्तकरवा के उनकी जान बचाई थी इसलिए दीपावली से एक दिनपूर्व चतुर्दशी को इस घटना को उत्सव के रूप में मनाया जाता है । महाभारत के अनुसार 12 वर्ष के निष्कासन एवं एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद कार्तिक महीने की अमावस्या को पांडव राज्य में सकुशल लौटे थे। पांडवों के वापस लौटने से वहां के लोग बहुत खुश थे, उन्होंने मिट्टी के दीपक जलाकर और पटाखे जलाकर पांडवों के लौटने दिन को मनाना शुरू कर दिया। बहुत समय पहले एक राक्षस था जिसने लड़ाई में सभी देवताओं को पराजित किया और सारी पृथ्वी और स्वर्गको अपने अधिकार में ले लिया। तब माँ काली ने देवताओं, स्वर्ग और पृथ्वी को बचाने के उद्देश्य से देवी दुर्गा के मष्तिष्क से जन्म लिया था। राक्षसों की हत्या के बाद उन्होंने अपना नियंत्रण खो दिया और जो भी उनके सामने आया उन्होंने हर किसी की हत्या करनी शुरू कर दी। भगवान शिव ने माता काली के चरणों में लेट गये जिससे उनका क्रोड़ शांत हुआ बंगाल उडीसा उस पल को यादगार बनाने के लिए उसी समय से ही दिवाली पर देवी काली की पूजा करके मनाया जाता है।सोने की लंका के स्वामी रावण का वध करने के बाद अयोध्या वापस लोटें तो वहां के नर-नारीयों ने समूचे राज्य को दीपों की रोशनी से जगमगा दिया और राम सीता लक्ष्मण के आगमन पर खुशी प्रकट करने हेतु आतिशबाजी कर पटाखे जलाये, तभी से भारत भूखंड में कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाई जाती है। राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी कार्तिक अमावस्या को हुआथा तबसे लोगों ने दिवाली को ऐतिहासिक पर्व के रुप से मनाना शुरु कर दिया था। बौबौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने आज के लगभग2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में ने दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। जैन धर्म को मानने वालों के मुताबिक कल्पसूत्र के अंदर बताया गया है कि महावीर के निर्वाण के साथ जो अंतरज्योति सदा के लिए बुझ गई है|
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की स्थापना भी वर्ष 1577 में दीवाली के मौके पर की गयी थी। तीसरे गुरु अमरदास जी ने दिवाली को लाल-पत्र दिन के पारंपरिक रुप में बदल दिया जिस पर सभी सिख अपने गुरुजनों का आशार्वाद पाने के लिये एक साथ मिलते है। सिख धर्म में इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रुप में जाना जाता है महर्षि दयानंद ने वर्ष 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी | महान समाज सुधारक महर्षि दयानंद सरस्वती ने कार्तिक मास की अमावस्या के दिन अजमेर में निर्वाण प्राप्त किया। उसी दिन से इस दिन को दिवाली के रूप में मनाया जा रहा है। मारवाड़ी कार्तिक की कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन पर दिवाली पर अपने नए साल का उत्सव मनाते हैं एवं नये बही खाते प्रारम्भ करते हैं। गुजराती भी कार्तिक के महीने में शुक्ल पक्ष के पहले दिन दीवाली के एक दिन बाद अपने नए साल का उत्सव मनाते है। दिवाली शुरुआत में फसलों की कटाई के उत्सव के रुप में मनाई जाती थी। यह वह समय है जब भारत में किसान फसल काटकर संपत्ति और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और उन्हें नई फसल में से उनका हिस्सा समर्पित करते हैं। दीपावली के दौरान आतिशबाजी करने और पटाखें जलाने पीछे वैज्ञानिक आधार है। इसका मुख्य उद्देश्य मोसम परिवर्तन से उत्पन्न कीट कीड़े विशेष तया मच्छर से होने वाली जान लेवा खतरों का मुकाबला करना है, जो गीले से सर्दियों के मौसम में इन खतरनाक कीटों परजीवियों के लिए प्रजनन स्थल के रूप में कामकरता है।
दीयों को जलाने और उनसे रोशनी करने के पीछे विज्ञान है। जब हम घी या तेल का दिया जलाते हैं तो तेल या घी में मौजूद फैटी एसिड जलते हैं। इस प्रक्रिया में फैटी एसिड का एक अणु जलने से 56 कार्बन के अणु निकलते हैं और 52 पानी के अणु निकलते हैं।
डा जे के गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर