साधना यानि तन-मन को साधना, अनुशासित करना। अनुशासन यानि अभ्यास – सीधे बैठने का अभ्यास, कम खाने, कम बोलने, कम सोने आदि का अभ्यास। इंद्रियों को स्वाद की तरफ भागने से रोकने का अभ्यास। कर्तव्य एवं सेवा कर्म का अभ्यास। केवल नाम सुमिरन से काम नहीं चलेगा। केवल माला जपने से बात नहीं बनेगी। संत महात्माओं के किस्से सुनने-सुनाने से भी बोध नहीं होगा। हम पहले ही बात कर चुके हैं कि साधना रूहानी कर्म है। कर्म यानि भी अभ्यास। गुरु द्वारा बताई हुई बातों को खुद करके देखना है। स्वयं प्रयोग करके समझना है। गुरु ने कहा कि सांस की लंबाई कम करो; तो छोटी सांसों का अभ्यास करना है। लगातार छोटी सांस लेनी है। गुरु ने समझाया कि आज्ञा चक्र पर ध्यान टिकाओ; तो वैसा ही करना है, निरंतर करना है। 10 दिन करके छोड़ दिया तो बात बिगड़ जाएगी। साधना ठहर जाएगी। साधना का सफर लंबा है। थ्योरी नहीं, एक्शन है, प्रैक्टिकल है। ऐसा प्रैक्टिकल स्वयं गुरु अपनी नज़र में ही रखते हुए कराता है। जब तक देह में है तब तक तो करना ही है, किंतु रूहानी पुरुष हो जाने के बाद भी मुरीद उसकी नज़र में ही रहता है। तब ध्यान अवस्था में रूहानी निर्देश देता है।
इसलिए नाम मिल जाने को ही पूरी कृपा मत समझो। जप के साथ तप भी जरूरी है। तप के साथ आसन, ध्यान, धारणा, आचरण आदि का प्रैक्टिकल अभ्यास आवश्यक है। गुरुदेव हज़रत हरप्रसाद मिश्रा जी ने एक बार दिखा दिया कि साधना का अंतिम बिंदु प्रकाश है। सिर में सबसे ऊपर प्रकाश का गोला है। फिर कहा – अब खुद वहां तक जाओ। इसके लिए जरूरी अभ्यास करते रहो – ब्रह्म् मुहूर्त में साधना, श्वास पर नियंत्रण, पूरे शरीर में वाइब्रेशन को देखना, स्वाद छोड़ना, कम बोलना, नाद सुनना, मनोजगत में गुरु से जुड़े रहना आदि। यह सब प्रत्येक साधक के लिए है। जो कोई भी आगे बढ़ना चाहता है, उसके लिए यह प्रक्रिया अनिवार्य है। तुम अमेरिका का नक्शा अपने दिमाग में याद कर लो। इसका अर्थ यह नहीं कि तुमने वह देश देख लिया, वहां जाओगे तभी उसे देखना होगा। ऐसे ही सत्य तक पहुंच जाओगे तभी सत्य का बोध होगा। देहधारी गुरु की सीमा पार करते हुए चेतन गुरु या रूहानी गुरु तक पहुंचोगे तभी वह आंतरिक यात्रा में बहुत दूर तक साथ चलेगा और गूढ़ बातें समझाएगा।
एक दृष्टांत – किसी आश्रम में कुछ शिष्य झाड़ू लगा रहे थे। एक शिष्य को गुरु जी ने पूछा कि झाड़ू लगाने का मतलब जानते हो? आश्रम में झाड़ू लगाने का रहस्य समझते हो? फिर कहा झाड़ू की एक-एक सींक बोलती है। नाम बोलती है। तुम प्रत्येक सींक की आवाज में नाम सुनो तब झाड़ू की सार्थकता है। मान लो एक झाड़ू में 100 सींक है। तुमने एक बार झाड़ू फेरी तो 100 नाम हो गए। तुमने कुल 50 बार झाड़ू फेरी तो 50000 नाम हो गए। इसलिए झाड़ू लगाते या बर्तन धोते वक्त मन को नाम सुमिरन की तरफ एकाग्र रखो। इस दृष्टांत में श्रमदान वाले कर्म का रहस्य निहित है।
एक थे महात्मा कुंभाराम जी। 500 वर्ष की आयु के बाद पर्दा किया। उन्होंने अपने एक शिष्य सेवाराम को 30 साल तक साधना कराई – पानी में, तपती रेत पर, सुनसान जंगल में, आश्रम में, शोरगुल के मध्य अभ्यास कराया। शास्त्र समझाया, जड़ी-बूटियों का ज्ञान कराया, योग-अभ्यास कराया, भूख-प्यास सहन करने की विधि बताई। जंगल में रहना सिखाया, फिर दीक्षा दी – जाओ लोगों की सेवा करो! पैसे किसी से मत लेना, यह है साधना का प्रैक्टिकल दृष्टांत। मैं उनसे मिला था; किसी श्रमिक जितना सामान्य जीवन और सेवा भाव से सराबोर थे। वे महात्मा पराशक्ति के साकार रूप थे।
तो अपनी साधना को थ्योरी से बाहर निकलने दो; रूहानी अभ्यास करते रहो; गुरू को साथ रखो; संकल्प को कमजोर मत होने दो। कल्याण अवश्य होगा।