स्त्री चरित्रं..देवो न जानेति, कुतो मनुष्यः (भाग – 2)

शिव शर्मा

पति धर्म में सती स्त्री बहुत ऊंची उठ जाती है। हमारे पुराण का एक प्रसंग है। वत्रासुर के विरुद्ध देवासुर संग्राम था। प्रथम चरण में देवता बुरी तरह पराजित हो चुके थे। युद्ध अब निर्णायक होना था। देवगुरु बृहस्पति ने शची को कहा – तुम अपने पति देवराज इंद्र की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधो। शची स्वयं असुर थी। देवताओं को सन्देह था कि शची असुरों के खिलाफ ऐसा करेगी। जरा सोचिए कि उस नारी का सत् कितना ऊंचा होगा! उसके रक्षासूत्र से ही देवता उस निर्णायक युद्ध में विजयी हो गए। विश्व इतिहास की पहली राखी एक पत्नी ने अपने पति की कलाई पर बांधी। युद्ध में वत्रासुर मारा गया। तब कहावत हो गई कि स्त्री चरित्रं..देवो न जानेति, कुतो मनुष्यः।

ऋषि अगस्त्य ने, विदर्भ के राजा को विवश किया कि वह राजकुमारी लोपमुद्रा का विवाह उनसे कर दे। राजकुमारी विपुल धन-सम्पत्ति लेकर ऋषि के आश्रम पहुंची। वहां अन्य ऋषिकाओं के व्यक्तित्व की हिमगिरि जैसी गरिमा देखी तो स्तब्ध रह गई। सारी सम्पत्ति दान कर दी। विवाहित होते हुए भी ब्रह्मचारिणी की तरह रही। वेदाध्ययन किया। ध्यान, धारणा, आसन, प्राणायाम किया और वह रूप गर्विता राजकुमारी अब ब्रह्मवादिनी हो गई। उसने वैदिक ऋचाएं लिखीं। उसने कहा – ऋषि की कुटिया में भक्ति का नित्य उत्सव होता है और सम्पत्ति उसकी देहरी पर सिर झुकाए रहती है। जय स्त्री चरितं!
अद्भुत यशोधरा – ‘गौतम’ जब “बुद्ध” हो कर पिता से मिलने गए, तो यशोधरा को भी सूचित किया गया। वह बोली – जिस शयनकक्ष में मुझे छोड़ कर भागे थे, उसी में आकर मिलना पड़ेगा। गौतम ने उसे देखा तो विस्मित रह गए! गृहस्थ योगिन यशोधरा। वार्ता के दौरान उसने कहा – पुरुष अपनी भोगी प्रवृत्ति के कारण दुर्बल होता है। आपने इसीलिए पलायन किया। स्त्री तन से भोगी किंतु मन से योगी होती है। इसी कारण मैं शीघ्र ही स्थिर हो गई। घर में ही भिक्षुणी बन गई। भोग कामनाओं से ऊपर उठ गई। फिर उसने और गौतम की बड़ी माँ महाप्रजापति गौतमी ने भिक्षुणी संघ बनाया। बुद्ध को मठ में स्त्रियों के प्रवेश के लिए सहमत किया। अंततः गौतमी एवं यशोधरा, दोनों को आत्मबोध हुआ; वे बोधि हुईं।
एक अन्य दृष्टांत – बादशाह अकबर का समय था। ओरछा के राजा इंद्रजीत की प्रेयसी बहुत सुंदर थी और बेजोड़ नृत्यांगना थी। नाम था, प्रवीण राय। अकबर ने उसे अपने दरबार में बुलाया तथा उसे खुद के रनिवास में रखने का मंतव्य ज़ाहिर किया। प्रवीण राय प्रखर थी, निडर और सत्य में स्थिर थी। वह बोली – जूठी पत्तल तो मंगते, श्वान और कौए के लिए होती है; हिंदुस्तान के बादशाह के लिए नहीं। बादशाह बोला, वाह! खूबसूरती, कला ओर दिलेरी; तीनों एक साथ। वल्लाह! इस मुल्क के राजघरानों में यदि जांबाज औरतों की हुकूमत होती तो हम मुगल यहां नहीं होते। उसने प्रवीण राय को बाअदब वापस भेज दिया। ओरछा में प्रवीण का महल आज भी पर्यटन स्थल बना हुआ है।
स्त्री के चरित्र का ऐसा गौरवगान उन पुरुषों ने किया है जो खुद महर्षि, ऋषि, संत व महात्मा थे। उन्होंने स्त्री के हृदय में सृजन की शक्ति देखी, मातृत्व का उत्कर्ष देखा, दया-धैर्य-त्याग का विस्तार देखा, अपनी खुशियों के मौन उत्सर्ग की मुस्कान देखी। उन्होंने स्त्री में अर्द्धनारीश्वर की शक्ति के दर्शन किये। इसीलिए वे नारी को देवोपम कह सके। ऋषिका गार्गी वाचकनवी के अनुसार – स्त्री तो सम्पूर्ण अस्तित्व है जिसमें सारे रिश्ते समाए हुए हैं। सृष्टि (प्रजनन) और मुक्ति (भोग से मुक्ति) उसी में सम्भव है।
एक थी सूर्या सावित्री! उसने विवाह के मंत्र लिखे और पहली बार अपनी ही शादी में खुद ने वे मंत्र पढ़े। वे ही मंत्र पढ़कर आज फेरे कराए जाते हैं। उसने पांच हजार वर्ष पहले भी स्वयं द्वारा चयनित युवक से विवाह किया था। वह बोली – स्त्री में मानव जीवन का सम्पूर्ण वैभव है; पुरुष उसकी देह से ऊपर उठेगा, तो उसे नारी की ये विभूतियां अवश्य दिखेंगी।

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